गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

बेबात की बात 12 : बह्र और अर्कान

 चर्चा परिचर्चा : बह्र और अर्कान

बह्र के चर्चा परिचर्चा के क्रम में मेरे मित्र ने एक सवाल किया था। सवाल यूँ था--
सर जी एक बह्र है==--
बहरे-रजज़ मख़्बून मरफू मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
१२१२-२१२-१२२-१२१२-२१२-१२२
इसको कई बार
१२१२२ -१२१२२ -१२१२२ -१२१२२
भी लिखा देखा है,दोनों मैं कौन सा सही है?
[ नोट
1-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है शर्त यह कि इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए
और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।
2- बहुत से मित्रों को शिकायत है कि अरूज़ बह्र की बाते उनके सर के ऊपर से निकल जाती है, पढ़ने से सरदर्द होने लगता है तो मेरी
सलाह यही है कि अगर अरूज़ [ उर्दू ग़ज़ल का व्याकरण ] से आप की दिलचस्पी नहीं है तो इस लेख को न पढ़े।आप 2-3 बार
पढ़े तो ज़रूर कुछ न कुछ ज़रूर समझ में आएगा।
3- ्शायरी करने के लिए अरूज़ का जानना ज़रूरी नहीं। बिना जाने और समझे भी शायरी की जा सकती है। यह तो व्यक्तिगत रूचि का
प्रश्न है । यह वैसे ही ज़रूरी नहीं है जैसे बिना भाषा का व्याकरण जाने हुए भी आप लिखते पढते बोलते तो हैं ही।
4- एक अच्छा शायर -एक अच्छा अरूज़ी हो ज़रूरी नहीं या एक अच्छा अरूज़ी एक अच्छा शायर हो यह भी ज़रूरी नही। वैसे ही जैसे
एक अच्छा ड्राइवर एक अच्छा मेकैनिक भी हो या otherwise । मैं दोनों ही नहीं--बस अदब आशना हूँ आप लोगों से जो सीखता हूँ वही अपनी तोतली ज़बान में यहाँ परोस देता हूँ।
5- अगर अरूज़ के बारे में [मज़ीद ] अतिरिक्त जानकारी हो जाए तो कुछ बुरा भी नहीं
6- आप चाहे तो मेरे इन तमाम तर्क को 1-लाइन में ख़ारिज़ कर सकते है --मैं बहर -वहर, अजन वज़न अर्कान फ़र्कान कुछ नहीं
मानता --मै तो बस दिल से जो बात निकलती है है उसे ही ग़ज़ल मानता हूँ।
--तो तब तो बात ही खत्म।
ख़ैर
अब सवाल पर आते हैं-
सवाल अधूरा था इसे यूँ पूरा करते है --
[क] --1212--212--122--1212--212--122
[ख] 12122---12122---12122--12122
[ग] 121---22/ 121-22/ 121--22 /121-22

क्या ये तीनो बह्र एक हैं । अगर हम -- -- या / -- / से रुक्न को न दिखाएँ तो confusion पैदा हो सकता कि यह बह्र कौन सी है
इसीलिए मेरी राय है कि बह्र और रुक्न को A---B---C---D FORMAT में दिखाया जाय तो बह्र समझने में स्पष्टता बनी रहती है
मैं यहाँ बह्र का नाम ,अर्कान का नाम नहीं लिखूगा बह्र समझने में सुविधा रहेगी। नाम वग़ैरह आप लिख लीजिएगा ।समझ लीजिएगा।
अगर आप कहिएगा तो मैं भी लिख दूँगा।
[क] 1212--212--122--1212--212--122 इस बह्र को इस तरक़ीब से दिखाया जाता तो बेहतर रहा होता=--
1212---212--122 // 1212--1212--122
यह किसी बह्र-ए-रजज़ के मुसद्दस मुज़ाहिफ़ की मुज़ाइफ़ [ दोगुनी की हुई ] बह्र है। और यह अरूज़ के नियम क़ायदे क़ानून से हासिल
हुई है तो एक मान्य व वैध बह्र है । यह बात अलग कि यह बहुत प्रचलित बह्र नहीं है और लोग इस बह्र में कम ही शायरी करते है
अगर आप चाहें तो आप इस बह्र में शायरी कर सकते है।्कोई मनाही भी नहीं।

