रविवार, 21 दिसंबर 2025

अभी संभावना है [ ग़ज़ल संग्रह] --समीक्षक -राम अवध विश्वकर्मा

 


[ नोट ;-समीक्षक आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी के बारे में ----

ग्वालियर निवासी आ0 रामअवध विश्वकर्मा जी स्वयं एक साहित्यकार ,ग़ज़लकार है, एक समीक्षक भी हैं। आप की कई साहित्यिक किताबेंप्रकाशित हो चुकी हैं जैसे-मेहमान भी लटकते है-चाकू खटकेदार है अब--इसकी टोपी उसके सर-तंग आ गया सूरज--आदि आदि।आप ने गद्य व्यंग्य - मुफ़्तख़ोरी ज़िंदाबाद जो काफी चर्चित रही। आप की सबसे चर्चित पुस्तक -ज़दीद रुबाईयात [ रुबाई संग्रह] है।चर्चित इसलिए कि आजकल ग़ज़ल के ज़माने में रुबाइयाँ कम लिखी सुनी जा रही हैं ।

हाल में शिवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में -: राम अवध विश्वकर्मा की ग़ज़लों में व्यंग्य;- के संदर्भ में शोधकार्य सम्पन्न ।----

---आनन्द.पाठक ’आनन’-

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पुस्तक समीक्षा--अभी सम्भावना है

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उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला में जन्मे श्री आनंद पाठक उपनाम 'आनन' से गीत गजल माहिया दोहे मुक्तक अनुभूतियां व्यंग्य  लेखन बड़ी कुशलता से लिखते हैं। यदा कदा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में एवं साझा संकलन में आपकी रचनाएं प्रकाशित भी होती रहती हैं। इन सब के अलावा विभिन्न सोशल मीडिया साहित्यिक मंचों पर आप सक्रिय रहते हैं। आपके लेख अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं जो रुचिकर एवं ग्राह्य  होते हैं। आपका एक महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय कार्य  www.arooz.co.in वेव साइट जिसमें  ग़ज़ल एवं रुबाई आदि के व्याकरण पर विस्तृत चर्चा सरल भाषा में की गई है।  मेरा मानना है कि इस  वेवसाइट पर अरूज़ पढ़ने के बाद ग़ज़ल लिखने वालों को ग़ज़ल की बारीकियां सीखने के लिए अन्यत्र भटकने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी।  भारत संचार निगम लिमिटेड से मुख्य अभियंता [सिविल]  पद से सेवानिवृत होने के बावजूद आपके स्वभाव में नम्रता, सरलता होना आपकी विशेषता है। अब तक आपकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 'अभी संभावना है' सन 2007 में प्रकाशित पुस्तक गीत गजल संग्रह की यह संशोधित आवृत्ति है। श्री आनंद पाठक जी ने बड़े उदार मन से यह स्वीकार किया है की 2007 में प्रकाशित इस पुस्तक में व्याकरण की दृष्टि से बहुत सी गलतियां थीं जिसे उन्होंने सुधार कर पुनः प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में 66 ग़ज़लें और 21 गीत हैं।

भूख, गरीबी, संघर्ष, जुल्म,दर्द  एवं राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति निर्भीकता से अपनी बात श्री आनन्द पाठक 'आनन' जी  ग़ज़ल एवं गीत के माध्यम से पाठक के सामने रखते हैं।

पुस्तक 'अभी सम्भावना है' अदम्य जिजीविषा (जीने की इच्छा), आशावाद और निरंतर संघर्ष का प्रतीक हैं। कवि इस पुस्तक  के माध्यम से जीवन के प्रति एक जुझारू दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा है जो इस पुस्तक की पहली ग़ज़ल का प्रथम  शेर  इसकी पुष्टि करता है।

'कीजिए मत रोशनी मद्धम, अभी संभावना है,

कुछ अभी बाकी सफ़र है, तीरगी' से सामना है।'


मजलूमों में बहुत ताकत होती है। अगर वह अपनी पर आ जाये तो वह  जुल्म करने वाले तानाशाह को उसकी औकात दिखा सकता है। उसके महल की ईंट से ईंट बजा सकता है। इस सम्बन्ध में उनका एक शेर देखें।


'भूखे मजलूमों की ताकत शायद तुमने जाना न कभी

बुनियाद  हिलाते महलों के लम्हात नहीं देखे होंगे'


