रविवार, 25 नवंबर 2018

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 52 [ बह्र-ए-मुक़्तज़िब]

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 52 [ बह्र-ए-मुक़्तज़िब] 

[Disclaimer cause : वही जो क़िस्त -1 में है]

पिछली क़िस्त 50 और 51 में बह्र-ए-मुज़ारे’ की चर्चा कर चुका हूँ आज बह्र-ए-मुक़्तज़िब की चर्चा करेंगे
बह्र-ए-मुक़्तज़िब के बुनियादी अर्कान हैं
मफ़ऊलातु--+-- मुस तफ़ इलुन
2221----------2212
   a----b
अगर आप को याद हो तो
"बह्र-ए-मुन्सरिह" का बुनियादी रुक्न था --मुस तफ़ इलुन [2212] +मफ़ऊलातु [2221]   यानी  b--a

तो फिर यह बह्र-ए-मुक़्तज़िब? यह बरअक्स है बह्र-ए-मुन्सरिह का यानी Mirror Image अर्कान के मामले में।
बहर-ए-मुन्सरिह के बुनियादी अरकान ’मुसम्मन ’ शकल में इस्तेमाल नहीं हो सकते थे --कारण कि वहाँ "मफ़ऊलातु"[2221]  था और इसका हर्फ़ उल आख़िर -तु- मुतहर्रिक था
मगर बहर-ए-मुक़्तज़िब के अर्कान का मुसम्मन शकल a---b---a---b  होता है और  अरूज़ और ज़र्ब के मुकाम पर ’मुसतफ़ इलुन [2212] लाया जा सकता है [सालिम शकल में ] क्यों कि यहाँ  हर्फ़ उल आख़िर -नून- साकिन है।
 यह बात तो आप जानते ही होंगे
इस बह्र में इन अर्कान पर लगने वाले कुछ ज़िहाफ़ात की चर्चा कर लेते है जिससे आगे आहंग समझने में सुविधा होगी
मफ़ऊलातु[ 2221] पर लगने वाले ज़िहाफ़:-

मफ़ऊलातु[2221] + ज़िहाफ़ तय्यी   =मुज़ाहिफ़   फ़ाइलातु  [2121]
’तय्यी’ -ज़िहाफ़ ऐसा ज़िहाफ़ है जो दोनो ही सालिम अर्कान [ मफ़ऊलातु- , मुस तफ़ इलुन] दोनों पर लगते है और अलग अलग ’मुज़ाहिफ़’ शकल बरामद होती है

मुसतफ़इलुन [2212] पर लगने वाले ज़िहाफ़ :-
मुसतफ़इलुन [2212] + ज़िहाफ़ तय्यी = मुज़ाहिफ़ मुतवी  = मुफ़ त इलुन [2112]
मुसतफ़इलुन [2212] + ज़िहाफ़ क़तअ’= मुज़ाहिफ़ मक़्तूअ’= मफ़ऊलुन [2 2 2]
मुसतफ़इलुन [2212 ] + ज़िहाफ़  रफ़अ’= मुज़ाहिफ़ मरफ़ूअ’ = फ़ाइलुन [2 1 2 ]
मुसतफ़इलुन [2212] + ज़िहाफ़ तरफ़ैल = मुज़ाहिफ़ मुरफ़्फ़ल = मुस तफ़ इलातुन [ 22122]
मुसतफ़इलुन [2212] + ज़िहाफ़ ख़ब्न+इज़ाल= मुज़ाहिफ़ मख़्बून मज़ाल = मफ़ा इलान [ 12121]

इस बह्र के मुसम्मन शकल ही ज़्यादातर प्रयोग हुआ है
चलिए अब इस बह्र के कुछ दिलकश आहंग की चर्चा कर लेते हैं
मुसम्मन आहंग:--
[क] मुक़्तज़िब मुसम्मन सालिम

मफ़ऊलातु---मुस तफ़ इलुन---मफ़ऊलातु---मुसतफ़इलुन
2221----------2212----------2221---------2212
कमाल अहमद सिद्दिक़ी साहब के हवाले से -एक शे’र

गुलअन्दाम, गुल चेहरा,गुल पैराहन अभी आएगा
तो मौज-ए-बहारी पसेमाँ  होगी  उसे देखकर

तक़्तीअ’आसान है --आप भी कर सकते है । चलिए एक बार कर के देखते हैं
   2     2    2 1     /   2   2    1  2    /  2  2 2  1     /   2   2  1 2
गुल अन् दाम      / गुल चेहरा, गुल /  पै रा हन अ    /  भी आएगा
   2   2  2    1  / 2  2 1 2        / 2  2  2  1     / 2  2  1  2
तो मौज-ए-ब / हारी पसे         /माँ  होगी  उ   /से दे ख कर

