सोमवार, 25 मार्च 2019

उर्दू बह्र पर एक बातचीत " क़िस्त 62 [ छोटी बह्र--मझो्ली बह्र--बड़ी बह्र]

उर्दू बह्र पर एक बातचीत " क़िस्त 62 [ छोटी बह्र--मझो्ली बह्र--बड़ी बह्र]

[नोट इस क़िस्त के साथ क़िस्त 77 भी देखें]

फ़ेसबुक के किसी मंच पर एक सवाल किया गया कि छोटी बह्र--मझो्ली बह्र--बड़ी बह्र में कितनी मात्राएं हो सकती है ।यह आलेख उसी सन्दर्भ में लिखा गया है

प्रश्न : छोटी बह्र--मझो्ली बह्र--बड़ी बह्र

चूँकि ’बह्र’ अरूज़ का विषय है और अरूज़ की किताबों में -"छोटी बह्र--मझो्ली बह्र--बड़ी बह्र ’ जैसी बात का कोई ज़िक़्र नहीं मिलता ,न ही ऐसी कोई परिभाषा ही मिलती है। वह तो कुछ लोगों ने छोटी बह्र -बड़ी बह्र की बात चला रखी है-जिसका कोई मतलब नही है। वैसे व्यक्तिगत रूप से मैं ऐसी बातों से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखता।फिर भी  इस प्रश्न पर विचार तो किया ही जा सकता है।
तवील बह्र के नाम से अरूज़ में एक ही बह्र का नाम आता है --बह्र -ए-तवील -- जिसका "बड़ी बह्र" से दूर दूर तक कोई संबन्ध नहीं है
[क] सबसे छोटी बह्र---
[1] उर्दू शायरी किसी शे’र का सबसे छोटी शक्ल ’मुरब्ब:’ [ यानी किसी मिसरा में 2-रुक्न ] हो सकती है
[2] और सबसे  छोटी रुक्न 5-हर्फ़ी [ मुतदारिक फ़ाइलुन’ या मुतक़ारिब  ’फ़ऊलुन’ -5-हर्फ़ ] हो सकता है
[3] अगर ’फ़ाइलुन]-212 पर ख़ब्न का ज़िहाफ़ लगाएँ तो मख़्बून -फ़अ’लुन [ 112] यानी 4- हर्फ़ बरामद हो सकता है [ तस्कीन-ए-औसत की अमल से भी 4-हर्फ़ी वज़न ही बरामद होगा।
[4]   अगर फ़ाइलुन  212 पर ’हज़ज़’ का ज़िहाफ़ लगाए तो ’अहज़ज़ या महज़ूज़ ] फ़े [2] बरामद होगा
अत: मेरे ख़याल से  बह्र-ए-मुतदारिक मुरब्ब : मख़्बून महज़ूज़ [फ़अ’लुन-फ़े] यानी 112-2 का वज़न [कुल मात्रा 6 ] हासिल होगी या ऐसी ही मुतक़ारिब में भी कोई और बह्र बरामद हो सकती है

शायद यही 6- मात्रा भार वाली सबसे "छॊटी’ बहर हो ।
[ख]  सबसे लम्बी बह्र
[ 1] उर्दू शायरी में सबसे लम्बा वज़न ’मुसम्मन मुज़ाअ’फ़ [ 16-रुक्नी ] का होता है
[2] और सबसे बड़ा वज़न - 7-हर्फ़ी रुक्न [ जैसे फ़ाइलातुन----मफ़ाईलुन---मुस तफ़ इलुन --वग़ैरह वग़ैरह] होता है
अत: बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन मुज़ाअ’फ़  जिसमे एक मिसरे में 8-रुक्न [ मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन // मफ़ाईलुन---मफ़ाईलुन--मफ़ाईलुन--मफ़ाईलुन\
यानी 1222---1222----1222----1222--// 1222---1222--1222--1222- = कुल 56 मात्रा
यही बात अन्य 7-हर्फ़ी रुक्न के साथ भी लागू होगा
अत: मेरे ख़याल से "बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन मुज़ाअ’फ़" [ 56 मात्रा] सबसे लम्बी बह्र हो सकती है
 जो बह्र इन दोनों सीमाओं में न आती हो उसे ’मझोली बह्र ’ कह सकते है

[नोट -इस मंच पर कई ’आलिम उस्ताद’ और अरूज़ के जानकार मौजूद है अत: उन से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि इस विषय पर वो लोग भी अपने विचार रखें जिससे अन्य लोग भी लाभान्वित हो सके ]
सादर
[नोट इस क़िस्त के साथ क़िस्त 77 भी देखें]
-आनन्द पाठक-

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