शनिवार, 9 दिसंबर 2017

उर्दू बहर् पर् एक् बातचीत् : किस्त 37 [बह्र-ए-रमल की मुज़ाहिफ़ बह्रें]

उर्दू बहर् पर् एक् बातचीत्  : किस्त 37 [बह्र-ए-रमल की मुज़ाहिफ़ बह्रें]

Discliamer clause -वही जो क़िस्त 1 में है

पिछले क़िस्त में हम रमल की सालिम बह्रों [मुरब्ब: मुसद्द्स मुसम्मन] पर चर्चा कर चुके है
अब हम इस क़िस्त में बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ़ शकल पर चर्चा करेंगे

आप जानते है कि बह्र-ए-रमल की बुनियादी रुक्न ’ फ़ाइलातुन ’[2122] है और यह एक सालिम रुक्न है जो [सबब्+वतद+सबब] के संयोग से बना है और आप यह भी जानते हैं कि ’ज़िहाफ़’ हमेशा सालिम रुक्न पे ही लगता है [दर अस्ल सालिम रुक्न के ज़ुज़ [अवयव] पर लगता है। और यह ज़िहाफ़ या तो मुफ़र्द [एकल] होगा  या मुरक़्क़ब [मिश्रित] । ’फ़ाइलातुन’[ 2122]  पे लगने वाले ऐसे ज़िहाफ़ात की संख्या तक़रीबन 25 के आसपास बैठती है। यहां सभी ज़िहाफ़ पे चर्चा करने करने की आवश्यकता नहीं है , हम मात्र  उन्ही ज़िहाफ़ात् की चर्चा करेंगे जो उर्दू शायरी में मक़्बूल हैं और शायरों ने और उस्ताद शायरों ने अपने कलाम कहे हैं जिससे आम पाठकों को समझने में सुविधा हो।
एक बात और

ज़्यादातर शायरों ने मुसद्दस मुसम्मन और उसकी मुज़ाहिफ़ शकल में ही शायरी की है । मुरब्ब: में बहुत ही कम अश’आर कहें है । इतने कम कहे गये हैं कि उदाहरण देना /बताना/समझाना भी मुश्किल हो जाता है। सच तो यह है कि छोटी बहर मैं  ग़ज़ल या अश’आर कहना निहायत मुश्किल का काम है ,फ़न-ए-शायरी पर निर्भर करेगा ,आप के हुनर-ओ-कमाल पर निर्भर करेगा ।अगरचे  कुछ लोगो  ने 1-2 शे’र कह कर तबअ आजमाई की है ,मगर बहुत कम -आंटे में नमक के बराबर। अच्छे शायरों ने  [जैसे मीर ग़ालिब इक़बाल ज़ौक़ वग़ैरह] ज़्यादातर अश’आर या तो मुसद्दस में या मुसम्मन में या उनकी  मुज़ाहिफ़ बहर में ।  अरूज़ियों ने भी समझाने के लिये कुछ खुद्साख्ता [ खुद के बनाई हुए ]  शे’र] कहे है । अगर नौ-मश्क़ [ नवोदित ] शायर अगर मुरब्ब: में अश’आर नहीं कहेंगे तो फिर मुस्तकबिल [भविष्य ] में  ऐसे अश’आर तो फिर अरूज़ की किताबों में ही मिलेंगे ।
ख़ैर  academic discussion हेतु इस पर चर्चा करने में कोई हर्ज तो नहीं।-मुमकिन हो तो-अश’आर आप कहते चलें -तक़्तीअ हम करते चलेंगे।
फ़ाइलातुन [2122] पर लगने वाले कुछ  ज़िहाफ़ात हैं----

फ़ाइलातुन[2122]   +ख़ब्न  =मख़्बून=फ़इलातुन [1122] -ऐन- मुतहर्रिक है
फ़ाइलातुन[2122]   + क़स्र =मक़्सूर=फ़ाइलान  [2121]
फ़ाइलातुन[2122]   + कफ़ =मकफ़ूफ़=फ़ाइलातु  [2121]       -ऐन- और -तु- मुतहर्रिक है
फ़ाइलातुन [2122]  + हज़्फ़      = महज़ूफ़=फ़ाइलुन [212]
फ़ाइलातुन[2122]    + शकल =मश्कूल=फ़इलातु [ 1121]
फ़ाइलातुन[2122] +ख़ब्न+हज़फ़= मख़्बून महज़ूफ़=फ़इलुन  [ 112]        -ऐन- मुतहर्रिक है
फ़ाइलातुन[2122]+ख़ब्न+क़स्र   = मख़्बून मक़्सूर =फ़इलान  [1121] -ऐन- मुतहर्रिक है

