उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 38 [ बहर-ए-रमल की मुसम्मन मुज़ाहिफ़ बह्रें ] के अन्तर्गत
आइटम 11- बहर-ए-रमल मुसम्मन मश्कूल -की चर्चा करते वक़्त एक ग़लत बयानी हो गई थी -जिस की तरफ़ ध्यानाकर्षण मेरे एक मित्र ’श्री अजय तिवारी जी" -[जो उर्दू /अरूज़ के अच्छे जानकार है ] ने किया
अत: आप सभी से अनुरोध है उक्त आलेख निम्न संशोधन के साथ पढ़ें
[मूल आलेख में भी यह संशोधन कर दिया है ]
मगर यह बहर तो "मुज़ारे मुसम्मन अख़रब" की बह्र है [जिसकी चर्चा मैं ’मुरक़्क़ब बहूर’ के वक़्त आने वाले क़िस्त में करेंगे ] अर्थात तस्कीन के अमल से बह्र बदल गई तो इस तस्कीन का अमल जायज नहीं है अत: ऊपर कही हुई बात रद्द की जाती है ]
बह्र-"मुज़ारिअ मुसम्मन अख़रब " की चर्चा उर्दू शायरी की बहुत मक़्बूल बहर है और तमाम शो"अरा ने इस बह्र में शायरी की है --इस बहर की चर्चा उदाहरण सहित आइनदा अक़सात में उचित मौक़े पर करूँगा ]
इस बिन्दु की तरफ़ मेरे मित्र एवं नियमित पाठक जो अरूज़ के अच्छे जानकार है श्री अजय तिवारी जी ने ध्यान दिलाया -मैं उनका आभारी हूँ
मैं आ0 तिवारी जी का आभारी हूँ
आनन्द.पाठक
आइटम 11- बहर-ए-रमल मुसम्मन मश्कूल -की चर्चा करते वक़्त एक ग़लत बयानी हो गई थी -जिस की तरफ़ ध्यानाकर्षण मेरे एक मित्र ’श्री अजय तिवारी जी" -[जो उर्दू /अरूज़ के अच्छे जानकार है ] ने किया
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मगर यह बहर तो "मुज़ारे मुसम्मन अख़रब" की बह्र है [जिसकी चर्चा मैं ’मुरक़्क़ब बहूर’ के वक़्त आने वाले क़िस्त में करेंगे ] अर्थात तस्कीन के अमल से बह्र बदल गई तो इस तस्कीन का अमल जायज नहीं है अत: ऊपर कही हुई बात रद्द की जाती है ]
बह्र-"मुज़ारिअ मुसम्मन अख़रब " की चर्चा उर्दू शायरी की बहुत मक़्बूल बहर है और तमाम शो"अरा ने इस बह्र में शायरी की है --इस बहर की चर्चा उदाहरण सहित आइनदा अक़सात में उचित मौक़े पर करूँगा ]
इस बिन्दु की तरफ़ मेरे मित्र एवं नियमित पाठक जो अरूज़ के अच्छे जानकार है श्री अजय तिवारी जी ने ध्यान दिलाया -मैं उनका आभारी हूँ
मैं आ0 तिवारी जी का आभारी हूँ
आनन्द.पाठक
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