सोमवार, 22 अप्रैल 2024

बेबात की बात 11 : यह कौन सी बह्र है [ 2122---1122--1122---22 ]

 बेबात की बात 11 : यह  कौन सी बह्र है ?

2122---1122---1122---22

[ नोट-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है अगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।


पिछले दिनों चर्चा परिचर्चा के क्र्म में मेरे एक मित्र ने  सवाल किया कि

2122---1122---1122---22  यह कौन सी बह्र है?

एक लाइन में इसका जवाब है - बह्र-ए-रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ -

 और अर्कान है

फ़ाइलातुन--फ़अ’लातुन--फ़ अ’लातुन--फ़अ’लुन


अगर आप इस जवाब से सन्तुष्ट है तो आगे कि बात ही खत्म। इतना ही काफ़ी है -शायरी करने के लिए।

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अगर आप इतने से सन्तुष्ट नहीं है और आप की प्यास अभी बुझी नहीं, मज़ीद जानने की तलब बनी हुई है

तो आगे बढ़ते है कि यह बह्र कैसे बनी, यह नाम कैसे पड़ा वग़ैरह वग़ैरह।

यह बह्र कैसे बनी ?

आप इस बह्र को तो पहचानते होंगे--और नाम भी जानते होंगे। 

[क] 2122---2122---2122---2122 

-A-   ----B------C-----D

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम । सही ?

यह तो आप जानते हीं होंगे कि किसी शे’र में

-A-   के मुक़ाम को सदर/इब्तिदा कहते है

-B--C--  के मुक़ाम को  हस्व कहते है

-D-  ले मुक़ाम को जर्ब’/अरूज़ कहते हैं

अब इस बह्र पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल करते हैं। वैसे इल्मे--ज़िहाफ़ खुद में एक विस्तृत विषय है । ऎ कैसे  अमल करते है, इनकी शर्ते क्या है

-अभी इस पर बात नही करेंगे। परन्तु संक्षेप में एक दो बात कर लेते है।

ज़िहाफ़ 2-प्रकार के होते है

1- आम ज़िहाफ़ = जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लग सकता है यानी -A-   ----B------C-----D कहीं भी लगाया जा सकता है

2- ख़ास ज़िहाफ़ = जो शे’र के ख़ास मुक़ाम पर ही लग सकता है यानी या तो -A-  मुक़ाम पर लग सकता है या फिर  -D- मुक़ाम पर


हज़्फ़ -एक ऐसा ही ख़ास ज़िहाफ़ है जो सिर्फ़ --ड- मुक़ाम पर [ अरूज़/जर्ब] ही लगता है और इस ज़िहाफ़ की अमल से सालिम रुक्न [2122] की शकल 

बदल जाती है -इस बदली हुई शक्ल या बरामद रुक्न को महज़ूफ़ कहते है ।यानी

2122+ हज़्फ़ = 22 [ यह 2122 की महज़ूफ़ शकल है।

[क]  2122---2122---2122---22 अब इस बह्र को क्या कहेंगे? कुछ नहीं  SIMPLE

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम महज़ूफ़ 


ख़ब्न = एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । एक साथ लगाया जा सकता है या एक -एक रुक्न पर लगाया जा सकता है।

और इस ज़िहाफ़ के अमल से सालिम रुक्न [2122 ] की शकल बदल जाती है और इस बदली हुई शकल या बरामद रुक्न को ’मख़्बून’ कहते है। यानी

2122 + ख़ब्न = 1122 [ यह 2122 की मख़्बून शकल है। मगर अब इस ज़िहाफ़ को मुक़ाम -D- पर नहीं लगा सकते क्यों कि उस मुक़ाम को मैने ALREADY

हज़्फ़ ज़िहाफ़ लगा कर LOCK कर रखा है।

यानी 

2122---2122---1122---22 

या

2122--1122---1122--22  [ जो आप का सवाल है।

एक दिलचस्प बात --इन दोनॊ बह्रों का नाम-क्लासिकल अरूज़ के हिसाब से - एक ही होगा 

बह्र-ए- रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ ।

क्लासिकल अरूज़ के नामकरण पद्धति कुछ कमियाँ थी --इससे यह पता नही चलता है कि ’ख़ब्न’ वाला ज़िहाफ़ किस मुक़ाम पर लगा है। अत: आधुनिक नाम

प्रणाली में यह कमी दूर कर ली गई। अब इसका नाम होगा

बह्र-ए-रमल मख़बून मख़्बून महज़ूफ़ ---बिलकुल स्पष्ट की ख़्बन वाला ज़िहाफ़ किस किस मुक़ाम पर लगा है । NO CONFUSION |

अच्छा। एक बात और--

यह ख्बन वाला ज़िहाफ़ जब आम ज़िहाफ़ है तो -A- पर क्यॊं नही लगा सकते। बिलकुल लगा सकते है।   

लगा कर देखते हैं  क्या होता है। 

1122--1122--1122--22  होगा

नाम वही होगा --बहर-ए-रमल मख़्बून मख़्बून महज़ूफ़ ही रहेगा।

अब आप कहेंगे कि इसमे 2122 तो दिखाई नहीं दे रहा है तो रमल का नाम क्यों?