ज़िहाफ़ ख़ब्न’-- क़स्र--कफ़---हज़्फ़---शकल---आदि पर पहले ही चर्चा कर चुके है [ चाहें तो आप एक बार देख सकते हैं
इसके अलावा 2-4 ज़िहाफ़ और भी हैं जो ’फ़ाइलातुन’[2122] पर लगते है  जैसे त’श्शीस---[तश्शीस+तसब्बीग़]---बतर---वग़ैरह ।तवालत [ विस्तार] से बचने के लिये .यहाँ हम उस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं इतने से ही हमारा और आप का काम चल जायेगा
मगर हाँ . मुज़ाहिफ़ रुक्न जो ऊपर बरामद हुई है उन में से कुछ  पर ’तस्कीन-ए-औसत’ का अमल भी लग सकता है । तस्कीन का अमल सिर्फ़ ’मुज़ाहिफ़ रुक्न’ पर ही लगता है --सालिम रुक्न पे नहीं । ये बात तो आप जानते ही होंगे
तस्कीन -ए-औसत के अमल की चर्चा तो गुज़िस्ता अक़सात [ पिछली क़िस्तों में ] कर चुका हूं पर आप  याद दिहानी के लिए मुख़्तसरन [संक्षेपत:] एक बार फिर कर देता हूं
’अगर किसी मुज़ाहिफ़ रुक्न में 3-मुतहर्रिक हर्फ़ एक साथ आ जायें तो तस्कीन-ए-औसत की अमल से ’बीच वाला मुतहर्रिक हर्फ़’ साकिन हो जाता है  जिससे मज़ीद [अतिरिक्त वज़न] बरामद हो सकती है। जैसे  फ़इलातुन1122]---फ़ इलुन[112]--फ़इलान [112] ,
जो तसकीन के अमल से हो जायेगा
फ़इलातुन1122] = फ़अ  ला तुन = 2 2 2 जिसको बदल लेते है =मफ़ ऊ लुन

