गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

बेबात की बात 12 : बह्र और अर्कान

 चर्चा परिचर्चा : बह्र और अर्कान

बह्र के चर्चा परिचर्चा के क्रम में मेरे मित्र ने एक सवाल किया था। सवाल यूँ था--
सर जी एक बह्र है==--
बहरे-रजज़ मख़्बून मरफू मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
१२१२-२१२-१२२-१२१२-२१२-१२२
इसको कई बार
१२१२२ -१२१२२ -१२१२२ -१२१२२
भी लिखा देखा है,दोनों मैं कौन सा सही है?
[ नोट
1-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है शर्त यह कि इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए
और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।
2- बहुत से मित्रों को शिकायत है कि अरूज़ बह्र की बाते उनके सर के ऊपर से निकल जाती है, पढ़ने से सरदर्द होने लगता है तो मेरी
सलाह यही है कि अगर अरूज़ [ उर्दू ग़ज़ल का व्याकरण ] से आप की दिलचस्पी नहीं है तो इस लेख को न पढ़े।आप 2-3 बार
पढ़े तो ज़रूर कुछ न कुछ ज़रूर समझ में आएगा।
3- ्शायरी करने के लिए अरूज़ का जानना ज़रूरी नहीं। बिना जाने और समझे भी शायरी की जा सकती है। यह तो व्यक्तिगत रूचि का
प्रश्न है । यह वैसे ही ज़रूरी नहीं है जैसे बिना भाषा का व्याकरण जाने हुए भी आप लिखते पढते बोलते तो हैं ही।
4- एक अच्छा शायर -एक अच्छा अरूज़ी हो ज़रूरी नहीं या एक अच्छा अरूज़ी एक अच्छा शायर हो यह भी ज़रूरी नही। वैसे ही जैसे
एक अच्छा ड्राइवर एक अच्छा मेकैनिक भी हो या otherwise । मैं दोनों ही नहीं--बस अदब आशना हूँ आप लोगों से जो सीखता हूँ वही अपनी तोतली ज़बान में यहाँ परोस देता हूँ।
5- अगर अरूज़ के बारे में [मज़ीद ] अतिरिक्त जानकारी हो जाए तो कुछ बुरा भी नहीं
6- आप चाहे तो मेरे इन तमाम तर्क को 1-लाइन में ख़ारिज़ कर सकते है --मैं बहर -वहर, अजन वज़न अर्कान फ़र्कान कुछ नहीं
मानता --मै तो बस दिल से जो बात निकलती है है उसे ही ग़ज़ल मानता हूँ।
--तो तब तो बात ही खत्म।
ख़ैर
अब सवाल पर आते हैं-
सवाल अधूरा था इसे यूँ पूरा करते है --
[क] --1212--212--122--1212--212--122
[ख] 12122---12122---12122--12122
[ग] 121---22/ 121-22/ 121--22 /121-22

क्या ये तीनो बह्र एक हैं । अगर हम -- -- या / -- / से रुक्न को न दिखाएँ तो confusion पैदा हो सकता कि यह बह्र कौन सी है
इसीलिए मेरी राय है कि बह्र और रुक्न को A---B---C---D FORMAT में दिखाया जाय तो बह्र समझने में स्पष्टता बनी रहती है
मैं यहाँ बह्र का नाम ,अर्कान का नाम नहीं लिखूगा बह्र समझने में सुविधा रहेगी। नाम वग़ैरह आप लिख लीजिएगा ।समझ लीजिएगा।
अगर आप कहिएगा तो मैं भी लिख दूँगा।
[क] 1212--212--122--1212--212--122 इस बह्र को इस तरक़ीब से दिखाया जाता तो बेहतर रहा होता=--
1212---212--122 // 1212--1212--122
यह किसी बह्र-ए-रजज़ के मुसद्दस मुज़ाहिफ़ की मुज़ाइफ़ [ दोगुनी की हुई ] बह्र है। और यह अरूज़ के नियम क़ायदे क़ानून से हासिल
हुई है तो एक मान्य व वैध बह्र है । यह बात अलग कि यह बहुत प्रचलित बह्र नहीं है और लोग इस बह्र में कम ही शायरी करते है
अगर आप चाहें तो आप इस बह्र में शायरी कर सकते है।्कोई मनाही भी नहीं।

