ग़ज़ल 033
नज़र मिली, बज़्म-ए-शौक़ जागी, पयाम अन्दर पयाम निकला
मगर वो इक लम्हा-ए-गुरेज़ां , न सुब्ह आया ,न शाम निकला
" बड़े तकल्लुफ़ से आया साग़र ,बड़े तजम्मुल से जाम निकला"
हमारा जौक़-ए-मय-ए-वफ़ा ही रह-ए-मुहब्बत में ख़ाम निकला
वफ़ा है क्या, दोस्ती कहाँ की,हमारी तक़दीर है तो यह है
किया जो साये पे अपने तकिया तो वो भी मेह्शर-ख़िराम निकला
मैं आब्ला-पा , दरीदा-दामां खड़ा था सेहराये जूस्तजू में
मगर दलील-ए-सफ़र ये मेरा खु़द-आगही का क़ियाम निकला
न आह-ए-लर्ज़ां, न अश्क-ए-हिरमां, बदन-दरीदा ,न सर-ख़मीदा
तिरी गली से ज़रूर गुज़रा , मगर ब-सद-इहतराम निकला
इक एक हर्फ़-ए-उमीद-ओ-हसरत ग़ज़ल की सूरत में ढल गया है
मिरा सलीक़ा दम-ए-जुदाई खिलाफ़-ए-दस्तूर-ए-आम निकला
कभी यकीं पर गुमां का धोका ,कभी गुमां पर यकीं की तुहमत
हमें खुश आयी ये सदा-लौही ,हमारा हर तरह काम निकला
हज़ार सोचा ,हज़ार समझा ,मगर ज़रा कुछ न काम आया
क़दम क़दम मंज़िल-ए-ख़िरद में ,मिरा जुनूं से ही काम निकला
गुमां ये था बज़्म-ए-बेख़ुदी में ,बहक न जाये कहीं तू "सरवर"
मगर तिरा नश्शा-ए-ख़ुदी तो हरीफ़-ए-मीना-ओ-जाम निकला
-सरवर-
लम्हा-ए-गुरेज़ां = (आप के साथ) बिताए हुए पल
तजम्मुल = शानो-शौकत से
ख़ाम =दोष, ग़लती
तकिया = भरोसा
महशर ख़िराम =क़यामत की चलन
दरीदा दामां =फटा-चिथड़ा दामन
सहराये जुस्तजू = तलाश का रेगिस्तान
आह-ए-लर्ज़ां =काँपती हुई आवाज़
अश्क-ए-हिर्मां =नाउम्मीदी की आँसू
सर-ख़मीदा =झुका हुआ सर,नत-मस्तक
सादा-लौही =कोरा स्लेट/कोरा कागज़
ख़िरद =अक़्ल
बा-सद-ऐहतिराम = सैकड़ों बार इस्तिक़्बाल करते हुए
हरीफ़ =विरोधी
नज़र मिली, बज़्म-ए-शौक़ जागी, पयाम अन्दर पयाम निकला
मगर वो इक लम्हा-ए-गुरेज़ां , न सुब्ह आया ,न शाम निकला
" बड़े तकल्लुफ़ से आया साग़र ,बड़े तजम्मुल से जाम निकला"
हमारा जौक़-ए-मय-ए-वफ़ा ही रह-ए-मुहब्बत में ख़ाम निकला
वफ़ा है क्या, दोस्ती कहाँ की,हमारी तक़दीर है तो यह है
किया जो साये पे अपने तकिया तो वो भी मेह्शर-ख़िराम निकला
मैं आब्ला-पा , दरीदा-दामां खड़ा था सेहराये जूस्तजू में
मगर दलील-ए-सफ़र ये मेरा खु़द-आगही का क़ियाम निकला
न आह-ए-लर्ज़ां, न अश्क-ए-हिरमां, बदन-दरीदा ,न सर-ख़मीदा
तिरी गली से ज़रूर गुज़रा , मगर ब-सद-इहतराम निकला
इक एक हर्फ़-ए-उमीद-ओ-हसरत ग़ज़ल की सूरत में ढल गया है
मिरा सलीक़ा दम-ए-जुदाई खिलाफ़-ए-दस्तूर-ए-आम निकला
कभी यकीं पर गुमां का धोका ,कभी गुमां पर यकीं की तुहमत
हमें खुश आयी ये सदा-लौही ,हमारा हर तरह काम निकला
हज़ार सोचा ,हज़ार समझा ,मगर ज़रा कुछ न काम आया
क़दम क़दम मंज़िल-ए-ख़िरद में ,मिरा जुनूं से ही काम निकला
गुमां ये था बज़्म-ए-बेख़ुदी में ,बहक न जाये कहीं तू "सरवर"
मगर तिरा नश्शा-ए-ख़ुदी तो हरीफ़-ए-मीना-ओ-जाम निकला
-सरवर-
लम्हा-ए-गुरेज़ां = (आप के साथ) बिताए हुए पल
तजम्मुल = शानो-शौकत से
ख़ाम =दोष, ग़लती
तकिया = भरोसा
महशर ख़िराम =क़यामत की चलन
दरीदा दामां =फटा-चिथड़ा दामन
सहराये जुस्तजू = तलाश का रेगिस्तान
आह-ए-लर्ज़ां =काँपती हुई आवाज़
अश्क-ए-हिर्मां =नाउम्मीदी की आँसू
सर-ख़मीदा =झुका हुआ सर,नत-मस्तक
सादा-लौही =कोरा स्लेट/कोरा कागज़
ख़िरद =अक़्ल
बा-सद-ऐहतिराम = सैकड़ों बार इस्तिक़्बाल करते हुए
हरीफ़ =विरोधी
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