अब आप के मन में एक सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि ये अर्कान को किसी दूसरे अर्कान से क्यों बदल लेते हैं और क्यों बदले? इसमें क्या बुराई है ? न बदलें तो क्या होगा?
कुछ नहीं होगा जब तक आप शे’र के वज़न का पास रखते हैं तो आप चाहें फ़अ ला तुन [222] रखें या मफ़ ऊ लुन [222]---कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
मगर अरूज में   रुक्न को ’फ़ेल’ भी कहते है और अर्कान को अफ़ाइल या तफ़ाइल भी कहते है ] कारण कि  ’फ़ेल’ में या  हर रुक्न में  [ उर्दू के 3-हर्फ़ ---फ़े,---ऐन---लाम -में से 2-हर्फ़ ][फ़े अ ल]-ज़रूर आते हैं । अत: उन तमाम मुज़ाहिफ़ शकल को  मानक ’रुक्न’ से बदल लेते है जिसमें रुक्न के ये 3- हर्फ़ में से 2-ज़रूर आए  जिस से रुक्न की ’मानकता’ बनी रहे।
ख़ैर--
एक बात और
जिहाफ़ ’ख़ब्न’ -एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर आ सकता है जब कि हज़्फ़ और  क़स्र ,शे’र के अरूज़ और ज़र्ब मुक़ाम के लिए मख़्सूस है। बस याद दिलाने के लिए लिख दिया यानी जब मुज़ाहिफ़ बहर मैं ’ख़ब्न’ भी हो और ह्ज़्फ़ या क़स्र ज़िहाफ़ भी हो तो लाजिमन अरूज़ या ज़र्ब के मुक़ाम पर महज़ूफ़/मक़्सूर ही आयेगा --मख़्बून तो नहीं आ पायेगा । ख़ैर !
इन ज़िहाफ़ात पर चर्चा करने से पहले -एकऔर बात पे चर्चा करना ज़रूरी समझता हूँ
रमल  की बुनियादी रुक्न ’फ़ाइलातुन’ [ फ़े,अलिफ़,ऐन,लाम,अलिफ़,ते,नून] [2122 ]  है । उर्दू रस्म उल ख़त [लिपि]  मे यह दो-प्रकार से लिखी जा सकता है
[1] एक तो वह जो सामान्यतया कुछ हर्फ़ को ’मिला कर’ [सिलसिलेवार] लिखते है -जिसे ’मुतस्सिल शकल’ कहते है जिसमें [फ़ा,इला,तुन] लिखते है और इसका वज़न 2122 होता है- [जिस में "इला’ वतद-ए- मज्मुआ वाली शकल में होती है]
[2] दूसरी शकल वो जिसमें कुछ हर्फ़ को ’फ़ासिला’ देकर लिखते हैं जिसे ’मुन्फ़सिल शकल’ कहते है जिसमें [फ़ाअ, ला तुन] लिखते है और इसका भी वज़न  21 2 2 ही होगा --      [ जिस में "फ़ाअ"-वतद-ए-मफ़रूक़ वाली शकल में होता है]
तो?
तो कुछ नहीं। पहले केस में ’इला’ [ हरकत+हरकत+साकिन ] -वतद-ए-मज्मुआ है -यानी दो-हरकत की जमा है तभी तो मज्मुआ कहलाती है
दूसरे केस में "फ़ा अ’ [ऐन मुतहर्रिक है]  यानी [ हरकत+साकिन+हरकत ] -वतद -मफ़रूक़ी है यानी दो हरकत की स्थिति में ’फ़र्क़’ है तभी तो ’मफ़रूक’ कहलाता है
दोनो ही केस में वज़न 2122 ही रहेगा----इसी लिए मैं बार बार कहता हूँ कि ये 1222 ,2122 जैसी अलामत अफ़ाइल समझने में बहुत दूर तक नही ले जाती है  । ख़ैर कोई बात नहीं
हमने इसकी चर्चा यहाँ क्यों की?
इसलिए किया कि कुछ मुरक्कब बहरों में [यही मुन्फ़सिल शकल का इस्तेमाल होता है -जैसे बह्र-ए-मज़ारिअ में ,बहर-ए-क़रीब में,बहर-ए-मशाकिल में, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे]
और आप जानते है कि ’वतद-ए-मज्मुआ ’ पर लगने वाले ज़िहाफ़ अलग होते हैं
और ’वतद-ए-मफ़रूक़’  पे लगने वाले वाले ज़िहाफ़ अलग होते है
यानी जिन ज़िहाफ़ की चर्चा हम बहर-ए-रमल में करेंगे ,वही के वही ज़िहाफ़ ’मज़ारिअ.---क़रीब---मशाकिल में नहीं लगेंगे। इसका पास [ख़याल] रखना होगा आप को -जब इन मुरक्कब बहर पे ज़िहाफ़ात की चर्चा करेंगे ।

अभी यहाँ  बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ़ बह्रों पे चर्चा करेंगे---

1-बहर-ए-रमल की मुरब्ब: मुज़ाहिफ़ बहरें:- बहर-ए-रमल की सालिम बहर [मुरब्ब:--मुसदस---मुसम्मन] पर चर्चा पिछले क़िस्त में कर चुका हूँ ] अब इसकी मुज़ाहिफ़ बहर पे चर्चा करेंगे
[1]  बहर-ए-रमल मुरब्ब: महज़ूफ़
फ़ाइलातुन----फ़ाइलुन
2122----------212
उदाहरण- आरिफ़ हसन खान साहब के हवाले से
आरज़ू में  आप की
दिल में क्या क्या गुल खिले

मैं नहीं समझता कि अब आप को इसकी तक़्तीअ करने की ज़रूरत पड़ेगी ।फिर भी--आ[ एक बार चेक कर लीजियेगा
2122       /212
आरज़ू में  /आप की
2     1   2     2   /2   1  2
दिल में क्या क्या / गुल खिले