भई -- घर तो मूलत: उसी का है नाम रहेगा  तो पता चलेगा कि यह बह्र किस वंश परम्परा की है और इस पर कौन कौन से ज़िहाफ़ अमल कर सकते है।

ख़ैर --अब बात  RULES बनाम परम्परा /रिवायत की ।

TECHNICALLY  -A- मुक़ाम पर खब्न का ज़िहाफ़ लगा तो सकते है मगर परम्परा और रवायत है कि इस बह्र में सभी मुक़ाम पर एक साथ ज़िहाफ़ लगाना उचित नही माना जाता।

इसी लिए ऐसे बहर में कहा जाता है -A- मुकाम पर -2- को -1-किया जा सकता है। यह छूट है शायर को.लाइसेन्स है।

यही FUNDA--बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ वाले में भी था यानी

2122---1212---22 [ यानी पहले वाले -2- के मुक़ाम -1-लाया जा सकता है यानी 1122 किया जा सकता है --कारण वहाँ भी ख़्बन का ज़िहाफ़ लगता है

न हो तो , एक बार चेक कर लें । क्या मैं झूठ बोल्याँ ।

सादर

-आनन्द.पाठक-


[ नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }



रविवार, 21 अप्रैल 2024

बेबात की बात 10 : हिंदी ग़ज़ल में बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ [ क़िस्त 02]

 चर्चा-परिचर्चा : बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ा [क़िस्त 02]

[ पिछली क़िस्त में ग़ज़ल या शे’र के बह्र/वज़न दिखाने के सही तरीक़े पर चर्चा कर रहा था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए----]
अरूज़ बहुत ही आसान और रोचक विषय हैअगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए। ख़ैर।
ग़ज़ल में बह्र या वज़न दिखाने का सही तरीक़ा A---B---C---D फ़ार्मेट में ही होना चाहिए । मगर कुछ लोग इसे A/B/C/D रूप में भी दिखाते है।
यह कहीं लिखा हुआ नही है कि कैसे दिखाना है। यह व्यक्तिगत रूचि का प्रश्न है। मैं व्यक्तिगत रूप से A---B---C---D रूप में ही दिखाना पसन्द करता हूँ जिससे रुक्न/अर्कान की स्पष्टता, सुपाठ्य और समझ बनी रहे।
A---B---C---D क्या हैं ? बह्र में यह अपने अपने मुक़ाम पर प्रयुक्त मान्य और वैध ’रुक्न’ को प्रदर्शित करते है। मान्य और वैध रुक्न से मेरी मुराद --वह रुक्न जो अरूज़ के नियमों से बने हों । यह सालिम रुक्न [ जैसे 122, या 212 या 1222 या 2122 या 2212 आदि] हो सकते हैं या फिर कोई मुज़ाहिफ़ रुक्न [ वह रुक्न जो सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ लगाने से बरामद होते हैं ]
यहाँ कुछ मुज़ाहिफ़ रुक्न आप की जानकारी के लिए लिख रहा हूँ । नाम आप बताइएगा।
222
21
22
2121
2112
2
1221
1212
121
1122
ऐसे ही और कुछ मुज़ाहिफ़ रुक्न --जो सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ के अमल से बनते है । ज़िहाफ़ात --खुद में एक विस्तॄत विषय है जिसकी यहाँ चर्चा नहीं की जा सकती।
यदि आप इच्छुक हों तो मेरे ब्लाग www.arooz.co.in पर देख सकते हैं।
अत: यह स्पष्ट है कि A-B-C-D ्के मुक़ाम पर कोई न कोई रुक्न ही होगा जो मान्य भी होगा और वैध भी होगा जो अरूज़ के नियमों से बना भी होगा।
अपने मन से या मनमानी तरीके से वज़न 1. या 2 के कम्बिनेशन का कुछ भी नहीं लिख सकते।
उदाहरण के लिए--एक बह्र है
1212--1122--1212--22 इसे आप पहचानते होंगे और शायद नाम भी जानते होंगे। अगर नहीं तो गूगल पर खोजिएगा --मिल जाएगा।
अगर इसको हम ऐसे लिख दें -121211-22-121-222 --तो कैसा रहेगा?
या ऐसे लिख दें-12121122121222 तो कैसा रहेगा ? बिलकुल ’CONFUSIVE ’ रहेगा। कुछ भी स्पष्ट न होगा। अच्छे खासे मानूस बह्र की शक्ल ही बिगड़ जाएगी।
अत: इस बहर को
1212--1122--1212--22 फ़ार्म में लिखें तो पता चलेगा कि
-A-के मुक़ाम पर कौन सा रुक्न है [ मुज़ाहिफ़ रुक्न है कि सालिम रुक्न ] और यह रुक्न बना तो कैसे बना?ऐसे ही -B, C. D--मुक़ाम के अर्कान की हैसियत क्या है ?
ध्यान रहे, यह मात्र एक सलाह है। मानने न मानने की कोई बाध्यता नही ।मरजी आप की । बिना इसके भी आप की शायरी कर सकते हैं। कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।
उर्दू में यह प्रश्न नहीं उठता --वो लोग रुक्न के नाम से ही बह्र का नाम लिखते है [ जैसे फ़ाइलुन, मुसतफ़लुन,, मुतफ़ाइलुन---वग़ैरह वग़ैरह।
समस्या हिंदी ग़ज़ल में अर्कान 1 और 2 की कम्बिनेशन में दिखाने की है।
सादर
-आनन्द.पाठक-