[ख] 12122--12122---12122--12122
यह भी एक मान्य व वैध बह्र है यह भी अरूज़ के नियम क़ायदे से बने हुए है । Actually यह 8- हर्फ़ी रुक्न है । अब तक आप ने Classical अरूज़
में जितने भी अर्कान पढ़े होंगे वह या तो 5-हर्फ़ी अर्कान थे [ जैसे 122 या 212 ] या फिर 7-हर्फ़ी अर्कान थे [ जैसे 1222 या 2122 या 2212 या 11212
आदि आदि] ।आप ने 8-हर्फ़ी अर्कान नहीं देखे होंगे। इसकी सबसे पहले चर्चा --कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब ने अपनी किताब ;आहंग और अरूज़’
में किया है ।इन 8-हर्फ़ी अर्कान पर अलग से चर्चा की जा सकती है । फिलवक़्त आप यही समझ लें कि 12122 एक आठ हर्फ़ी रुक्न है
और सिद्दक़ी साहब ने इस रुक्न का नाम "जमील" दिया है तो इस बह्र का नाम हो जाएगा
बह्र-ए-जमील मुसम्मन सालिम
यह बह्र या ऐसी बह्रें बहुत प्रचलन में न आ सकी । कारण ? विस्तृत कारणों की चर्चा कभी बाद में करेंगे।
[ग] संक्षेप में कारण यह कि यह अर्कान [ मात्रा भार वही मगर किसी और शकल में ]क्लासिकल अरूज़ में पहले से मौज़ूद था
जैसे [121--22]---[121--22]---[121--22 ] --[121--22 ]
और कमाल साहब ने इसे बह्र-ए-मुतक़ारिब के अतर्गत रखा ।

जब कि कुछ अरूज़ियों ने इसे बह्र-ए-मुक्तज़िब के अन्तर्गत रखा । क्यों रखा--? इसमे दोनों ग्रुप की अपनी अपनी दलीलें है
हम लोगों को उन दलीलों में नहीं पड़ना वरना सरदर्द बढ़ सकता है।
[नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }
सादर

-आनन्द.पाठक-

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

बेबात की बात 11 : यह कौन सी बह्र है [ 2122---1122--1122---22 ]

 बेबात की बात 11 : यह  कौन सी बह्र है ?

2122---1122---1122---22

[ नोट-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है अगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।


पिछले दिनों चर्चा परिचर्चा के क्र्म में मेरे एक मित्र ने  सवाल किया कि

2122---1122---1122---22  यह कौन सी बह्र है?

एक लाइन में इसका जवाब है - बह्र-ए-रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ -

 और अर्कान है

फ़ाइलातुन--फ़अ’लातुन--फ़ अ’लातुन--फ़अ’लुन


अगर आप इस जवाब से सन्तुष्ट है तो आगे कि बात ही खत्म। इतना ही काफ़ी है -शायरी करने के लिए।

--------

अगर आप इतने से सन्तुष्ट नहीं है और आप की प्यास अभी बुझी नहीं, मज़ीद जानने की तलब बनी हुई है

तो आगे बढ़ते है कि यह बह्र कैसे बनी, यह नाम कैसे पड़ा वग़ैरह वग़ैरह।

यह बह्र कैसे बनी ?

आप इस बह्र को तो पहचानते होंगे--और नाम भी जानते होंगे। 

[क] 2122---2122---2122---2122 

-A-   ----B------C-----D

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम । सही ?

यह तो आप जानते हीं होंगे कि किसी शे’र में

-A-   के मुक़ाम को सदर/इब्तिदा कहते है

-B--C--  के मुक़ाम को  हस्व कहते है

-D-  ले मुक़ाम को जर्ब’/अरूज़ कहते हैं

अब इस बह्र पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल करते हैं। वैसे इल्मे--ज़िहाफ़ खुद में एक विस्तृत विषय है । ऎ कैसे  अमल करते है, इनकी शर्ते क्या है

-अभी इस पर बात नही करेंगे। परन्तु संक्षेप में एक दो बात कर लेते है।

ज़िहाफ़ 2-प्रकार के होते है

1- आम ज़िहाफ़ = जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लग सकता है यानी -A-   ----B------C-----D कहीं भी लगाया जा सकता है