[ख] 12122--12122---12122--12122
यह भी एक मान्य व वैध बह्र है यह भी अरूज़ के नियम क़ायदे से बने हुए है । Actually यह 8- हर्फ़ी रुक्न है । अब तक आप ने Classical अरूज़
में जितने भी अर्कान पढ़े होंगे वह या तो 5-हर्फ़ी अर्कान थे [ जैसे 122 या 212 ] या फिर 7-हर्फ़ी अर्कान थे [ जैसे 1222 या 2122 या 2212 या 11212
आदि आदि] ।आप ने 8-हर्फ़ी अर्कान नहीं देखे होंगे। इसकी सबसे पहले चर्चा --कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब ने अपनी किताब ;आहंग और अरूज़’
में किया है ।इन 8-हर्फ़ी अर्कान पर अलग से चर्चा की जा सकती है । फिलवक़्त आप यही समझ लें कि 12122 एक आठ हर्फ़ी रुक्न है
और सिद्दक़ी साहब ने इस रुक्न का नाम "जमील" दिया है तो इस बह्र का नाम हो जाएगा
बह्र-ए-जमील मुसम्मन सालिम
यह बह्र या ऐसी बह्रें बहुत प्रचलन में न आ सकी । कारण ? विस्तृत कारणों की चर्चा कभी बाद में करेंगे।
[ग] संक्षेप में कारण यह कि यह अर्कान [ मात्रा भार वही मगर किसी और शकल में ]क्लासिकल अरूज़ में पहले से मौज़ूद था
जैसे [121--22]---[121--22]---[121--22 ] --[121--22 ]
और कमाल साहब ने इसे बह्र-ए-मुतक़ारिब के अतर्गत रखा ।

जब कि कुछ अरूज़ियों ने इसे बह्र-ए-मुक्तज़िब के अन्तर्गत रखा । क्यों रखा--? इसमे दोनों ग्रुप की अपनी अपनी दलीलें है
हम लोगों को उन दलीलों में नहीं पड़ना वरना सरदर्द बढ़ सकता है।
[नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }
सादर

-आनन्द.पाठक-

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

बेबात की बात 11 : यह कौन सी बह्र है [ 2122---1122--1122---22 ]

 बेबात की बात 11 : यह  कौन सी बह्र है ?

2122---1122---1122---22

[ नोट-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है अगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।


पिछले दिनों चर्चा परिचर्चा के क्र्म में मेरे एक मित्र ने  सवाल किया कि

2122---1122---1122---22  यह कौन सी बह्र है?

एक लाइन में इसका जवाब है - बह्र-ए-रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ -

 और अर्कान है

फ़ाइलातुन--फ़अ’लातुन--फ़ अ’लातुन--फ़अ’लुन


अगर आप इस जवाब से सन्तुष्ट है तो आगे कि बात ही खत्म। इतना ही काफ़ी है -शायरी करने के लिए।

--------

अगर आप इतने से सन्तुष्ट नहीं है और आप की प्यास अभी बुझी नहीं, मज़ीद जानने की तलब बनी हुई है

तो आगे बढ़ते है कि यह बह्र कैसे बनी, यह नाम कैसे पड़ा वग़ैरह वग़ैरह।

यह बह्र कैसे बनी ?

आप इस बह्र को तो पहचानते होंगे--और नाम भी जानते होंगे। 

[क] 2122---2122---2122---2122 

-A-   ----B------C-----D

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम । सही ?

