मित्रो !
पिछले दिनों इसी मंच पर एक आलेख ’उर्दू शायरी में माहिया निगारी’ लगाया था।एक सदस्य को ’माहिया ’-शब्द इतना पसन्द आया कि वो अपनी हर कविता के पहले ’माहिया’ शब्द का लेबल लगाने लगे जो वस्तुत: माहिया नहीं है। हमें लगता है कि शायद मैं ’माहिया निगारी’ ठीक से समझा न सका या वो इसे ठीक से समझ नहीं सके
उनके ’समझने’ का दोष नहीं ’आनन’
हाय! अफ़सोस कि हम समझा न सके
हमें लगता है कि इस लेख में कुछ स्पष्टता और चाहिए सो एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ समझाने का शायद मैं कामयाब होऊँ
इससे पहले की मज़ीद वज़ाहत पेश करूँ एक माहिया का link लगा रहा हूँ इसे आप सुने। इस के दिलकश आवाज़ ,इसकी संगीत ,इसके भाव ,इसके दर्द इसके माधुर्य से परिचित हों
जगजीत सिंह और चित्रा सिंह का गाया हुआ माहिया है
http://www.youtube.com/watch?v=5CV6w01O95Q
"कोठे ते आ माहिया
मिलणा ता मिल आ के
नहीं ता ख़स्मा नूँ खा माहिया"
[नोट : यहाँ ’माहिया’ शब्द ,’प्रेमिका’ के लिए आया है ,इस शब्द का माहिया लेखन से कोई संबंध नहीं है} माहिया के माने ही होता है -’प्रेमिका’ [beloved]
हिन्दी फ़िल्म ’फागुन’[1958] के एक गीत का link लगा रहा हूँ ,इसे भी आप सुने और माहिया का रसस्वादन करें
http://www.youtube.com/watch?v=kt3KuQ7fHYo
मुहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया है
" तुम रूठ के मत जाना
मुझ से क्या शिकवा
दीवाना है दीवाना
यूँ हो गया बेगाना
तेरा मेरा क्या रिश्ता
ये तू ने नहीं जाना
यह माहिया है
दरअस्ल माहिया 3- लाईनों की एक काव्य विधा है [ख़याल रहे रुबाई 4-लाइनों की काव्य विधा है] जिसमें पहली और तीसरी लाईन में ’क़ाफ़िया’ होता है और दूसरी लाईन में काफ़िया नही होता अगर हो तो मनाही भी नहीं है
ख़याल रहे हर 3-लाईन की कविता ;माहिया’ नहीं होती [ 3-लाईन की हाइकू भी होती है]
माहिया का एक अपना अरूज़ी निज़ाम [ विशेष छन्द-मात्रा विन्यास] है । पहली लाईन और तीसरी लाईन का वज़न समान होता है और उसमें 12 मात्रा का वज़न होता है जब कि दूसरी लाईन में 10-मात्रा का वज़न होता है
सबसे सरल और सहज वज़न का arranagement निम्न ढंग से हो सकता है
पहली लाईन =22 22 22 =12
दूसरी लाईन =22 22 2 =10 [ 2-मात्रा कम है. ]
तीसरी लाईन =22 22 22 =12 [पहली लाईन के वज़न के बराबर]
मोटा मोटी आप 2 को गुरू और 1 को लघु शब्द समझें
[यूँ तो पहली और तीसरी लाईन के वज़न 2 2 ] को तख़नीक की अमल से 16 क़िस्म के वज़न और दूसरी लाईन के 8 क़िस्म के वज़न बनाये जा सकते हैं ।यहाँ पर इसका विवेचना करना उचित नहीं है कारण कि यह विषय को और दूरूह और confuse कर देगा। कभी वक़्त मिला तो इस पर ’माहिया के अरूज़ी निज़ाम ’ पर अलग से एक आलेख लिखूंगा]
हाँ तो मैं कह रहा था कि सबसे सरल वज़न
22 22 22
22 22 2
22 22 22