[2[      बहर-ए-रमल मुरब्ब: मक़्सूर
फ़ाइलातुन------फ़ाइलान
2122-----------2121
[नोट- शे’र में महज़ूफ़ [क] की जगह मक़्सूर[ख] लाने की इजाज़त है]
एक उदाहरण इस का भी देख लेते हैं
जब से रूठा है वो यार
दिल है मेरा बेक़रार 
एक बार तक़्तीअ भी देख लेते हैं
2     1   2  2  / 2 1 2 1
जब से रूठा / है वो यार
2    1   2 2   / 2 1 2 1
दिल है मेरा   /बेक़रार
आप चाहें तो मिसरा उला को
"जब से रूठा मेरा यार" ---भी कह सकते है---वज़न बराबर रहेगा

[3]  बहर-ए-रमल मुरब्ब: मक़्लूअ 
फ़ाइलातुन-------फ़अ लुन
2122------------22
उदाहरण-कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब के हवाले से एक शे’र देखते है
जल्वा महफ़िल में है
आइना दिल में है 
यानी
2    1   2     2     / 2 2
जल् व मह फ़िल / में है
2 1  2    2         / 2 2
आइना दिल     / में है

[4] बहर-ए-रमल मुरब्ब: मक़्लूअ मुसब्बीग़
फ़ाइलातुन-------फ़अ लान
2122-----------221
[नोट- शे’र में मक़्लूअ [3] की जगह मक़्लूअ मुसब्बीग़ [4] लाने की इजाज़त है]
यहां एक नया ज़िहाफ़ ’क़ल्अ’ [ मुज़ाहिफ़ को मक़्लूअ कहते हैं] आ गया । शायद इस पर मैं चर्चा ’ज़िहाफ़ात ’ वाली क़िस्त में कर चुका हूँगा। चलिए एक बार मुख़्तसर गुफ़्तगू इस पर की कर लेते हैं -आप की याद दिहाने के लिए
अगर किसी सालिम रुक्न के दर्मियान  कोई वतद मज्मुआ आ जाए तो  -वतद-ए-मज्मुआ को गिरा देने के अमल को -’क़लअ ’ कहते है और जो मुज़ाहिफ़ शकल बरामद होती है उसे -’मक़्लूअ’ कहते है [ जैसे फ़ा इला तुन में ]
’इला’ वतद-ए-मज्मुआ है और इत्तिफ़ाक़न रुक्न के दर्मियान [बीच में ] भी है अत: वतद को गिरा दें तो बचेगा -’फ़ा तुन’ [2 2] जिसे ]-फ़अ-लुन’ [2 2] से बदल लिया [-ऐन- साकिन है यहां]
उदाहरण -
एक तमाशा या जुल्म
रक़्स-ए-बिस्मिल में है
यानी
2     1  2 2        / 2  2    1
इक  तमाशा       /या जुल् म
2    1    2       2  /  2 2
रक़् स-बिस् मिल/ में है


[5] बहर-ए-रमल सालिम मख़्बून मुरब्ब: 
फ़ाइलातुन----फ़इलातुन
2122---------1122
उदाहरण
" काम की बात करो तुम
मुझ से मत हाथ करो तुम
ज़रा तक़्तीअ भी देख लेते है
                 2  1  2  2   / 1 1 2 2
" काम की बा  /त क रो तुम
  2      1  2   2/ 1 1 2  2
 मुझ से मत हा /त करो तुम
[5-क]  इस बहर में ’फ़ इ ला तुन"[1122] की जगह फ़इ ल्ल्यान [ 11221] लाया जा सकता है
उदाहरण
हुस्न इतना जो मिला यार
कुछ तो ख़ैरात करो तुम
यानी
2     1   2  2   / 1  1  2  2 1
हुस् न  इत ना / जो मिला यार
2      1   2  2   / 1 1 2  2
कुछ तो ख़ै रा  / त करो तुम

{6] बहर-ए-रमल मुरब्ब: मख़्बून
फ़इलातुन----फ़इलातुन
1122---------1122
आरिफ़ हसन खान साहब के हवाले से
उदाहरण
मुझे यादों में बसा लो
मेरे हमदम ,मेरे हमदम
तक़्तीअ
11  2   2   / 1  1 2  2
मुझे यादों  / में ब सा लो
1  1  2  2 /   1 1  2 2
मेरे हम दम /,मेरे हम दम

[7]  बहर-ए-रमल मश्कूल सालिम मुरब्ब:
फ़इलातु------फ़ाइलातुन
1121---------2122
उदाहरण [आरिफ़ खान साहब के हवाले से]