यह तो आप जानते हीं होंगे कि किसी शे’र में

-A-   के मुक़ाम को सदर/इब्तिदा कहते है

-B--C--  के मुक़ाम को  हस्व कहते है

-D-  ले मुक़ाम को जर्ब’/अरूज़ कहते हैं

अब इस बह्र पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल करते हैं। वैसे इल्मे--ज़िहाफ़ खुद में एक विस्तृत विषय है । ऎ कैसे  अमल करते है, इनकी शर्ते क्या है

-अभी इस पर बात नही करेंगे। परन्तु संक्षेप में एक दो बात कर लेते है।

ज़िहाफ़ 2-प्रकार के होते है

1- आम ज़िहाफ़ = जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लग सकता है यानी -A-   ----B------C-----D कहीं भी लगाया जा सकता है

2- ख़ास ज़िहाफ़ = जो शे’र के ख़ास मुक़ाम पर ही लग सकता है यानी या तो -A-  मुक़ाम पर लग सकता है या फिर  -D- मुक़ाम पर


हज़्फ़ -एक ऐसा ही ख़ास ज़िहाफ़ है जो सिर्फ़ --ड- मुक़ाम पर [ अरूज़/जर्ब] ही लगता है और इस ज़िहाफ़ की अमल से सालिम रुक्न [2122] की शकल 

बदल जाती है -इस बदली हुई शक्ल या बरामद रुक्न को महज़ूफ़ कहते है ।यानी

2122+ हज़्फ़ = 22 [ यह 2122 की महज़ूफ़ शकल है।

[क]  2122---2122---2122---22 अब इस बह्र को क्या कहेंगे? कुछ नहीं  SIMPLE

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम महज़ूफ़ 


ख़ब्न = एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । एक साथ लगाया जा सकता है या एक -एक रुक्न पर लगाया जा सकता है।

और इस ज़िहाफ़ के अमल से सालिम रुक्न [2122 ] की शकल बदल जाती है और इस बदली हुई शकल या बरामद रुक्न को ’मख़्बून’ कहते है। यानी

2122 + ख़ब्न = 1122 [ यह 2122 की मख़्बून शकल है। मगर अब इस ज़िहाफ़ को मुक़ाम -D- पर नहीं लगा सकते क्यों कि उस मुक़ाम को मैने ALREADY

हज़्फ़ ज़िहाफ़ लगा कर LOCK कर रखा है।

यानी 

2122---2122---1122---22 

या

2122--1122---1122--22  [ जो आप का सवाल है।

एक दिलचस्प बात --इन दोनॊ बह्रों का नाम-क्लासिकल अरूज़ के हिसाब से - एक ही होगा 

बह्र-ए- रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ ।

क्लासिकल अरूज़ के नामकरण पद्धति कुछ कमियाँ थी --इससे यह पता नही चलता है कि ’ख़ब्न’ वाला ज़िहाफ़ किस मुक़ाम पर लगा है। अत: आधुनिक नाम

प्रणाली में यह कमी दूर कर ली गई। अब इसका नाम होगा

बह्र-ए-रमल मख़बून मख़्बून महज़ूफ़ ---बिलकुल स्पष्ट की ख़्बन वाला ज़िहाफ़ किस किस मुक़ाम पर लगा है । NO CONFUSION |

अच्छा। एक बात और--

यह ख्बन वाला ज़िहाफ़ जब आम ज़िहाफ़ है तो -A- पर क्यॊं नही लगा सकते। बिलकुल लगा सकते है।   

लगा कर देखते हैं  क्या होता है। 

1122--1122--1122--22  होगा

नाम वही होगा --बहर-ए-रमल मख़्बून मख़्बून महज़ूफ़ ही रहेगा।

अब आप कहेंगे कि इसमे 2122 तो दिखाई नहीं दे रहा है तो रमल का नाम क्यों?

भई -- घर तो मूलत: उसी का है नाम रहेगा  तो पता चलेगा कि यह बह्र किस वंश परम्परा की है और इस पर कौन कौन से ज़िहाफ़ अमल कर सकते है।

ख़ैर --अब बात  RULES बनाम परम्परा /रिवायत की ।

TECHNICALLY  -A- मुक़ाम पर खब्न का ज़िहाफ़ लगा तो सकते है मगर परम्परा और रवायत है कि इस बह्र में सभी मुक़ाम पर एक साथ ज़िहाफ़ लगाना उचित नही माना जाता।

इसी लिए ऐसे बहर में कहा जाता है -A- मुकाम पर -2- को -1-किया जा सकता है। यह छूट है शायर को.लाइसेन्स है।

