बुधवार, 6 अगस्त 2014

क़िस्त 006 : चन्द माहिए : डा0 आरिफ़ हसन ख़ान के

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तनहा ही रहना है
जीवन भर मुझ को
अब दर्द ये सहना है
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27
दुशवार हुआ जीना
इश्क़ न हो रुसवा
आसान नहीं मरना
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28
मेरा क्या जीना है
तुझ को ख़ुश देखूँ
बस एक तमन्ना है
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29
तू ख़ूब फले-फूले
दर्द उठाऊँ मैं
तू ख़ुशियों में झूले
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30
आँसू क्यों बहते हैं
हम तो तेरा हर ग़म
चुप रह कर सहते हैं
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प्रस्तुतकर्ता

-आनन्द.पाठक
09413395592

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