यही ज़िन्दगी जहन्नुम
यही  जिन्दगी है जन्नत
यानी
1  1  2  1  / 2  1   2   2
यही ज़िन् द /गी  ज ह् न नुम
1   1   2 1  / 2  1   2    2
यही  जिन् द/गी है  जन् नत

[8] बहर-ए-रमल मुरब्ब: मश्कूल  मुसब्बीग़ 
फ़ इलातु--------फ़ाइल् य्यान
1121----------21221

उदाहरण आप बताएं -एक कोशिश तो करें।
-----------------------------------------------
अब ज़रा बहर-ए-रमल मुसद्दस मुज़ाहिफ़ बहरों---पर भी चर्चा कर लेते हैं---- मुसद्दस सालिम बहर की तो चर्चा पिछले क़िस्त में कर चुका हूँ । अब मुज़ाहिफ़ शकल पर चर्चा करते हैं
[9] बहर-ए-रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलुन
2122---------2122-------212
मीर का एक शे’र है

ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा
दिल के जाने का निहायत ग़म  रहा

इशारा मैं कर दे रहा हूँ --तक़्तीअ  आप कर लें
2    1  2  2   / 2    1      2   2/ 2 1 2
ग़म रहा जब / तक कि दम में /दम रहा
2     1   2  2  /  2 1 2  2     / 2  1  2
दिल के जाने / का निहायत    /ग़म  रहा

इसी बहर में मीर का दूसरा भी शे’र सुन लें

इब्तिदा-ए-इश्क़ है ,रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता  है क्या
तक़्तीअ आप कर लें -इशारा मैं कर देता हूँ
2   1   2   2  / 2   1   2   2  / 2  1  2
इब् ति दा-ए-/ इश् क़ है ,रो /ता है क्या  [ रोता है क्या -में ’है’ की मात्रा गिरी हुई है -मगर शे’र बुलन्दपाया है\
2  1   2  2 / 2 1 2 2   /  2  1  2
आगे आगे /देखिए हो   /ता  है क्या [यहां पहले ’आगे’ में -गे- पर मात्रा गिरी हुई है -जिसकी इजाज़त भी है]

[10]  बहर-ए-रमल मुसद्दस मक़्सूर
फ़ाइलातुन------फ़ाइलातुन---फ़ाइलान
2122---------2122---------2121
उदाहरण --मीर के शे’र क जो उदाहरण ऊपर दिया है ,उसी गज़ल का मक़्ता है
सुब ह-ए-पीरी शाम होने आई ’मीर’
तू न चेता यां बहुत दिन कम रहा

तक़्तीअ आप कर लें--इशारा मैं कर देता हूं-
2     1      2 2 /  2 1  2 2 /  2 1  2 1
सुब ह-ए-पीरी/ शाम होने / आ इ ’मीर’
2  1   2 2 / 2 1  2   2      / 2  1  2
तू न चेता  /यां ब हुत दिन  /कम रहा
[नोट - बहर [9] और [10] ---महज़ूफ़ [212] की जगह मक़्सूर [2121] लाया जा सकता है और इसकी इजाज़त है -जैसा मीर ने किया भी है ।मगर शे’र की बहर का नाम निर्धारण ’मिसरा सानी’ मैं कोन सी बहर प्रयुक्त हुई है-उस से निर्धारित होगी
यानी आप ने अगर मिसरा सानी में मक़्सूर का इस्तेमाल किया है तो-बहर रमल मुसद्दस मक़्सूर ही कहलायेगी भले ही आप ने मिसरा उला मैं आप ने ’महज़ूफ़’ किया हो। उसी तरह अगर आप ने मिसरा सानी में आप ने महज़ूफ़ प्रयोग किया है तो बहर का नाम होगा -’रमल मुसद्दस महज़ूफ़- भले ही आप ने मिसरा उला में महज़ूफ़/मक़्सूर प्रयोग किया है। इस लिहाज़ से मीर के शे’र की बहर का नाम होगा -बहर-ए-रमल-मुसद्दस महज़ूफ़-कारण कि ’मतला’ के मिसरा सानी में उन्होने महज़ूफ़ का प्रयोग किया है।ख़ैर---  