यही FUNDA--बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ वाले में भी था यानी

2122---1212---22 [ यानी पहले वाले -2- के मुक़ाम -1-लाया जा सकता है यानी 1122 किया जा सकता है --कारण वहाँ भी ख़्बन का ज़िहाफ़ लगता है

न हो तो , एक बार चेक कर लें । क्या मैं झूठ बोल्याँ ।

सादर

-आनन्द.पाठक-


[ नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }



रविवार, 21 अप्रैल 2024

बेबात की बात 10 : हिंदी ग़ज़ल में बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ [ क़िस्त 02]

 चर्चा-परिचर्चा : बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ा [क़िस्त 02]

[ पिछली क़िस्त में ग़ज़ल या शे’र के बह्र/वज़न दिखाने के सही तरीक़े पर चर्चा कर रहा था। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए----]
अरूज़ बहुत ही आसान और रोचक विषय हैअगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए। ख़ैर।
ग़ज़ल में बह्र या वज़न दिखाने का सही तरीक़ा A---B---C---D फ़ार्मेट में ही होना चाहिए । मगर कुछ लोग इसे A/B/C/D रूप में भी दिखाते है।
यह कहीं लिखा हुआ नही है कि कैसे दिखाना है। यह व्यक्तिगत रूचि का प्रश्न है। मैं व्यक्तिगत रूप से A---B---C---D रूप में ही दिखाना पसन्द करता हूँ जिससे रुक्न/अर्कान की स्पष्टता, सुपाठ्य और समझ बनी रहे।
A---B---C---D क्या हैं ? बह्र में यह अपने अपने मुक़ाम पर प्रयुक्त मान्य और वैध ’रुक्न’ को प्रदर्शित करते है। मान्य और वैध रुक्न से मेरी मुराद --वह रुक्न जो अरूज़ के नियमों से बने हों । यह सालिम रुक्न [ जैसे 122, या 212 या 1222 या 2122 या 2212 आदि] हो सकते हैं या फिर कोई मुज़ाहिफ़ रुक्न [ वह रुक्न जो सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ लगाने से बरामद होते हैं ]
यहाँ कुछ मुज़ाहिफ़ रुक्न आप की जानकारी के लिए लिख रहा हूँ । नाम आप बताइएगा।
222
21
22
2121
2112
2
1221
1212
121
1122
ऐसे ही और कुछ मुज़ाहिफ़ रुक्न --जो सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ के अमल से बनते है । ज़िहाफ़ात --खुद में एक विस्तॄत विषय है जिसकी यहाँ चर्चा नहीं की जा सकती।
यदि आप इच्छुक हों तो मेरे ब्लाग www.arooz.co.in पर देख सकते हैं।
अत: यह स्पष्ट है कि A-B-C-D ्के मुक़ाम पर कोई न कोई रुक्न ही होगा जो मान्य भी होगा और वैध भी होगा जो अरूज़ के नियमों से बना भी होगा।
अपने मन से या मनमानी तरीके से वज़न 1. या 2 के कम्बिनेशन का कुछ भी नहीं लिख सकते।
उदाहरण के लिए--एक बह्र है
1212--1122--1212--22 इसे आप पहचानते होंगे और शायद नाम भी जानते होंगे। अगर नहीं तो गूगल पर खोजिएगा --मिल जाएगा।
अगर इसको हम ऐसे लिख दें -121211-22-121-222 --तो कैसा रहेगा?
या ऐसे लिख दें-12121122121222 तो कैसा रहेगा ? बिलकुल ’CONFUSIVE ’ रहेगा। कुछ भी स्पष्ट न होगा। अच्छे खासे मानूस बह्र की शक्ल ही बिगड़ जाएगी।
अत: इस बहर को
1212--1122--1212--22 फ़ार्म में लिखें तो पता चलेगा कि
-A-के मुक़ाम पर कौन सा रुक्न है [ मुज़ाहिफ़ रुक्न है कि सालिम रुक्न ] और यह रुक्न बना तो कैसे बना?ऐसे ही -B, C. D--मुक़ाम के अर्कान की हैसियत क्या है ?
ध्यान रहे, यह मात्र एक सलाह है। मानने न मानने की कोई बाध्यता नही ।मरजी आप की । बिना इसके भी आप की शायरी कर सकते हैं। कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।
उर्दू में यह प्रश्न नहीं उठता --वो लोग रुक्न के नाम से ही बह्र का नाम लिखते है [ जैसे फ़ाइलुन, मुसतफ़लुन,, मुतफ़ाइलुन---वग़ैरह वग़ैरह।
समस्या हिंदी ग़ज़ल में अर्कान 1 और 2 की कम्बिनेशन में दिखाने की है।
सादर
-आनन्द.पाठक-

