शनिवार, 1 जून 2024

बेबात की बात 17 : कुछ बाते शिकस्ता बह्र के बारे में

 चर्चा परिचर्चा : कुछ बातें शिकस्ता बह्र के बारे में


नोट : यह लेख उनके लिए है जो अरूज़-आशना है या जो अरूज़ के बारे में अतिरिक्त जानकारीरखना चाहते हैं। यह लेख पढ़ कर आप लोग विचलित न हों--आप लोग बिना पढ़े भी जैसे शायरी या जैसी शायरी कर रहे हैं, करते रहें]। अरूज़ एक दिलचस्प विषय है -शर्त यह कि आप इसमे दिलचस्पी लें |बह्र-ए-शिकस्त: के बारे में आप लोग बहुत कुछ जानते होंगे। यह लेख उन लोगों की सुविधा के लिए जो नहीं जानते।
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किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने एक ग़ज़ल पेश की और लिखा---
इक खारिज गज़ल
शिक्स्ता बहर के कानून के खिलाफ
" इसे क्या कहोगे ? कहो क्या कहते हो ?"
बहर ए मदीद मुसम्मन सालिम __
2122 212 2122 212
में जरा सा मुस्कुराऊं कहो क्या कहते हो
में तुम्हारे पास आऊं कहो क्या कहते हो //1
क्या हकीक़त में तुम आए हो मेरे सामने
हाथ में तुमको लगाऊं कहो क्या कहते हो //2

फिर किसी मित्र ने पूछा कि -" क्या सालिम बह्र में भी शिकिस्ता बहर होते हैं"
इसी क्रम में बह्र-ए-शिकस्ता --रवा -नारवा का ज़िक्र भी आया और साथ में मेरा नाम भी आया।
[ कुछ मित्र -"रवा"- को -"रवाँ"-भी लिखा। उर्दू में ये दोनो अलग-अलग शब्द हैं और दोनो के अलग-अलग-अर्थ भी है । इस संदर्भ में सही शब्द -रवा- और नारवा ही सही है [जिसका अर्थ होता है-उचित /अनुचित] --रवाँ/नारवाँ नहीं।
एक बात और --या तो बह्र शिकस्ता होगी या शिकस्ता नारवा होगी ।
जो मित्र उर्दू लिपि [ रस्म उल ख़त] पढ़ सकते हों तो इस विषय पर डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ने अपनी किताब -"अरूज़ आहंग और बयान ’ - में विस्तार से लिखा है । आप भी लाभान्वित [ मुस्तफ़ीद। हो सकते हैं ।
अब मूल विषय पर आते हैं।
मित्र ने अपनी ग़ज़ल के बारे में क्या जानना चाहा यह तो -स्पष्ट तो नही मगर मुझे लग रहा है कि वह बह्र-ए-शिकस्ता के बारे में कुछ मालूमात
हासिल करना चाहते है। ख़ैर
प्रश्न - -" क्या सालिम बह्र में भी शिकिस्ता बहर होते हैं"?
उत्तर- नहीं । सालिम बह्र [ जो सात बह्रे --[-मुतक़ारिब--मुतदारिक--हज़ज--रमल--रजज़--कामिल--वाफ़िर] हैं में बह्र-ए-शिकस्ता नहीं होती
लेकिन इन सालिम बह्रों की कुछ मुज़ाहि्फ़ बह्रें [ ज़िहाफ़ शुदा बह्रे ] शिकस्ता होतीं है [ सभी नहीं] , जैसे
हज़ज की 221---1222 // 221--1222
रजज़ की 212---1212 // 212--1212
ऐसी ही एक दो बह्र और

शिकस्ता बह्र कॊई नई बह्र या ख़ास बहर या अलग से कोई बह्र नहीं होती यह आम बह्र की ही एक ख़ास अवस्था होती है जिसपर कुछ
Rider लगे होते हैं ? Rider तो आप सम्झते होंगे? अगर नहीं तो तो शकील बदायूनी साहब के एक शे’र से ज़ाहिर करते है।
वो नाज़नीन जब अपने चाहने वालों के आग्रह पर रुख से निक़ाब उठाने को तैयार हुईं और बालकनी में खड़ी हुई तो शकील साहब ने यह शे’र
पढ़ा---

जो निक़ाब-ए-रुख हटा दी तो यह क़ैद भी लगा दी
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे । ----
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यही क़ैद rider है । यानी बह्र-ए-शिकस्ता के लफ़्ज़ का कोई हर्फ़ [// ] बाम के उस पार तक न पहुंचे।
अगर पँहुच गया तो ?
तो उचित नहीं होगा। ’नारवा’- होगा।
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मगर मुरक़्कब बह्र के बारे में क्या ?
मुरक्कब बह्र [ दो या दो से ज़्यादा सालिम रुक्न से मिल कर बनती है । इसमें भी कुछ बह्रें शिकस्ता होती है [ सभी नहीं] जैसे
मुज़ारे की 221--2122 // 221--2122
मुक़्तज़िब की 2121---2112 //2121---2112
तवील की -----122 1222 // 122--1222
मुज्तस की 1212--1122 // 1212--1122
ऐसी ही एक दो बह्र और।

आप ने 12 रुक्नी [ मुसद्दस मुज़ाइफ़ ] और 16 रुक्नी [ मुसम्मन मुज़ाइफ़ ] की बह्र में भी --//-- ऐसे निशान देखें होगे।
इन बह्रों में यह --//-- निशान बह्र-ए-शिकस्ता का निशान नही है बल्कि यह एक ’अरूज़ी वक़्फ़ा " का निशान होता है जिसका
मतलब होता है -भईया इस मुकाम पर ज़रा रुक कर ठहर कर ज़रा दम तो ले लॊ । वक़्फ़ा का मतलब ही होता है विश्राम/ ठहराव।
ख़ैर
मीर की बह्र में भी आप ने देखा होगा --22--22--22--22 // 22--22-22-2 = 16/14 मात्रा
ध्यान रहे मीर की बहर के दूसरे भाग में एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [2] कम है
और -//- यह निशान यहाँ शिकस्ता का निशान नही-बल्कि इस बात का प्रतीक है कि -// - इस निशान के बाद बह्र अपना रुख बदल लेगी।
जहाँ तक बह्र-ए-मदीद [ऊपर लिखी हुई] का सवाल है तो इसे बह्र-ए-शिकस्ता मैने नही दिया बल्कि डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब ने
अपनी किताब -मेराज-उल-अरूज़- में यही नाम दिया है। जब कि डा0 कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब अपनी किताब -आहंग और अरूज़-
इस बह्र के इस विषय पर ख़ामोश हैं।

इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी
निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर

-आनन्द.पाठक-


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