शनिवार, 5 जून 2010

ग़ज़ल 024 :क्या तमाशा देखिये .....

ग़ज़ल 024: क्या तमाशा देखिये .....

क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-लाहासिल में है
एक दुनिया का मज़ा दुनिया-ए-आब--ओ-गिल में है

देख ये जज़्ब-ए-मुहब्बत का करिश्मा तो नहीं
कल जो तेरे दिल में था वो आज मेरे दिल में है

मैं भला किस से कहूँ ,क्या क्या कहूँ ,कैसे कहूँ ?
मौत से पहले ही मर जाने की ख़्वाहिश दिल में है

मौज-ओ-शोरिश,इन्क़िलाब-ओ-इज़्तिराब-ओ-रुस्त-ओ-ख़ेज़
है मज़ा साहिल में कब जो दूरी-ए-साहिल में है

झाँक कर दिल में ज़रा यह तो बता दीजिए ,हुज़ूर !
मेरी कि़स्मत का सितारा कौन सी मंज़िल में है?

मुझको भाता ही नहीं इक आँख हुस्न-ए-कायनात
हाँ ! मगर वो जो तिरे रुख़्सार के इक तिल में है !

कर दिया बेगाना-ए-ग़म्हा-ए-दुनिया इश्क़ ने
मुझको आसानी यही तो अपनी इस मुश्किल में है

तेरा माज़ी हाल से दस्त-ओ-गरेबां गर रहा
मैं बताता हूँ जो "सरवर" तेरे मुस्तक़्बिल में है

-सरवर

दुनिया-ए-आब-ओ-गिल = पानी और मिट्टी की यह दुनिया
तहसील-ए-ला-हासिल में =ऐसा काम जिसका नतीजा कुछ न हो
शोरिश = विफरना
रुस्त-ओ-खेज़ = उखाड़-पछाड़
दस्त-ओ-गरेबां रहना =झगड़ा करना/खींच-तान करना
इज़्तिराब =बेचैनी
कायनात = आकाश/ विस्तार
मुस्तक़्बिल = भविष्य

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब ! बेहतरीन शेर हैं .... उम्दा ग़ज़ल !!

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  2. आदरणीय आनन्दजी,
    सरवर साहब की ग़ज़लें पढ़ाने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
    आपकी मेहरबानी से हमें अच्छा उर्दू कलाम पढ़ने को मिल रहा है इसके लिए तहे-दिल से शुक्रिया !

    मेरी लिखी हिंदी और राजस्थानी ग़ज़लें पढ़ने के लिए निम्न लिंक के द्वारा शस्वरं
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    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  3. बहुत आनन्द आया गज़ल पढ़ कर.

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  4. janab Sarvar Ko apdhne ke baad urdu adab se lagav badh gaya hai. Urdu ki mukamil ghazal shayad meanings ki vajah se poorn roop se samjhi ja sakti hai. Main Anand Pathak ji ko is jazbe ke liye badhayi deti hoon jo sudhi pathakon ko urdu ki ghazals mein hindi mein padwne ka sukh v anand diya hai..

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