बेबात की बात 09: हिंदी ग़ज़ल में बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ा [क़िस्त 01]


बेबात की बात 09 : बह्र और वज़न दिखाने का सही तरीक़ा [क़िस्त 01]

पिछले अंक में में मैने एक चर्चा की थी कि जब ग़ज़लें हिंदी [ देवनागरी]
में लिखी जाने लगी तो क्या क्या मसले लेकर आईं। उन्ही मसलों में एक मसला
ग़ज़ल के --बह्र और वज़न -दिखाने के तरीक़े का भी है।
चूँकि ग़ज़ल उर्दू की एक काव्य विधा है अत: बहुत से नियम कायदे क़ानून उर्दू अरूज़ से सीधे लेलिए गए मगर हम हिंदी वाले बहुत कुछ अपने हिसाब से और अपनी सुविधा से एक अन्य व्यवस्ठा बना लिए हैं।
इस व्यवस्था में अर्कान को दिखाने के लिए
122--/212--1222 ---यानी computer की भाषा में Binarry System जैसा कुछ। या फिर
लघु--दीर्घ--लघु--दीर्घ-- या 1SS--S1S--1SSS -आदि व्यवस्था बना ली
कुछ मित्रों ने तो अपनी सुविधा के लिए--ललाला--लाला -ललाला -लाला-जैसी व्यवस्था भी बना ली है।
मगर उर्दू वाले आज भी अपने अर्कान के नाम --फ़ेलुन--फ़ाइलुन--मफ़ाईलुन--
हरकत--साकिन--सबब-वतद आदि व्यवस्था पर भरोसा करते है।
उदाहरणत:--
उर्दू वाले बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम बह्र को
फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन --फ़ाइलुन दिखाएंगे । जब कि हम हिंदी वाले [ सभी नहीं] इसी चीज़ को
212- -212-------212-----212- से दिखाते हैं ।
गड़बड़ तब हो जाती है जब हमारे कुछ मित्र इसी चीज़ को यूँ दिखाते है
212212212212 जो बह्र के स्वरूप को पहचानने में दिक्कत होती है। मात्रा भार वज़न बराबर हो सकता है
थाली में भोजन के अवयव सब हैं मगर परोसने का ढंग सही नहीं है।
उसी प्रकार
बह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम को उर्दू वाले
फ़ाइलातुन --फ़ाइलातुन --फ़ाइलातुन कर के दिखाएँगे । मगर हम हिंदी वाले इस को
2122-------- 2122------2122 कर के दिखाते हैं।
दोनॊ व्यवस्था में कोई अन्तर नही है । दोनों व्यवस्था एक ही बह्र को प्रदर्शित करते है ।
गड़बड़ तब हो जाती है जब हमारे कुछ मित्र इसी चीज़ को यूँ दिखाते है
2122212222122--ऐसे दिखाना ठीक नही है।

