ग़ज़ल 048
हमें ख़ुदा की
क़सम! याद आइय़ाँ क्या क्या !
जफ़ा के भेष
में वो आशनाइय़ाँ क्या क्या !
उम्मीद-ओ-आरज़ू
जी में बसाइय़ाँ क्या क्या
फ़रेब इश्क़ में दानिस्ता ख़ाइयाँ क्या क्या !
ख़ुदी से कुछ
न मिला, बे-ख़ुदी से कुछ न मिला
हरीम-ए-शौक़
में ज़ेहमत उठाइयाँ क्या क्या !
इन्हीं से
याद है ताज़ा गये ज़माने की
हमें अज़ीज़
है तेरी जुदाइयाँ क्या क्या !
मियान-ए-काबा-ओ-बुतख़ाना
गुम खड़े थे हम
नज़र जो ख़ुद
पे पड़ी तुझ को पाइय़ाँ क्या क्या !
न दीद की
कोई सूरत , न वस्ल की उम्मीद
फिर उस पे
हैं मिरी बे-दस्त-ओ-पाइयाँ क्या क्या!
फ़रेब-ए-दश्त-ए-तमन्ना
में मुझ को छोड़ गयीं
ख़याल-ओ-ख़्वाब
की मेहशर नुमाइयाँ क्या क्या !
न तेरी दोस्ती
अच्छी , न दुश्मनी अच्छी
बना रख़्ख़ी
हैं ये तू ने ख़ुदाइयाँ क्या क्या !
मक़ाम-ए-इश्क़
में ’सरवर,तुझे भी ले डूबीं
तिरी अना
ये तिरी ख़ुद-नुमाइयाँ क्या क्या !
-सरवर
हरीम-ए-शौक़ में = शौक़ के महल में
मियान-ए-काबा-ओ-बुतख़ाना=
मन्दिर-मस्जिद के बीच में
बे-दस्त-ओ-पाइयाँ =बेबसी
फ़रेब-ए-दश्त-ए-तमन्ना =तमन्नाओं के फ़रेब
अना =अहम
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