[ [एक गुरु को दो लघु 1 1 में तोड़ा जा सकता है ,मगर आखिरी 2 को कभी नही तोड़ते यानी हर मिसरे के अन्त में गुरू आना लाजिमी है यही माहिया को हुस्न प्रदान करता है
उदाहरण के तौर पर कुछ माहिया और लगा रहा हूँ। मेरे एक मित्र प्राण शर्मा जी अपनी कुछ माहिया भेजी है ,उन्ही में से [2-माहिया क्षमा-याचना सहित] लगा रहा हूँ और साथ ही साथ ’तक़्तीअ’ भी करता चलूंगा जिससे बात और स्पष्ट हो जाय
आँखों में पानी है
हर इक प्राणी की
इक राम कहानी है
अब इनकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
22 / 22 /22 =12
आँखों / में पा/नी है
2 2 / 2 2 / 2 =10
हर इक /प्राणी/ की
2 2 /1 1 2 / 2 2 =12
इक रा/म कहा/नी है [यहाँ दुसरे रुक्न [में 1 1 के वज़्न को 2 समझे यानी दो लघु+ 1 गुरु]
----------------
कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का हर मटका
2 2 /1 1 2 / 2 2 =12
कुछ ऐ /स लगा /झटका
2 1 1/ 2 2 / 2 =10
टूट ग/या पल /में
22 / 2 2 /2 2 = 12
मिट्टी/ का हर/ मटका
एक माहिया हिम्मत शर्मा जी का लगा रहा हूँ कहते हैं जिसे सबसे पहली माहिया निगारी का शरफ़[सम्मान] हासिल है
इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
2 2 / 1 1 2 / 2 2 =12
इक बा/र तो मिल/ साजन =10 [यहाँ ’तो’ पे मात्रा गिरी है और इसे ’त’ की वज़्न पे पढ़ेंगे]
2 2 / 2 1 1 / 2
आ कर/ देख ज़/रा
2 2 / 2 2 / 2 2 =12
टूटा /हुआ दिल/ साजन [यहाँ ’हुआ’ को ’हुअ’ के वज़न पर पढ़ेंगे]
और एक माहिया जनाब हैदर कुरेशी साहब का लगा रहा हूँ जिन्हे उर्दू शायरी में माहिया का प्रवर्तक माना जाता है
फूलों को पीरोने में
सूई तो चुभनी थी
इस हार के होने में
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखतें हैं
2 2/ 1 1 2 /2 2 =12
फूलों / को पीरो/ने में [यहाँ को और पी पे मात्रा गिरा कर क और पि [1 1] के वज़न पे पढ़ना है]
2 2 /2 2 /2 =10
सूई तो/ चुभ नी/ थी [सूई तो में ई और तो पे वज़्न गिरा कर पढ़ेंगे
2 2/ 1 1 2 /2 2 =12
इस हा/र के हो/ने में [ दूसरे रुक्न ’ र के हो ’ में ’के’ को क की वज़न पर पढ़ना पड़ेगा]
अब चलते चलते एक माहिया इस हक़ीर का भी बर्दाश्त कर लें
ये हुस्न का जादू है
सर तो सज्दा में
कब दिल पे क़ाबू है
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
2 2 /1 1 2 /2 2 =12
ये हुस/न का जा/दू है [यहाँ ’का’ को ’क’ के वज़न पर पढ़ेगे
2 2/ 2 2/ 2 =10
सर तो/ सज दा/ में
2 2 / 2 2 /2 2 12
कब दिल/ पे क़ा/बू है
अगर आप ध्यान से देखेंगे तो एक बात साफ़ ज़ाहिर होगी कि हर मिसरा का आखिरी पद 2 के वज़्न पे है।
अत: अब स्पष्ट हो गया होगा कि मेरे उक्त मित्र ने माहिया का लेबल देकर जो भी कवित्त लिखा वो ’माहिया ’ नहीं था
उम्मीद करता हूँ कि बात कुछ स्पष्ट हुई होगी
अस्तु
-आनन्द.पाठक
09413395592