काजल की कोठरी से बेदाग बचकर निकल आना बहुत मुश्किल होता है। इंकिलाब के हिमायती के रथ का पहिया किस प्रकार कुर्सी के चक्कर में फंसकर स्वार्थ के दलदल में धॅंस जाता है उनका यह शेर बख़ूबी बयान करता है।


'फ़क़त  कुर्सी निग़ाहों में जहां था स्वार्थ का दलदल

तुम्हारा इंक़िलाबी रथ वहीं अब तक धॅंसा होगा'


सत्ता लोलुप राजनेताओं का कोई  ईमान नहीं होता है। वे सत्ता के लोभ में अपने सिद्धांत को त्याग कर अपने आप को बेंच देते हैं। ऐसे राजनेताओं पर कटाक्ष करता हुआ 'आनन' जी का यह शेर आज भी ताजा लगता है।


'जिसको कुर्सी अज़ीज़ होती है

उसको बिकते यहां वहां देखा'


धार्मिक पाखंडियों पर एक कटाक्ष देखें-


'राम कथा' कहते फिरते थे गांव गली में वाचक बन

'दिल्ली' जाकर ही जाने क्यों 'रावण' की पहचान बने


टेलीविज़न चैनल पर जो बहस जनता  के आम मुद्दों पर होनी चाहिए थी वह न होकर निरर्थक बातों पर होती रहती है इसी बात से दुखी होकर कवि कहते हैं -

'बहस करनी अगर हो तो करो मुफ़लिस की रोटी पर

न टीवी पर करो बस बैठकर बेकार की बातें'


उनके गीत भी मन को छू लेने वाले हैं। इस पुस्तक  एक गीत

'मत छूना प्रिय मुझको अपने स्नेहिल हाथों से' का निम्नलिखित बन्द

वैराग्य और अत्यंत दुख के मिश्रण से भरा हुआ  है। इसमें उस स्थिति का वर्णन है जहाँ इंसान भौतिक दुनिया की निस्सारता को समझ चुका है और अपने भीतर के घावों के साथ अकेला रहना चाहता है। यह कविता संवेदनशीलता की पराकाष्ठा है।


तन का पिंजरा रह जाएगा उड़ जायेगी सोन चिरैया,

खाली पिंजरा दो कौडी का क्या सोना क्या चांदी भैया!

इतनी ठेस लगी है मन में इतने खोंच लगे जीवन में,

सिलने की कोशिश मत करना तार-तार मैं हो जाऊँगी।

पोर-पोर तक दर्द भरा है....


एक अन्य गीत की  इन पंक्तियों में एक ऐसी स्थिति का वर्णन किया है जहाँ समर्पण और प्रेम की बार-बार अनदेखी की गई है।

 जब प्रेम और स्वागत (वन्दनवार) का कोई मूल्य ही न बचा हो, तो दिखावे की सजावट करना निरर्थक है।

आत्मीयता, मनुहार (अनुनय-विनय) और स्नेह भरे आमंत्रण को बार-बार ठुकराया गया है।

जीवन भावनाओं के बजाय केवल समझौतों और 'शर्तों की भाषा' में उलझकर रह गया है, जहाँ निस्वार्थ प्रेम के लिए कोई स्थान नहीं है।

जब जीवन में केवल दुखों और नकारात्मकता (अंधियारों) का बोलबाला हो, तो वहाँ आशा की किरण (ज्योति पुंज) की बात करना भी अर्थहीन प्रतीत होता है।

जब मेरी देहरी को ठुकरा कर ही जाना,

फिर बोलो वन्दनवार सजा कर क्या होगा?


आँखों के नेह निमन्त्रण की प्रत्याशा में

आँचल के शीतल छाँवों की अभिलाषा में

हर बार गई ठुकराई मेरी मनुहारें-

हर बार जिन्दगी कटी शर्त की भाषा में

जब अंधियारों की ही केवल सुनवाई हो

फिर ज्योति पुंज  की बात सुना कर क्या होगा


इस प्रकार पुस्तक की सभी ग़ज़लें व गीत पठनीय हैं।

पुस्तक का नाम - अभी संभावना है

प्रकाशक- अयन  प्रकाशन उत्तम नगर नई दिल्ली

कवि- आनंद पाठक 'आनन'

मो.   8800927181

मूल्य- ₹ 360/-हार्डबाउन्ड

समीक्षक - राम अवध विश्वकर्मा

मो. 9479328400

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