ग़ज़ल 004 :हज़ारों लब से आती है सदा ये ....
[यह ग़ज़ल जनाब पी०के०स्वामी ,नई दिल्ली ने मोहतरम शायर जनाब "सरवर" की शान में उनके जन्म दिन (१६-मार्च) पर कही है यह ग़ज़ल इस ब्लाग पे इस मक़्सद से लगा रहा हूँ कि अहलेकारीं भी इस ग़ज़ल की ख़्सूसियत और नाज़ुक ख़याली से लुत्फ़अंदोज़ होंगे......आनन्द.पाठक]
हज़ारों लब से आती है सदा ये
सरापा रहबरे कामिल तुम्हीं हो !
जहां नेकी के चर्चे गूंजते हैं
खुलूसे दिल से तुम शामिल वहीं हो !
फरोगे अंजुमन तुम से है सरवर
सितारों में महे कामिल तुम्हीं हो !!
दिले खस्ता है वाबस्ता तुम्हीं से
ज़ुबाने राज़ के आदिल तुम्हीं हो !!
ग़में गेती में तेरा ही सहारा
दिले सद्चाक की महफ़िल तुम्हीं हो !!
खयाले नेक के हो रूह परवर
रगे इसियाँ के इक कातिल तुम्हीं हो !
जियो तुम और हज़ारों साल जीयो
दुआए खैर के काबिल तुम्हीं हो !!
पी के स्वामी
"उर्दू बह्र पर एक बातचीत"- के तमाम अक़्सात यकजा देखने के लिए visit करें www.aroozobahr.blogspot.com [ लिंक नीचे बाँए साइड मीनू में दिया गया है ]
रविवार, 21 मार्च 2010
गुरुवार, 18 मार्च 2010
ग़ज़ल 015 : खेल इक बन गया ज़माने का --
ग़ज़ल 015 : खेल इक बन गया ज़माने का ......
खेल इक बन गया ज़माने का
तज़करा मेरे आने जाने का
ज़िन्दगी ले रही है हमसे हिसाब
क़तरे क़तरे का ,दाने दाने का
क्या बताए वो हाल-ए-दिल अपना
"जिस के दिल में हो ग़म ज़माने का"
हम इधर बे-नियाज़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
शौक़ उधर तुम को आज़माने का
दिल फ़िगारी से जाँ-सुपारी तक
मुख़्तसर है सफ़र दिवाने का
ज़िन्दगी क्या है आ बताऊँ मैं
एक बहाना फ़रेब खाने का
बन गया ग़मगुसार-ए-तन्हाई
ज़िक्र गुजरे हुए ज़माने का
दिल्लगी नाम रख दिया किसने
दिल जलाने का जी से जाने का
हम भी हो आएं उस तरफ ’सरवर’
कोई हीला तो हो ठिकाने का
-सरवर-
तज़्करा = चर्चा
बेनियाज़ी-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ =हानि-लाभ से रहित
दिल फ़िगारी = ज़ख़्मी दिल
जाँ सुपारी तक =जान सौपने तक
हीला =बहाना
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खेल इक बन गया ज़माने का
तज़करा मेरे आने जाने का
ज़िन्दगी ले रही है हमसे हिसाब
क़तरे क़तरे का ,दाने दाने का
क्या बताए वो हाल-ए-दिल अपना
"जिस के दिल में हो ग़म ज़माने का"
हम इधर बे-नियाज़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
शौक़ उधर तुम को आज़माने का
दिल फ़िगारी से जाँ-सुपारी तक
मुख़्तसर है सफ़र दिवाने का
ज़िन्दगी क्या है आ बताऊँ मैं
एक बहाना फ़रेब खाने का
बन गया ग़मगुसार-ए-तन्हाई
ज़िक्र गुजरे हुए ज़माने का
दिल्लगी नाम रख दिया किसने
दिल जलाने का जी से जाने का
हम भी हो आएं उस तरफ ’सरवर’
कोई हीला तो हो ठिकाने का
-सरवर-
तज़्करा = चर्चा
बेनियाज़ी-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ =हानि-लाभ से रहित
दिल फ़िगारी = ज़ख़्मी दिल
जाँ सुपारी तक =जान सौपने तक
हीला =बहाना
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शनिवार, 6 मार्च 2010
ग़ज़ल 014 : डूबता है दिल कलेजा --
ग़ज़ल 014 : डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है......
डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है
हाय! यह कैसी क़ियामत याद तेरी ढाए है !
इश्क़ की यह ख़ुद फ़रेबी!अल-अमान-ओ-अल हफ़ीज़ !
जान कर वरना भला खु़द कौन धोखा खाए है
आँख नम है ,दिल फ़सुर्दा है ,जिगर आशुफ़्ता खू
लाख समझाओ वा लेकिन चैन किसको आए है ?
क्या तमन्ना ,कौन से हसरत ,कहाँ की आरज़ू ?
रंग-ए-हस्ती देख कर दिल है कि डूबा जाए है !
ऐतिबार-ए-दोस्ती का ज़िक्र कोई क्या करे ?
ऐतिबार-ए-दुश्मनी भी अब तो उठता जाए है !
इस दिल-ए-बे-मेह्र की यह कज अदायी देखिए
आप ही शिकवा करे है ,आप ही पछताए है !
बेकसी तो देखिये मेरी राह-ए-उम्मीद में
दिल को समझाता हूँ मैं और दिल मुझे समझाए है !
क्या शिकायत हो ज़माने से भला ’सरवर’ कि अब?
मैं जहाँ हूँ मुझसे साया भी मिरा कतराए है !
-सरवर-
कज अदायी = बेरुख़ी
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डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है
हाय! यह कैसी क़ियामत याद तेरी ढाए है !
इश्क़ की यह ख़ुद फ़रेबी!अल-अमान-ओ-अल हफ़ीज़ !
जान कर वरना भला खु़द कौन धोखा खाए है
आँख नम है ,दिल फ़सुर्दा है ,जिगर आशुफ़्ता खू
लाख समझाओ वा लेकिन चैन किसको आए है ?
क्या तमन्ना ,कौन से हसरत ,कहाँ की आरज़ू ?
रंग-ए-हस्ती देख कर दिल है कि डूबा जाए है !
ऐतिबार-ए-दोस्ती का ज़िक्र कोई क्या करे ?
ऐतिबार-ए-दुश्मनी भी अब तो उठता जाए है !
इस दिल-ए-बे-मेह्र की यह कज अदायी देखिए
आप ही शिकवा करे है ,आप ही पछताए है !
बेकसी तो देखिये मेरी राह-ए-उम्मीद में
दिल को समझाता हूँ मैं और दिल मुझे समझाए है !
क्या शिकायत हो ज़माने से भला ’सरवर’ कि अब?
मैं जहाँ हूँ मुझसे साया भी मिरा कतराए है !
-सरवर-
कज अदायी = बेरुख़ी
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