एक बार एक सज्जन ने
2122--1212--112 को इस प्रकार दिखा दिया
21221212112---ऐसे दिखाना ठीक नही है। कारण 21221212112 --जैसा कोई रुक्न ही नहीं है । तो भइया ऐसे क्यों दिखाते हो।
या
221--1222--221--1222 को
2211222 2211222 जैसे दिखाना ठीक नहीं है॥ कारण वही --2211222 -जैसा कोई रुक्न नही होता।
122 हो या 221 हो या 2121 हो या 1221 हो--यह सभी एक रुक्न को प्रदर्शित करते है एक इकाई को प्रदर्शित करते है एक वज़न को प्रदर्शित करते हैं।
एक बात और -कि यह व्यवस्था शुरुआती तौर पर नए नए लोगों के लिए तो ठीक हैं मगर Full Proof नहीं है । कारण -1- हम मुतहर्रिक हर्फ़ के दिखाने के लिए भी प्रयोग करते है और साकिन हर्फ़ दिखाने के लिए भी ।
221--2121--1221--2121 [ इस बहर को आप पहचानते होंगे।
221--का -1- और आख़िरी 2121 का -1- क्या एक ही है ? नहीं --पहला -1- [ मुतहर्रिक] है और आख़िरी -1- [ साकिन ] है मगर दिखाया दोनो को -1- से ही जाता है।
आप जानते है कि 122--या 212--या 1222 सिर्फ़ एक संख्या या डिजिट मात्र नहीं है अपितु यह किसी न किसी मान्य व वैध रुक्न का Numerical Representation मात्र हैऔर किसी बह्र में इनके क्रम निर्धारित रहते है। हम अपने मन से यह क्रम बदल नही सकते। इन्हे मनमाने ढंग से नहीं लिख सकते।
प्राय: लोगों को यह कहते हुए आप ने सुना होगा कि हम किसी 1 1 =2 कर सकते है । जी नहीं । हमेशा नहीं। यह कोई Mathematical operation नहीं है वैसे ही जैसे टेलिफ़ोन के नं पर Mathematical operation नहीं हो सकता।
हाँ यह सच है कि कभी कभी 1 1 =2 कर सकते हैं मगर उसकी कुछ शर्तें होती हैं। कुछ विशेष परिस्थितियाँ होती हैं । अभी यहाँ उस पर विवेचना नहीं करूँगा।
हमारे एक मित्र थे -प्राण शर्मा जी । अच्छे ग़ज़लकार थे। ख़ुदा मग़फ़िरत करे। उनसे प्राय: बात होती थी। वह कहा करते थे--पाठक जी ! ग़ज़ल के ऊपर बह्र [ वज़न] लिखने का कोई मतलब नहीं है।जो अरूज़ के जानकार है वह बह्र समझ जातें है और जो जानकार नहीं है उन्हे लिखने न लिखने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मैं हर बार हँस कर यही कहता था ---क्या करें सर ! ये मंच वाले मानते ही नहीं इसरार करते रहते है। ख़ैर।
सवाल यह कि --तो फिर हम क्या करें।
1- अगर आप बह्र वज़न और रुक्न जानते हैं या समझते हैं तो ग़ज़ल के ऊपर ज़रूर लिखे और हो सके तो उस रुक्न [ वज़न] का नाम भी लिख दें
2- अगर नहीं जानते हैं तो बेहतर है कि न ही लिखें । गडम गड कर के न लिखें।
आप पाठकों की राय क्या है -ज़रूर बताएँ।
सादर
-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 3 अप्रैल 2024

बेबात की बात 08 :ग़ालिब के ग़ज़ल की तक़्तीअ’ [ क़िस्त 2]

 एक चर्चा :-_ ग़ालिब_के_एक_ग़ज़ल_की_तक़्तीअ’ [ क़िस्त -2]

मित्रो !
पिछली क़िस्त में ग़ालिब के एक ग़ज़ल के एक शे’र की तक़्तीअ’ की थी । लेख लम्बा न हो जाए ,इसलिए वहाँ एक ही शे’र की तक़्तीअ’ की थी। आज बाक़ी अश’आर की तक़्तीअ’ कर के देखते है।
शे’र 2
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
काव काव-ए/-सख़्तजानी/ हाय तनहा/ई न पूछ
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
सुबह करना /शाम का ला/ना है जू-ए- /शीर का ।

