मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

विविध 007 : एक सूचना :उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 38 [ बहर-ए-रमल की मुसम्मन मुज़ाहिफ़ बह्रें ] के अन्तर्गत

उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 38 [ बहर-ए-रमल की मुसम्मन मुज़ाहिफ़ बह्रें ] के अन्तर्गत

आइटम 11- बहर-ए-रमल मुसम्मन मश्कूल -की चर्चा करते वक़्त एक ग़लत बयानी हो गई थी -जिस की तरफ़  ध्यानाकर्षण मेरे एक  मित्र ’श्री अजय तिवारी जी" -[जो उर्दू /अरूज़ के अच्छे जानकार है  ] ने किया
अत: आप सभी से अनुरोध है उक्त आलेख निम्न संशोधन के साथ पढ़ें
[मूल आलेख में भी यह संशोधन कर दिया है ]
 मगर यह बहर तो "मुज़ारे मुसम्मन अख़रब" की बह्र है [जिसकी चर्चा मैं ’मुरक़्क़ब बहूर’ के वक़्त आने वाले क़िस्त में करेंगे ] अर्थात तस्कीन के अमल से बह्र बदल गई तो इस तस्कीन का अमल जायज नहीं है अत: ऊपर कही हुई बात रद्द की जाती है ]
बह्र-"मुज़ारिअ मुसम्मन अख़रब " की चर्चा उर्दू शायरी की बहुत मक़्बूल बहर है और तमाम शो"अरा ने इस बह्र में शायरी की है --इस बहर की चर्चा उदाहरण सहित आइनदा अक़सात में  उचित मौक़े पर करूँगा ]

इस बिन्दु की तरफ़  मेरे मित्र एवं नियमित पाठक जो अरूज़ के अच्छे जानकार है श्री अजय तिवारी जी ने ध्यान दिलाया -मैं उनका आभारी हूँ


मैं   आ0 तिवारी जी का आभारी हूँ

आनन्द.पाठक

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