मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल 010 : कहाँ से आ गए तुम--

ग़ज़ल  010

कहाँ से आ गए तुम को न जाने
बहाने और फ़िर ऐसे बहाने !

कोई यह बात माने या न माने
मुझे धोखा दिया मेरे ख़ुदा ने !

ज़माना क्या बहुत काफी नहीं था ?
जो तुम आए हो मुझको आज़माने !

लबों पर मुह्र-ए-ख़ामोशी लगी है
दिलों में बन्द हैं कितने फ़साने !

न मौत अपनी न अपनी ज़िन्दगी है
मगर हीले वही है सब पुराने !

ज़माने ने लगाई ऐसी ठोकर
हमारे होश आए है ठिकाने !

कहाँ तक तुम करोगे फ़िक्र-ए-दुनिया ?
चले आओ कभी तुम भी मनाने !

हवा-ए-नामुरादी ! तेरे सदक़े
बहार अपनी न अपने आशियाने !

ज़रा देखो कि डर कर बिजलियों से
जला डाले ख़ुद अपने आशियाने !

मिलेंगे एक दिन ’सरवर’ से जाकर
अगर तौफ़ीक़ दी हम को ख़ुदा ने !

-सरवर-
तौफ़ीक़ = शक्ति,सामर्थ्य
हीले =बहाने

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