पिछले दिनों इसी मंच पर एक आलेख ’उर्दू शायरी में माहिया निगारी’ लगाया था।एक सदस्य को ’माहिया ’-शब्द इतना पसन्द आया कि वो अपनी हर कविता के पहले ’माहिया’ शब्द का लेबल लगाने लगे जो वस्तुत: माहिया नहीं है। हमें लगता है कि शायद मैं ’माहिया निगारी’ ठीक से समझा न सका या वो इसे ठीक से समझ नहीं सके
उनके ’समझने’ का दोष नहीं ’आनन’
हाय! अफ़सोस कि हम समझा न सके
हमें लगता है कि इस लेख में कुछ स्पष्टता और चाहिए सो एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ समझाने का शायद मैं कामयाब होऊँ
इससे पहले की मज़ीद वज़ाहत पेश करूँ एक माहिया का link लगा रहा हूँ इसे आप सुने। इस के दिलकश आवाज़ ,इसकी संगीत ,इसके भाव ,इसके दर्द इसके माधुर्य से परिचित हों
जगजीत सिंह और चित्रा सिंह का गाया हुआ माहिया है
http://www.youtube.com/watch?v=5CV6w01O95Q
"कोठे ते आ माहिया
मिलणा ता मिल आ के
नहीं ता ख़स्मा नूँ खा माहिया"
[नोट : यहाँ ’माहिया’ शब्द ,’प्रेमिका’ के लिए आया है ,इस शब्द का माहिया लेखन से कोई संबंध नहीं है} माहिया के माने ही होता है -’प्रेमिका’ [beloved]
हिन्दी फ़िल्म ’फागुन’[1958] के एक गीत का link लगा रहा हूँ ,इसे भी आप सुने और माहिया का रसस्वादन करें
http://www.youtube.com/watch?v=kt3KuQ7fHYo
मुहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया है
" तुम रूठ के मत जाना
मुझ से क्या शिकवा
दीवाना है दीवाना
यूँ हो गया बेगाना
तेरा मेरा क्या रिश्ता
ये तू ने नहीं जाना
यह माहिया है
दरअस्ल माहिया 3- लाईनों की एक काव्य विधा है [ख़याल रहे रुबाई 4-लाइनों की काव्य विधा है] जिसमें पहली और तीसरी लाईन में ’क़ाफ़िया’ होता है और दूसरी लाईन में काफ़िया नही होता अगर हो तो मनाही भी नहीं है
ख़याल रहे हर 3-लाईन की कविता ;माहिया’ नहीं होती [ 3-लाईन की हाइकू भी होती है]
माहिया का एक अपना अरूज़ी निज़ाम [ विशेष छन्द-मात्रा विन्यास] है । पहली लाईन और तीसरी लाईन का वज़न समान होता है और उसमें 12 मात्रा का वज़न होता है जब कि दूसरी लाईन में 10-मात्रा का वज़न होता है
सबसे सरल और सहज वज़न का arranagement निम्न ढंग से हो सकता है
पहली लाईन =22 22 22 =12
दूसरी लाईन =22 22 2 =10 [ 2-मात्रा कम है. ]
तीसरी लाईन =22 22 22 =12 [पहली लाईन के वज़न के बराबर]
मोटा मोटी आप 2 को गुरू और 1 को लघु शब्द समझें
[यूँ तो पहली और तीसरी लाईन के वज़न 2 2 ] को तख़नीक की अमल से 16 क़िस्म के वज़न और दूसरी लाईन के 8 क़िस्म के वज़न बनाये जा सकते हैं ।यहाँ पर इसका विवेचना करना उचित नहीं है कारण कि यह विषय को और दूरूह और confuse कर देगा। कभी वक़्त मिला तो इस पर ’माहिया के अरूज़ी निज़ाम ’ पर अलग से एक आलेख लिखूंगा]
हाँ तो मैं कह रहा था कि सबसे सरल वज़न
22 22 22
22 22 2
22 22 22