[ख] मुक़्तज़िब  मुसम्मन सालिम मतुवी 
मफ़ऊलातु---मुफ़तइलुन---मफ़ऊलातु---मुफ़तइलुन
2221----------2112-------2221---------2112
ज़ाहिर है कि पहला रुक्न ’मफ़ऊलातु’ 2221 अपनी सालिम शकल में होगा और दूसरा रुक्न  ’मुस तफ़ इलुन ’[2 2 1 2 ] का मतूवी शकल [ मुफ़ त इ लुन 2112] शकल में होगी
उदाहरण के तौर पर आप खुद्साख़्ता शे’र कह सकते है और तक़्तीअ’ कर के जाँच भी सकते हैं

[ग] मुक़्तज़िब मुसम्मन  मतूवी 
फ़ाइलातु---मुफ़ त इलुन-//--फ़ाइलातु---मुफ़ त इलुन
2121-------2112----- //   2121-------2112
किसी का एक शे’र है
यार-ए-बेवफ़ा से हमें कब उमीद-ए-वस्ल हुई
शोख़ दिलरुबा से हमे कब उमीद-ए-वस्ल हुई

इसकी तक़्तीअ आसान है-आप भी कर सकते हैं
चलिए एक बार कर के देखते हैं
 2  1    2  1 / 2  1 1 2 /  2   1 2 1  /       2  1  1 2
यार-ए-बेव/ फ़ा से हमें / कब उमीद / -ए-वस् ल  हुई
2  1    2   1   / 2  1  1 2 / 2  1 2 1 /      2    2  1 2
शोख़ दिलरु / बा से हमें /कब उमीद/-ए-वस्  ल  हुई
आप कहेंगे ’उमीद-ए-वस्ल ’ मे -ए- का वज़न कहाँ गया ? कहीं नहीं गया । यह कस्र-ए-इज़ाफ़त है- ए- पर-"पोयेटिक लाइसेन्स" ्है .बहर की माँग होती तो लेते चूँकि यहाँ ज़रूरत नहीं थी-सो नहीं लिया। यही बात  ’अत्फ़’ [-ओ-] के केस में भी होता है
यह वज़न बह्र-ए-शिकस्ता है
[घ] मुक़्तज़िब मुसम्मन मतवी मक़्तूअ’
फ़ाइलातु----मुफ़ त इलुन ---फ़ाइलातु---मफ़ऊलुन
2121-------2112-----------2121----222
बतौर मिसाल ,डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब का एक शे’र है

तेरी याद आए तो दिल ज़ार ज़ार रोता है
मेरे यार तू ही बता ज़िन्दगी कटे क्यों कर

एक बार इस की तक़्तीअ’ कर के देख लेते हैं

2  1  2  1 /  2 1 1 2      / 2 1 2 1 / 222
तेरी याद / आए तो दिल / ज़ार ज़ार /रोता है
2 1  2  1 / 2 1 1 2   / 2 1  2  1   / 2  2  2
मेरे यार  /तू ही ब ता  /ज़िन्दगी क  /टे क्यों कर
यहाँ ध्यान देने की बात है  मिसरा उला में --री---ए- तो-  को 1 के वज़न पर लिया गया है कारण कि बह्र मे इनके  मुक़ाम मुतहर्रिक के है और ये मुतहर्रिक हैं  भी
उसी प्रकार मिसरा सानी में -रे-तू-- का वही हस्र है

एक बात और--अगर आप ऊपर  ध्यान से देखें तो ’मुफ़ त इलुन ’ में 3- मुतहर्रिक [ हर्फ़ मय हरकत  --ते--ऐन---लाम---] एक साथ आ गये और यह मुज़ाहिफ़ रुक्न भी है अत:  इस पर ’तस्कीन’ का अमल हो सकता है । और तस्कीन -ए-औसत के अमल से यह शकल
"मफ़ ऊ लुन " [2 2 2] हो जायेगा और एक नई बह्र बरामद हो सकती है । जो नीचे लिखा है
[च ] मुक़्तज़िब मुसम्मन मतवी, मुतवी मुसक्किन, मुतवी ,मुतवी मुसक्किन
फ़ाइलातु-----मफ़ऊलुन-----फ़ाइलातु------मफ़ऊलुन
2121--------222-------//-----2121------222
ग़ालिब का एक शे’र है

मय वो क्यों बहुत पीते ,बज़्म-ए-ग़ैर में यारब 
आज ही हुआ मंज़ूर उनको इम्तिहाँ अपना 

