ग़ज़ल 038
आफ़त हो, मुसीबत हो, क़ियामत हो, बला हो
मालूम तो हो मेरे लिये कौन हो ,क्या हो ?
कहने को तो बातें है बहुत शाम-ए-मुहब्बत
क्या कीजिए जब दिल ही यह मजबूर-ए-अना हो
मेराज-ए-मुहब्बत है यह मेराज-ए-वफ़ा है
मैं हूँ ,तिरी बस याद हो और हर्फ़-ए-दुआ हो
मैं अपने ही अल्फ़ाज़ में गुमकर्दा-ए-मंज़िल
तुम जान-ए-ग़ज़ल,जान-ए-सुख़न,हुस्न-ए-अदा हो
मजबूर-ए-मुहब्बत हूँ ,गुनहगार नहीं हूँ
तुम कौन सी अक़्लीम-ए-मुहब्बत के ख़ुदा हो?
हो जायेगा बतलाओ गज़ब कौन सा ऐसा ?
गर मंज़िल-ए-उल्फ़त में शिकायत भी रवा हो
गुमराही-ए-सद-राह-ए-मुहब्बत मुझे ख़ुश है
हाँ शर्त ये है तू ही मिरा राह-नुमा हो
दुनिया से जो उम्मीद-ए-वफ़ा तुम को है "सरवर"
इतना तो बताओ भला तुम चाहते क्या हो?
-सरवर
अक़्लीम-ए-मुहब्बत =मुहब्बत की दुनिया
मालूम तो हो मेरे लिये कौन हो ,क्या हो ?
कहने को तो बातें है बहुत शाम-ए-मुहब्बत
क्या कीजिए जब दिल ही यह मजबूर-ए-अना हो
मेराज-ए-मुहब्बत है यह मेराज-ए-वफ़ा है
मैं हूँ ,तिरी बस याद हो और हर्फ़-ए-दुआ हो
मैं अपने ही अल्फ़ाज़ में गुमकर्दा-ए-मंज़िल
तुम जान-ए-ग़ज़ल,जान-ए-सुख़न,हुस्न-ए-अदा हो
मजबूर-ए-मुहब्बत हूँ ,गुनहगार नहीं हूँ
तुम कौन सी अक़्लीम-ए-मुहब्बत के ख़ुदा हो?
हो जायेगा बतलाओ गज़ब कौन सा ऐसा ?
गर मंज़िल-ए-उल्फ़त में शिकायत भी रवा हो
गुमराही-ए-सद-राह-ए-मुहब्बत मुझे ख़ुश है
हाँ शर्त ये है तू ही मिरा राह-नुमा हो
दुनिया से जो उम्मीद-ए-वफ़ा तुम को है "सरवर"
इतना तो बताओ भला तुम चाहते क्या हो?
-सरवर
अक़्लीम-ए-मुहब्बत =मुहब्बत की दुनिया
अच्छी जानकारी है...
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