शनिवार, 3 मार्च 2012

ग़ज़ल 034 : नफ़स नफ़स सर-ब-सर.....

ग़ज़ल 034


नफ़स नफ़स सर-ब-सर परेशां,नज़र नज़र इज़्तिराब में है

मगर वो तस्वीर-ए-हुस्न-ए-मानी निक़ाब में थी निक़ाब में है



कोई बताये कि फ़र्क़ कैसा यह आशिक़ी के निसाब में है

मिरे सवालों में कब था आख़िर वो सब जो उन के जवाब में है



मज़ा न ज़ुह्द-ओ-सवाब में है ,न लुत्फ़ जाम-ओ-शराब में है

"ग़म-ए-जुदाई से जान मेरी अजब तरह के अज़ाब में है "



न मुँह से बोलो,न सर से खेलो,अजीब दस्तूर है तुम्हारा

सलाम लेने का यह तरीक़ा तुम्हीं कहो किस किताब में है?



मियान-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल-ओ-हसरत तलाश के लाख मरहले थे

रह-ए-मुहब्बत में कामयाबी बताइये किस हिसाब में है ?



कशाकश-ए-रंज-ए-हिज्र, तौबा! किसे तमन्ना-ए-वस्ल है अब?

ज़हे मुहब्बत,मिरा तख़ैय्युल जो ख़ुद शिनासी के बाब में है



तमाशा-ए-बूद-ओ-हस्त अस्ल-ए-हयात है तो हयात क्या है?

जो बात अबतक हिजाब में थी ,वो बात अब भी हिजाब में है



सहर-गज़ीदा, चिराग़-ए-शब था, भड़क भड़क के जो बुझ गया है

वुजूद, मानिन्द-ए-दूद मेरा तवाफ़-ए-बज़्म-ए-ख़राब में है



ज़माना बेज़ार तुझ से "सरवर",तू आप बेज़ार ज़िन्दगी से

कोई ख़राबी तो है यक़ीनन जो तुझ से ख़ाना-ख़राब में है



-सरवर

इज़्तिराब =बेचैनी

निसाब =जमा-पूंजी/कमाई

ज़ुह्द-ए-सवाब =पाप-पुण्य की बातें

अज़ाब में है = मुश्किल में है

कशाकश =खींच-तान

तख़य्युल =ख़याल में

ख़ुद शिनासी के बाब = खु़द को जानने के अध्याय

बूद-ओ-हस्त =जीवन और अस्तित्व

सहर-गज़ीदा =जिसको सुबह ने काट खाया हो

मानिन्द-ए-दूद =धुआँ-धुआँ सा

ख़ाना ख़राब = बर्बाद

तवाफ़-ए-बज़्म-ए-ख़राब=बर्बाद दुनिया के चक्कर में













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