तक़्तीअ कर के भी देख लेते हैं
2     1    2   1 /  2   2  2 / /  2   1      2 1  / 2  2 2
मय वो क्यों ब / हुत पी ते // ,बज़् म -ए-ग़ै र /में या रब
2   1  2  1 /  2  2    2   / /  2    1  2  1  /  2  2  2
आज ही हु/ आ मन ज़ूर //उन को इम् ति /हा अप ना

आप कहेंगे ’बज़्म-ए-ग़ैर ’ मे -ए- का वज़न कहाँ गया ? कहीं नहीं गया । यह कस्र-ए-इज़ाफ़त है- ए- पर-"पोयेटिक लाइसेन्स" ्है .बहर की माँग होती तो लेते चूँकि यहाँ ज़रूरत नहीं थी-सो नहीं लिया। यही बात  ’अत्फ़’ [-ओ-] के केस में भी होता है
यह बह्र भी   बह्र-ए-शिकस्ता है
[छ] मुक़्तज़िब मुसम्मन मतवी मरफ़ूअ’
फ़ाइलातु---फ़ाइलुन--//--फ़ाइलातु---- फ़ाइलुन 
2121-------212--//----2121--------212
डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब के हवाले से

हक़ से हूँ मैं बेख़बर ,मुझको रास्ता दिखा
मुझको हर गुनाह से,.ऐ मेरे ख़ुदा  बचा

तक़्तीअ’ तो बहुत आसान है आप ख़ुद कर सकते हैं। चलिए एक मिसरा की तक़्तीअ’ आप की सुविधा के लिए कर दे रहा हूँ -दूसरे मिसरे की आप ख़ुद कर के देख सकते है

हक़ से हूँ  मैं / बे ख़ बर //,मुझ कू रास् /ता दिखा
 2    1  2   1 / 2 1 2   //  2    1   2 1 / 2 1 2
यह बह्र भी बह्र--ए-शिकस्ता है

[ज] मुक़्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’ मख़्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन

फ़ऊलु---फ़ेलुन-----फ़ऊलु---फ़ेलुन
121------22--------121------22-
डा0 साहब के हवाले से

जला रहे हैं जो मेरे घर को
वो मेरे भाई हैं जानता हूँ मैं

तक़्तीअ’ आप करें मैं इशारा कर दे रहा हूँ

जला र /हे हैं / जो मेरे /घर को
वो मेरे/  भाई / हैं जान  /ता हूँ
इस बह्र की "मुसद्दस मुज़ाइफ़" [12-रुक्नी]  और ’मुसम्मन मुज़ाइफ़’ [16-रुक्नी] आहंग भी मुमकिन है जो नीचे लिख दिया है

{झ] मुक़्तज़िब मुसद्दस मख़्बून मरफ़ूअ’ ,मख़्बून मरफ़ूअ’,मुसक्किन मुज़ाइफ़ [12-रुक्नी]
 फ़ऊलु----फ़ेलुन--/फ़ऊलु--फ़ेलुन  / फ़ऊलु--फ़ेलुन
121---------22--/  121-----22  /   121------22
और
[त] मुक़्तज़िब मुसम्मन  मख़्बून मरफ़ूअ’ ,मख़्बून मरफ़ूअ’,मुसक्किन मुज़ाइफ़ [16-रुक्नी]
फ़ऊलु----फ़ेलुन--/फ़ऊलु--फ़ेलुन  / फ़ऊलु--फ़ेलुन/ फ़ऊलु---फ़ेलुन
121---------22--/  121-----22  /   121------22 / 121-------22

