रविवार, 21 मार्च 2010

विविध 004 :हज़ारों लब से आती है सदा ये . [पी0 के0 स्वामी ]

ग़ज़ल 004 :हज़ारों लब से आती है सदा ये ....

[यह ग़ज़ल जनाब पी०के०स्वामी ,नई दिल्ली ने मोहतरम शायर जनाब "सरवर" की शान में उनके जन्म दिन (१६-मार्च) पर कही है यह ग़ज़ल इस ब्लाग पे इस मक़्सद से लगा रहा हूँ कि अहलेकारीं भी इस ग़ज़ल की ख़्सूसियत और नाज़ुक ख़याली से लुत्फ़अंदोज़ होंगे......आनन्द.पाठक]

हज़ारों लब से आती है सदा ये
सरापा रहबरे कामिल तुम्हीं हो !

जहां नेकी के चर्चे गूंजते हैं
खुलूसे दिल से तुम शामिल वहीं हो !

फरोगे अंजुमन तुम से है सरवर
सितारों में महे कामिल तुम्हीं हो !!

दिले खस्ता है वाबस्ता तुम्हीं से
ज़ुबाने राज़ के आदिल तुम्हीं हो !!

ग़में गेती में तेरा ही सहारा
दिले सद्चाक की महफ़िल तुम्हीं हो !!

खयाले नेक के हो रूह परवर
रगे इसियाँ के इक कातिल तुम्हीं हो !

जियो तुम और हज़ारों साल जीयो
दुआए खैर के काबिल तुम्हीं हो !!

पी के स्वामी

1 टिप्पणी:

  1. manywar Sarwar Saheb ki gazals padhkar shayri ka ek rang saamne aata hai jo apne aap mein apni pehchaan hai..Unke janm din ke awasar par isse behtar koi aur tohfa kya ho sakta hai. Meri shubhkamnayein ismein shamil hai..

    फरोगे अंजुमन तुम से है सरवर
    सितारों में महे कामिल तुम्हीं हो !!

    Waah kya nageenedari hai..


    रहा हूं मील का पत्थर सदा से
    यकीं है राह ककी मंज़िल तुम्ही हो
    daad ke alfaaz jaane maun khade hain
    Devi nangrani

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