अब आप कहेंगे काव-काव ए-/ को हमने 2 1 2 2 के वज़न पर क्यों लिया ? यहाँ भी तो कसरा-ए-इजाफ़त है?
जी बिलकुल सही । मगर आप ने ध्यान से नहीं देखा -- शोख़ी- मे -ए-के पहले एक मात्रा,स्वर [बड़ी -इ- की मात्रा] थी । काव में
-ए- के पहले कोई मात्रा नही है --यानी -व- यहाँ मात्रा विहीन है यानी उर्दू ज़ुबान में -व- साकिन है \
अब व- कसरा के प्रभाव से यही -व- दो रूप अख्तियार कर सकता है या तो-व- मुतहर्रिक [1 ] का वज़न देगा या फिर
-वे- [2] का वज़न देगा --जैसी बह्र की मांग हो । चूंकि यहां -2- की माँग है तो हम इसे -2- की वज़न पर लेंगे और
इस -व- को -वे-[ खींच कर] पढ़ेंगे
अत: काव-काव-ए- / को काव कावे [ 21 22 ] वज़न पर पढ़ेंगे ।

[ एक बात नोट करने की--एक मित्र ने कहा कि-ए- का कोई वज़्न नहीं होता। जी बिलकुल सही। --उर्दू- स्क्रिप्ट में --कसरा ए इज़ाफ़त को =ए= से दिखाते
भी नहीं } वो लोग तो बस सामने वाले -हर्फ़ के नीचे एक निशान [ ,] जिसे अरबी में कसरा ,उर्दू में ज़ेर कहते है --से दिखाते हैं । वह तो हम लोग देवनागरी में इसे समझने
के लिए -ए- लिख देते हैं । अँगरेजी वाले-e- लिख देते हैं। कुछ लोग तो हिंदी में -ए- भी नहीं लिखते बस Direct ग़मे-दिल , दर्दे-दिल लिख देते हैं
यह तो लिखने का / दिखाने का अपन अपना तरीक़ा है बस।]
अब आप पूछेंगे कि ’सुबह’ को 21 पर क्यों लिया " देखने में और पढ़ने में तो यह 1 2 की चीज़ लगती है। जी बिलकुल सही।
इस विषय पर [ जैसे शहर--ज़हर--वहम--वज़ह - अकल--ज़ेहन-आदि] के वज़न पर कभी बाद में अलग से चर्चा करुँगा } बस आप यहाँ इतना समझ लें कि देवनागरी
लिपि में हम भले ही इसे सुबह लिखे या हिंदी में सुबह बोलें मगर उर्दू में इसका सही तलफ़्फ़ुज़ सु्ब् ह् [ 2 1 ] ही है \ यानी ब-साकिन--ह साकिन
जू-ए-शीर में ? वही बात जो पिछली क़िस्त [1] में शोख़ी-ए-तहरीर के बारे में लिखा था।
---- ---
शे’र 3-
2 1 2 2/ 2 2 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
जज़्बा-ए-बे/अख्तियार-ए-/शौक़ देखा/ चाहिए
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
सीना-ए-शम/शीर से बा/हर है दम शम/शीर का ।

जज़्बा को 21 के वज़न पर क्यों लिया ? देखने में तो जज़्बा 22 का दिख रहा है । देवनागरी में भले दिख रहा हों --उर्दू स्क्रिफ्ट में नहीं दिखेगा । इस शब्द के आख़िर में हा-ए-हूज़ ख़फ़ी अवस्था में है --जिसे आप जज़्ब: की तरह पढ़ेंगे यानी जज़् ब: [2 1 ] । कभी अगर ज़रूरत पड़ी तो इसे जज़् बा [2 2 ] की तरह भी पढ़ेंगे। यह सब -हा-ए-हूज़ का कमाल है।जिसे आप कभी कभी मात्रा पतन के नाम से मन्सूब कर देते है। ख़ैर।
अख़्तियार-ए-शौक़ ? अख ति या रे [ 2 1 2 2 ] -र- ने -ए-को अपने सर चढ़ा लिया । चढ़ा सकता है --नहीं भी चढ़ा सकता है। चूंकि यहाँ उसे वज़न [2] की ज़रूरत थी सो चढ़ा लिया।
सीना = 21 क्यों ? वही बात जो जज़्बा के साथ । सीना को आप सीन: [2 1 ]के वज़न पर पढ़े -यहाँ भी शब्द के आख़िर में -हाए--हूज़ मुख्तफ़ी है जो -न- को 1- का वज़न कर दे रहा है।
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शे’र 4
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 [1]
आगही दा/म-ए-शुनीदन /जिस क़दर चा/हे बिछाए
2 1 2 2 / 2 1 2 2/ 2 1 2 2 / 2 1 2
मुद्दआ’ अन /क़ा है अपने /आलम-ए-तक़/रीर का ।

