ग़ज़ल 035
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे
हम किसी की आरज़ू में क्या से क्या होने लगे
बेकसी ने बे-ज़बानी को ज़बां क्या बख़्श दी
जो न कह सकते थे अश्कों से अदा होने लगे
हम ज़माने की सुख़न-फ़हमी का शिकवा क्या करें?
जब ज़रा सी बात पर तुम भी ख़फ़ा होने लगे
रंग-ए-महफ़िल देख कर दुनिया ने नज़रें फेर लीं
आशना जितने भी थे ना-आशना होने लगे
हर क़दम पर मंज़िलें कतरा के दूर होने लगीं
राज़हाये ज़िन्दगी यूँ हम पे वा होने लगे
सर-बुरीदा ,ख़स्ता-सामां ,दिल-शिकस्ता,जां-ब-लब
आशिक़ी में सुर्ख़रू नाम-ए-ख़ुदा होने लगे
आगही ने जब दिखाई राह-ए-इर्फ़ान-ए-हबीब
बुत थे जितने दिल में सब कि़ब्ला-नुमा होने लगे
आशिक़ी की ख़ैर हो "सरवर" कि अब इस शहर में
वक़्त वो आया है बन्दे भी ख़ुदा होने लगे !
-सरवर
सुर्खरू -कामयाब
आगही =जानकारी
क़िब्ला नुमा =आदरणीय
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे
हम किसी की आरज़ू में क्या से क्या होने लगे
बेकसी ने बे-ज़बानी को ज़बां क्या बख़्श दी
जो न कह सकते थे अश्कों से अदा होने लगे
हम ज़माने की सुख़न-फ़हमी का शिकवा क्या करें?
जब ज़रा सी बात पर तुम भी ख़फ़ा होने लगे
रंग-ए-महफ़िल देख कर दुनिया ने नज़रें फेर लीं
आशना जितने भी थे ना-आशना होने लगे
हर क़दम पर मंज़िलें कतरा के दूर होने लगीं
राज़हाये ज़िन्दगी यूँ हम पे वा होने लगे
सर-बुरीदा ,ख़स्ता-सामां ,दिल-शिकस्ता,जां-ब-लब
आशिक़ी में सुर्ख़रू नाम-ए-ख़ुदा होने लगे
आगही ने जब दिखाई राह-ए-इर्फ़ान-ए-हबीब
बुत थे जितने दिल में सब कि़ब्ला-नुमा होने लगे
आशिक़ी की ख़ैर हो "सरवर" कि अब इस शहर में
वक़्त वो आया है बन्दे भी ख़ुदा होने लगे !
-सरवर
सुर्खरू -कामयाब
आगही =जानकारी
क़िब्ला नुमा =आदरणीय
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बढ़िया ग़ज़ल .हर शैर खूबसूरत .मायने देकर लफ्जों के आपने इन्हें और भी बोधगम्य और मौजू बना दिया है .
जवाब देंहटाएंसभी अशार उम्दा... शानदार ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई.
वाह जनाब वाह
जवाब देंहटाएंआ0 शास्त्री जी/वीरु भाई/जनाब हबीब साहब/वीनस जी
जवाब देंहटाएंग़ज़ल पसन्द आई .बहुत-बहुत शुक्रिया
सादर
आनन्द.पाठक