[11] बहर-ए-रमल मुसद्दस मख़्बून 
फ़इलातुन----फ़इलातुन----फ़इलातुन
1122--------1122--------1122
एक उदाहरण -कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब के हवाले से
                 ये कभी बसतर-ए-राहत नहीं होती
                 ज़िन्दगी मरहला-ए-दार-ओ-रसन है
             तक़्तीअ 
1  1  2  2     / 1  1     2  2/   1  1  2 2
ये क भी बस / त र-ए-राहत/  न हीं होती
2    1 2    2   / 1  1  2   2/  1     1  2  2
ज़िन द गी मर /ह ल:-ए-दा/ र-ओ-रसन है
इशारा हम कर देते हैं-तक़्तीअ आप कर लें
[नोट  - यहां कसरे-इज़ाफ़त का -ए- और अत्फ़ का-ओ- को बहर की मांग पर तक़्तीअ में ले सकते है--नहीं भी ले सकते -इसे poetic liscence कहते हैं
और सदर और इब्तिदा में 1122 की जगह 2122 लाने की इजाज़त है जैसे इस केस में देख रहे हैं
और इन स्थितियों में भी आप ’फ़इलातुन’ [1122][ हरकत +हरकत ,हरकत +साकिन ,सबब-ए-खफ़ीफ़] है है तो तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है यानी 1122 फ़इलातुन  की जगह 222 [मफ़ ऊ लुन] लाया जा सकता है


[12-क] रमल मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन----फ़इलातुन---फ़इलुन
2122---------1122------112
मीर का एक शे’र है
कब तलक यह सितम उठाइएगा ?
एक दिन यूँ ही जी से  जाइएगा 

तक़्तीअ देख लेते है
                 2      1  2   2     / 1 1   2  2 / 1 12
कब तलक यह / सितम उठा/इएगा ?  [ सितम+उठा में  मीम और वाव वस्ल हो गया है]
                  2  1  2   2  / 1   1  2 2  / 1 12
एक दिन यूँ /ही जी से  जा/इएगा
एक बात और---- सदर/इब्तिदा  में ’फ़ाइलातुन’ [2122] के  जगह फ़इलातुन [ 1122] लाया जा सकता है -इसकी इजाज़त है

[12-ख]  फ़इलातुन------फ़इलातुन---फ़इलुन
1122----------1122------112 [यानी 2122  की जगह 1122 लाया जा सकता है]
[आप ध्यान से देखेंगे तो आख़िरी रुक्न [ अरूज के मुक़ाम पर] फ़ इ लुन [ फ़े---ऐन---लाम---अलिफ़---नून] है जिसमें 3- मुतहर्रिक हर्फ़ [फ़े--लाम--ऐन] एक साथ आ गये -अत: तस्कीन का मल हो सकत है और हम इसे [ ’फ़अ   लुन ]- [22] -ऐन साकिन होने से ---लिख सकते है और जो वज़न मरामद होगी उसे-’ मुस्सकिन’ कहेंगे। अगर यह अमल ऊपर लगाये [क-1] और [क-2] में लगायें तो दो वज़न और बरामद होगी
उदाहरण -कमाल अहमद सिद्दीकी साहब के हवाले से

आलम-ए-बेख़बरी में टूटा
दिल दिवाना खबरदार न था
इसकी तक़्तीअ कर के देखते है--
2   1   2   2/ 1 1 2 2  / 2 2
आ ल मे-बे /ख़ ब री में / टूटा
1 1        2  2 / 1  1  2   2   /1 1 2
दिल-ए- दीवा / न ख बर दा /र न था
[नोट - दिल-ए-दीवा/ना---मे कसरा इज़ाफ़त की वज़ह से दिल का लाम मय हरकत हो गया यानी ’दि ल’ यहां सबब-ए-सकील [हरकत+हरकत] हो गया अत: 1 1 का वज़न लिया गया है
सदर.इब्तिदा में 2122  की जगह 1122 लाने कि इजाज़त है और अर्रोज़ और जर्ब मैं 112 की जगह 22 [तसकीन के अमल से भी देख सकते है.] लाने की इजाज़त है


[13-क] बहर-ए-रमल मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मुसक्कन
फ़ाइलातुन----फ़इलातुन---फ़अ लुन   [
2122---------1122------22
उदाहरण --मसहफ़ी का एक शे’र है--