[ [एक गुरु को दो लघु 1 1 में तोड़ा जा सकता है ,मगर आखिरी 2 को कभी नही तोड़ते यानी हर मिसरे के अन्त में गुरू आना लाजिमी है यही माहिया को हुस्न प्रदान करता है
उदाहरण के तौर पर कुछ माहिया और लगा रहा हूँ। मेरे एक मित्र प्राण शर्मा जी अपनी कुछ माहिया भेजी है ,उन्ही में से [2-माहिया क्षमा-याचना सहित] लगा रहा हूँ और साथ ही साथ ’तक़्तीअ’ भी करता चलूंगा जिससे बात और स्पष्ट हो जाय
आँखों में पानी है
हर इक प्राणी की
इक राम कहानी है
अब इनकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
22 / 22 /22 =12
आँखों / में पा/नी है
2 2 / 2 2 / 2 =10
हर इक /प्राणी/ की
2 2 /1 1 2 / 2 2 =12
इक रा/म कहा/नी है [यहाँ दुसरे रुक्न [में 1 1 के वज़्न को 2 समझे यानी दो लघु+ 1 गुरु]
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कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का हर मटका
2 2 /1 1 2 / 2 2 =12
कुछ ऐ /स लगा /झटका
2 1 1/ 2 2 / 2 =10
टूट ग/या पल /में
22 / 2 2 /2 2 = 12
मिट्टी/ का हर/ मटका
एक माहिया हिम्मत शर्मा जी का लगा रहा हूँ कहते हैं जिसे सबसे पहली माहिया निगारी का शरफ़[सम्मान] हासिल है
इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
2 2 / 1 1 2 / 2 2 =12
इक बा/र तो मिल/ साजन =10 [यहाँ ’तो’ पे मात्रा गिरी है और इसे ’त’ की वज़्न पे पढ़ेंगे]
2 2 / 2 1 1 / 2
आ कर/ देख ज़/रा
2 2 / 2 2 / 2 2 =12
टूटा /हुआ दिल/ साजन [यहाँ ’हुआ’ को ’हुअ’ के वज़न पर पढ़ेंगे]
और एक माहिया जनाब हैदर कुरेशी साहब का लगा रहा हूँ जिन्हे उर्दू शायरी में माहिया का प्रवर्तक माना जाता है
फूलों को पीरोने में
सूई तो चुभनी थी
इस हार के होने में
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखतें हैं
2 2/ 1 1 2 /2 2 =12
फूलों / को पीरो/ने में [यहाँ को और पी पे मात्रा गिरा कर क और पि [1 1] के वज़न पे पढ़ना है]
2 2 /2 2 /2 =10
सूई तो/ चुभ नी/ थी [सूई तो में ई और तो पे वज़्न गिरा कर पढ़ेंगे
2 2/ 1 1 2 /2 2 =12
इस हा/र के हो/ने में [ दूसरे रुक्न ’ र के हो ’ में ’के’ को क की वज़न पर पढ़ना पड़ेगा]
अब चलते चलते एक माहिया इस हक़ीर का भी बर्दाश्त कर लें
ये हुस्न का जादू है
सर तो सज्दा में
कब दिल पे क़ाबू है
अब इसकी तक़्तीअ कर के देखते हैं
2 2 /1 1 2 /2 2 =12
ये हुस/न का जा/दू है [यहाँ ’का’ को ’क’ के वज़न पर पढ़ेगे
2 2/ 2 2/ 2 =10
सर तो/ सज दा/ में
2 2 / 2 2 /2 2 12
कब दिल/ पे क़ा/बू है
अगर आप ध्यान से देखेंगे तो एक बात साफ़ ज़ाहिर होगी कि हर मिसरा का आखिरी पद 2 के वज़्न पे है।
अत: अब स्पष्ट हो गया होगा कि मेरे उक्त मित्र ने माहिया का लेबल देकर जो भी कवित्त लिखा वो ’माहिया ’ नहीं था
उम्मीद करता हूँ कि बात कुछ स्पष्ट हुई होगी
अस्तु
-आनन्द.पाठक
09413395592
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