बहर-ए-मुक़्तज़िब के और भी औज़ान मुमकिन है सभी की तफ़सील यहाँ मुमकिन नहीं है और न ही ज़रूरत है
इस बह्र के मज़ीद [अतिरिक्त] कुछ  ख़ास वज़न आप की जानकारी के लिए लिख रहा हूँ आप चाहें तो आप इस वज़न में शायरी कर सकते है
कुछ और आहंग से भी आप वाक़िफ़ हो लें
मुसद्दस आहंग :-
बह्र-ए-मुक़्तज़िब मुसद्दस सालिम
मफ़ऊलातु---मसतफ़इलुन----मुसतफ़इलुन
[A] 2221---2212-----2212
्ज़ाहिर है कि ’मफ़ऊलातु’ अरूज़ या ज़र्ब के मुक़ाम पर नहीं लाया जा सकता -कारण कि -तु- हर्फ़ उल आख़िर मुतहर्रिक है और शे’र या मिसरा के अन्त में मुतहर्रिक हर्फ़ नहीं लाया जा सकता । अत: उस मुक़ाम पर ’मुसतफ़इलुन’ लाया गया है जिसमें आख़िरी हर्फ़ ’नून; साकिन है अत: सही भी है।
बह्र-ए-मुक़्तज़िब मुसद्दस सालिम मुस्बीग़ अल आख़िर
[B] 2221----2212--22121
यह आप जानते हैं कि मिसरा के अन्त में सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [ जैसे ऊपर के रुक्न में -लुन- है] तो एक हर्फ़-ए-साकिन बढ़ाने से आहंग और वज़न में कोई फ़र्क नहीं पड़ता । इसे ’मुस्बीग़’ कहते है
[नोट -एक बात और---’अल’ [ अलिफ़-लाम] Arbic Article जो Arbic लफ़्ज़ के साथ ही प्रयोग होता है जब कि ’-ए- और -ओ- फ़ारसी के इज़ाफ़त हैं जो फ़ारसी लफ़्ज़ के साथ ही प्रयोग होता है। चूँकि उर्दू में ’अरबी--फ़ारसी--तुर्की --हिन्दी
आदि के भी शब्द समाहित हो गये हैं अत: आजकल फ़ारसी के इज़ाफ़त किसी भी लफ़्ज़ के साथ लगा देते हैं
बह्र-ए-मुक़्तज़िब मुसद्दस मतूवी मतूवी
फ़ाइलातु----मुफ़ त इलुन--मुफ़ त इलुन
[C] 2121---2112---2112

यह आप जानते हैं कि मिसरा के अन्त में सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [ जैसे ऊपर के रुक्न में -लुन- है] तो एक हर्फ़-ए-साकिन बढ़ाने से आहंग और वज़न में कोई फ़र्क नहीं पड़ता । इसे ’मुस्बीग़’ कहते है। मुफ़ त इलुन का मुस्बीग़
 ’ मुफ़ त इलान [ 21121] है
       फ़ाइ लातु--------मुफ़ त इलुन----मुफ़ त इलान 
[D] 2121-----------2112------------21121

[E] मुक़्तज़िब मुसद्दस मतूवी मतूवी मुरफ़्फ़ल
फ़ाइलातु---मुफ़ त इलुन---मुफ़ त इलातुन
2121---------2112---------21122
[F]   मुक़्तज़िब मुसद्दस सालिम मरफ़ूअ’ मख्बून 
मफ़ऊलातु-----फ़ाइलुन---मफ़ाइलुन
2221----------212--------1212

[G] मुक़्तज़िब मुसद्दस सालिम मरफ़ूअ’ मख्बून मज़ाल 
मफ़ऊलातु-----फ़ाइलुन---मफ़ाइलान
2221----------212--------12121
[H] मुक़्तज़िब मुसद्दस मख्बून मतूवी मतूवी मुरफ़्फ़ल
मफ़ाईलु-----मुफ़ त इलुन---मुफ़ त इलातुन
1221--------2112-------------2 1 2 2

मुरब्ब: आहंग:-
[I]   मुक़्तजब मुरब्ब: सालिम मतूवी
मफ़ऊलातु---मुफ़ त इलुन
2 2  2 1------2112
[J]  मुक़्तज़िब  मुरब्ब: सालिम मुरफ़्फ़ल
मफ़ऊलातु---मुसतफ़ इलातुन
2221--------22122
इस बह्र का "मुरब्ब: मुज़ाइफ़" भी मुमकिन है जैसे
मफ़ऊलातु---मुसतफ़ इलातुन //मफ़ऊलातु---मुसतफ़ इलातुन
2221--------22122     //   2221--------22122

[K] मुक़्तज़िब मुरब: मतूवी सालिम मुरफ़्फ़ल
  फ़ाइलातु----मुसतफ़ इलातुन
 2121----------22122
शायरी करने के लिए बह्र की कमी नहीं है } आप कोई भी शे’र या ग़ज़ल कहें -बस बह्र और वज़न दुरुस्त होना चाहिए --जिसकी जाँच आप तक़्तीअ’ कर के देख सकते हैं
एक बात और ---शायरी के किए सिर्फ़ ’बह्र’ दुरुस्त हो काफी नहीं --क़ाफ़िया--रदीफ़-- अरूज़ी वक़्फ़ा-- भी दुरुस्त होना चाहिए और बेशक तग़ज़्ज़ुल और शे’रियत भी तो होनी चाहिए
मैं यह दावा तो नहीं करता कि मैने बह्र-ए- मुक़्तज़िब के सभी औज़ान या आहंग पर चर्चा कर लिया। हाँ कुछ हद तक और मक़्बूल पर ही चर्चा की है ।आहंग और भी मुमकिन है
अगली क़िस्त में किसी और आहंग पर चर्चा करेंगे।
अस्तु
{क्षमा याचना -वही जो पिछले क़िस्त में है}-इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

-आनन्द.पाठक-


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