फट चुका जब से गरेबां तब से
हाथ पर हाथ धरे बैठे   हैं
चलिए हम इशारा किए देते है--तक़्तीअ आप कर लें
2      1   2   2  / 1 1  2 2 / 2  2
फट चुका जब / से ग रेबां /तब से
2  1  2   2  / 1  1 2  2 /  2  2
हाथ पर हा / थ ध रे बै /  ठे   हैं

[13-ख] फ़इलातुन----फ़इलातुन---फ़अ लुन
1122---------1122------22 [यानी 2122 की जगह 1122 लाया जा सकता है]
कोई शे’र आप तजवीज़ करें
अच्छा ,अब मक़्सूर का भी अमल देख लेते है
[14-क] रमल मुसद्दस मख़्बून मक़्सूर 
फ़ाइलातुन----फ़इलातुन---फ़इलान
2122---------1122------1121
ग़ालिब का एक शे’र है

दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
चलिए इशारा हम कर देते हैं --तक़्तीअ आप कर लें
2    1  2   2  / 1  1  2 2    /  1 1 2 1
दम लिया था /  न क़यामत / ने हनोज़
2    1  2   2    /  1  1 2     2   / 2  2
फिर तिरा वक़/  त -सफ़र या /द आया     [ यहाँ -द आया - में  दाल -अलिफ़ के साथ वस्ल हो गया



[14-ख] फ़इलातुन------फ़इलातुन---फ़इलान
1122----------1122------1121
वही बात यहाँ भी--आखिरी रुक्न -’ फ़इलान’ पर तस्कीन-ए-औसत का अमल लग सकता है--जिससे दो-वज़न और बरामद हो सकती है
उदाहरण---
फ़ानी बदायूँनी का एक शे’र है---
दिल-ए-फ़ानी की तबाही को न पूछ
इल्म-ए-लामुतनाही   को न पूछ
इशारा मैं कर देता हूं~तक़्तीअ आप कर लें
1   1      2    2   / 1  1 2  2 /  1  1 2 1
दि  ल-ए-फ़ानी /की त बाही / को न पूछ     [यहां दिल-ए-फ़ानी  में -इज़ाफ़त-ए-कसरा की वज़ह से -ल- पर हरकत आ जायेगी यानी मुतहर्रिक हो जायेगी।
1  1 2  2      / 1 1  2  2     / 1  1 2 1 
इ ल मे ला    / मु त नाही    / को न पूछ       [ की--को--पर  बहर की माँग पर मात्रा गिराई गई है]


[15-क] रमल मुसद्दस मख़्बून मक़्सूर मुसक्कन
फ़ाइलातुन----फ़इलातुन---फ़अ लान
2122---------1122------221
[नोट -यहाँ हस्व में फ़ इ ला तुन [1122] की जगह -मफ़ ऊ लुन [222] [तस्कीन के अमल से] लाया जा सकता है
[15-ख] फ़इलातुन----फ़इलातुन---फ़अ लान
1122---------1122------221
 और महज़ूफ़  की जगह  मक्सूर  और मक्सूर की जगह महज़ूफ़ लाया जा सकता है
इस प्रकार हम देखते है कि [12 से लेकर 15 तक ]मुसद्दस मख़्बून के 8-वज़न मिलते है । बहर 15 के लिए कोई शे’र आप तजवीज़ करें

इस प्रकार हम देखते है कि बहर-ए-रमल में  ’तस्कीन’ के अमल से और भी कई मज़ीद [अतिरिक्त] बहर बरामद की जा सकती है और वो निर्भर करेगा आप के ज़ौक़-ओ-शौक़ और आप की सुखनवरी पर ।

अगले क़िस्त में अब हम बहर-ए-रमल की मुसम्मन मुज़ाहिफ़ बह्रों पर चर्चा करेंगे

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--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....

एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात  और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान  कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब  सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब  , अजीज  दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब  का  और कुछ दीगर दोस्तों का तह-ए-दिल  से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से  कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर में इतनी  बिसात कहाँ  इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में  मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस  आलिम साहिबान  के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--


न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना  हूँ

[नोट् :- पिछले अक़सात  [क़िस्तों ]के आलेख [ मज़ामीन ]आप मेरे ब्लाग पर  भी देख सकते हैं 

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-आनन्द.पाठक-
akpathak3107@gmail.com

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