ग़ज़ल 047
सुना है अर्बाब-ए-अक़्ल-ओ-दानिश हमें यूँ दाद-ए-कमाल देंगे
"जुनूँ के दामन से फूल चुन कर ख़िरद के दामन में डाल देंगे!"
ज़रा बतायें कि आप कब तक फ़रेब-ए-हुस्न-ओ-जमाल देंगे
सुकूं के बदले में तुहफ़ा-ए-ग़म, क़रार ले के मलाल देंगे ?
हम अपने दिल से ख़याल-ए-दैर-ओ-हरम को ऐसे निकाल देंगे
तमाम अज़्जा-ए-कुफ़्र-ओ-इमां बस एक सजदे में डाल देंगे !
जिन्हें तमीज़-ए-वफ़ा नहीं है, जिन्हें शऊर-ए-जुनूँ नहीं है
भला वो किस तरह राह-ए-ग़म में हिसाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल देंगे?
ज़बां की रंगीं-नवाईयों से ,बयां की जल्वा-तराज़ियों से
निगार-ए-उर्दू को हर घड़ी हम खिराज-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल देंगे!
तुम्हें है क्यों अश्क-ए-ग़म पे हैरत ,यही तो होता है आशिक़ी में
सवाल अगर दिल-फ़िगार होगा,जवाब भी हस्ब-ए-हाल देंगे !
खुमार-ए-बादा,ख़िराम-ए-आहू,निगाह-ए-नर्गिस,नवा-ए-बुलबुल
किसी ने इन का पता जो पूछा तो हम तुम्हारी मिसाल देंगे !
वो एक लम्हा दम-ए-जुदाई जो ज़ीस्त का ऐतिबार ठहरा
उस एक लम्हे ने जो दिया है ,कहाँ ये सब माह-ओ-साल देंगे?
न इनकी बातों में आना "सरवर"!ये अह्ल-ए-दुनिया हैं फ़ित्ना-परवर
हज़ार बातें बना बना कर तुम्हें ये दम भर में टाल देंगे !
-सरवर-
अर्बाब-ए-अक़्ल = समझदार लोग
ख़िरद = अक़्ल/बुद्धि
अज्ज़ा =टुकड़े
ख़िराज =महसूल/चुंगी
दिल फ़िगार =घायल दिल
ख़िराम-ए-आहू = हिरणी की चाल
नवा-ए-बुलबुल =बुलबुल की आवाज़
फ़ित्ना परवर =फ़सादी/झंझटी
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