2- ख़ास ज़िहाफ़ = जो शे’र के ख़ास मुक़ाम पर ही लग सकता है यानी या तो -A-  मुक़ाम पर लग सकता है या फिर  -D- मुक़ाम पर


हज़्फ़ -एक ऐसा ही ख़ास ज़िहाफ़ है जो सिर्फ़ --ड- मुक़ाम पर [ अरूज़/जर्ब] ही लगता है और इस ज़िहाफ़ की अमल से सालिम रुक्न [2122] की शकल 

बदल जाती है -इस बदली हुई शक्ल या बरामद रुक्न को महज़ूफ़ कहते है ।यानी

2122+ हज़्फ़ = 22 [ यह 2122 की महज़ूफ़ शकल है।

[क]  2122---2122---2122---22 अब इस बह्र को क्या कहेंगे? कुछ नहीं  SIMPLE

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम महज़ूफ़ 


ख़ब्न = एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । एक साथ लगाया जा सकता है या एक -एक रुक्न पर लगाया जा सकता है।

और इस ज़िहाफ़ के अमल से सालिम रुक्न [2122 ] की शकल बदल जाती है और इस बदली हुई शकल या बरामद रुक्न को ’मख़्बून’ कहते है। यानी

2122 + ख़ब्न = 1122 [ यह 2122 की मख़्बून शकल है। मगर अब इस ज़िहाफ़ को मुक़ाम -D- पर नहीं लगा सकते क्यों कि उस मुक़ाम को मैने ALREADY

हज़्फ़ ज़िहाफ़ लगा कर LOCK कर रखा है।

यानी 

2122---2122---1122---22 

या

2122--1122---1122--22  [ जो आप का सवाल है।

एक दिलचस्प बात --इन दोनॊ बह्रों का नाम-क्लासिकल अरूज़ के हिसाब से - एक ही होगा 

बह्र-ए- रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ ।

क्लासिकल अरूज़ के नामकरण पद्धति कुछ कमियाँ थी --इससे यह पता नही चलता है कि ’ख़ब्न’ वाला ज़िहाफ़ किस मुक़ाम पर लगा है। अत: आधुनिक नाम

प्रणाली में यह कमी दूर कर ली गई। अब इसका नाम होगा

बह्र-ए-रमल मख़बून मख़्बून महज़ूफ़ ---बिलकुल स्पष्ट की ख़्बन वाला ज़िहाफ़ किस किस मुक़ाम पर लगा है । NO CONFUSION |

अच्छा। एक बात और--

यह ख्बन वाला ज़िहाफ़ जब आम ज़िहाफ़ है तो -A- पर क्यॊं नही लगा सकते। बिलकुल लगा सकते है।   

लगा कर देखते हैं  क्या होता है। 

1122--1122--1122--22  होगा

नाम वही होगा --बहर-ए-रमल मख़्बून मख़्बून महज़ूफ़ ही रहेगा।

अब आप कहेंगे कि इसमे 2122 तो दिखाई नहीं दे रहा है तो रमल का नाम क्यों?

भई -- घर तो मूलत: उसी का है नाम रहेगा  तो पता चलेगा कि यह बह्र किस वंश परम्परा की है और इस पर कौन कौन से ज़िहाफ़ अमल कर सकते है।

ख़ैर --अब बात  RULES बनाम परम्परा /रिवायत की ।

TECHNICALLY  -A- मुक़ाम पर खब्न का ज़िहाफ़ लगा तो सकते है मगर परम्परा और रवायत है कि इस बह्र में सभी मुक़ाम पर एक साथ ज़िहाफ़ लगाना उचित नही माना जाता।

इसी लिए ऐसे बहर में कहा जाता है -A- मुकाम पर -2- को -1-किया जा सकता है। यह छूट है शायर को.लाइसेन्स है।

यही FUNDA--बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ वाले में भी था यानी

2122---1212---22 [ यानी पहले वाले -2- के मुक़ाम -1-लाया जा सकता है यानी 1122 किया जा सकता है --कारण वहाँ भी ख़्बन का ज़िहाफ़ लगता है

न हो तो , एक बार चेक कर लें । क्या मैं झूठ बोल्याँ ।

सादर

-आनन्द.पाठक-


[ नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }