बात ऐसी हुई है क्या साहेब ?
हो गए आप क्यों ख़फ़ा साहेब?
कुछ तो कहिए कहाँ कि ये आखिर
लग गई आप को हवा साहेब ?
ख़ामशी और ऐसी खामोशी !
कब मुहब्बत में है रवा साहेब ?
हाय यह कैसी बे-नियाज़ी है ?
रंगे-हस्ती बिखर गया साहेब
क्या कोई मुझसे बद गुमानी है ?
तौबा ,तौबा ! ख़ुदा ! ख़ुदा ! साहेब !
याद है आप को कि मैं हूँ कौन ?
आशना और बावफ़ा ! साहेब !
मुझसे कोई अगर शिकायत है
कीजिए आप बरमला साहेब !
छोड़िए अब मुआफ़ कर दीजिए
कुछ अगर हो कहा-सुना साहेब !
दोस्ती और आश्ती के सिवा
इस जहाँ में रखा है क्या साहेब ?
आप दिल में हैं ,आप आँखों में
मेरी सूरत है आईना साहेब !
रह-रवे-राहे-आशानाई हूँ
गरचे हूँ शिकस्ता-पा साहेब !
दर्दमन्दी के और मुहब्बत के
वादे सब कीजिए वफ़ा साहेब !
मैं भी हो जाँऊ आप ही जैसा
मेरे हक़ में करें दुआ साहेब !
बह्रे-तज़्दीदे-शौक़ ’सरवर ’ को
याद करना है क्या बुरा साहेब ?
- - सरवर
आश्ती = शान्ति./अमन/सुकून
बरमला = खुल्लम-खुल्ला,आमने-सामने
शिकस्ता-पा = अपाहिज
गरचे = हालाँ कि ,यद्दपि
बह्रे-तज़्दीद =नए सिरे से ,दुबारा
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