दाम-ए-शुनीदन को हम यहा -दा/मे शुनीदन / [ 2 1 2 2 ] के वज़न पर पढ़ेंगे? क्यों भाई? वही बात की -म - ने -ए- को अपने सर पर चढ़ा कर अपना वज़न [2] कर लिया क्योंकि उसे यहाँ 2 की ज़रूरत थी। अगर ज़रूरत न होती तो वह कभी अपने सर पर वज़न न बढता ।यही बात आलम-ए-तकरीर में भी है।
तो फिर मुद्दाआ’ अन्क़ा में ?
जी -मुद्दआ’- को ऐसे तोड़ कर पढ़े ---मुद द आ’ [ यानी 2 1 2 ] ऐसे लफ़्ज़ को उर्दू में तश्दीद शुदा लफ़्ज़ कहते है [ जैसे मुद्दत --जन्नत-- शिद्दत--] ऐसे शब्दों का वज़न दो भागो से बनता है
जैसे शिद्दत = शिद दत [2 2]
मुद्दत = मुद दत [2 2 ]
मुद्दआ = मुद द आ [ 2 1 2 ]
/ हे बिछा ए / 2 1 2 2 क्यों नहीं लिया } कारण? यहाँ -ए- [ बिछाए का हिस्सा है] जिसे -1- की वज़न पर पढ़ा जाएगा} किसी मिसरा के आख़िर में एक साकिन हर्फ़ बढ़ाने से [ यहाँ -ए साकिन] मिसरा के वज़न में कोई फ़र्क नहीं पड़ता---इस विषय पर इसी मंच पर पहले भी चर्चा कर चुका हूँ।
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शे’र 5
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
बस कि हूँ ग़ा/ लिब असीरी /में भी आतिश/ ज़ेर-ए-पा
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
मू-ए-आतिश / दीदा है हल् /का मेरी ज़न/जीर का ।

-ग़ालिब-

दीदा=21 वही बात जो ऊपर जज़्बा--सीना के साथ है। दीदा को दो प्रकार से पढ़ा जा सकता है -दीद: [21] --या दीदा [2 2] जैसा रुक्न की माँग हो।
-ज़ेर-ए-पा -को 2 1 2 के वज़न पर क्यॊं लिया? ज़ेरे-पा [2 2 2 ] पर क्यों नहीं लिया । - र- को 2 की ज़रूरत नहीं पड़ी यहाँ सो -ए- को अपने सर पर नहीं लिया
बिना -रे - से उसका काम चल रहा है यहाँ तो क्यों ख़ामख़्वाह में अपने सर पर बोझ ले।
मू-ए-आतिश = 2 1 2 2 वही बात यहाँ भी । मू -में उ है और उसके बाद -ए- । पहले भी लिख चुका हूँ यह -ए- भी ज़रूरत के मुताबिक़ कभी -1- कभी -2- का वज़न ग्रहण करेगा।

दीदा = 2 1 क्यों ?
ग़ालिब यूँ ही तो ग़ालिब नहीं कहे जाते।
अब आप समझ गए होंगे की लफ़्ज़ अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ [ अरूज़ और उर्दू व्याकरण की हद में रह कर ] वज़न ग्रहण करते हैं। और तलफ़्फ़ुज़ भी उसी प्रकार से करते है।
मात्रा पतन नाम की कोई कन्सेप्ट अरूज़ में नहीं है--बस तलफ़्फ़ुज़ दबा कर या खींच कर का कन्सेप्ट है।

इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता [ करबद्ध ] गुज़ारिश है कि अगर तक़्तीअ’ करने में कुछ ग़लती हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़र्माएँ कि मैं ख़ुद को आइन्दा दुरूस्त कर सकूँ}---सादर।


आनन्द #पाठक-