शनिवार, 11 नवंबर 2017

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 34 [बह्र-ए-हज़ज की मुज़ाहिफ़ बह्रें -4]

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 34 [बह्र-ए-हज़ज की मुज़ाहिफ़ बह्रें -4]

Discliamer clause -वही जो क़िस्त 1 में है 

----क़िस्त 30-से लेकर क़िस्त 33 तक] बह्र-ए-हज़ज की बहुत सी मुज़ाहिफ़ बह्र पर चर्चा कर चुके हैं।आज इस क़िस्त में  हम कुछ और मुज़ाहिफ़ बह्र पर चर्चा करेंगे 
अब् हमें नहीं लगता है कि मुरब्ब: ---मुसद्दस---मुसम्मन--मुज़ाइफ़  के बारे मैं कुछ और बताने की कोई ज़रूरत है और न ही  महज़ूफ़---मकफ़ूफ़---मक़्सूर---अखरब---क्या है ,के बारे में ।[ये सब ज़िहाफ़ात है जो सालिम रुक्न के अवयव [ज़ुज़] पे लगते हैं जिस से इनकी  तबादिल शकल बरामद होती है --ये सब उसके नाम है ] इन सब की चर्चा मैने पिछले अक़्सात [ ब0ब0 क़िस्त] में कर चुका हूँ
यहाँ जो हलन्त से हर्फ़ दिखाया गया है -उसे आप साकिन समझिए
जो-लु- दिखाया गया है उसे आप मुतहर्रिक [यानी लाम पर हरकत] समझिए
 निम्नलिखित बहरों के उदाहरण डा0 आरिफ़ हसन खान साहेब की किताब "मेराज-उल-अरूज़’ से साभार लिया गया है ।आप् भी चाहें तो ख़ुद्साख़्ता शे’र कह सकते हैं इन वज़न पर। इस हक़ीर ने भी कोशिश  की ,मगर फ़िलबदीह अश’आर न कह सका इन औज़ान पर । आइन्दा कोशिश करूँगा इन्शा अल्लाह , कामयाबी हासिल हो ।आप से गुज़ारिश है कि यहाँ पर जो शे’र उदाहरण के लिए दिए गये हैं वो डा0 साहब के ख़ुदसाख़्ता अश’आर है जो सिर्फ़ समझने और समझाने और बताने की अल गरज  कहे गये हैं । इस में आप शे’रियत न देखियेगा --तेल देखियेगा और तेल की धार देखियेगा। उनकी शे’रियत या फ़न्न-ए-शायरी देखने के लिये उनकी मुज़्मुआ गज़लियात किताब -" कुछ नज़्में कुछ ग़ज़लें" -देखियेगा।

[1]A  बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु----मफ़ाईलु-----फ़ऊलुन्
221--------1221-------122 / 1221
उदाहरण--
जब याद तेरी दिल को सताए
अए माहजबीं  नींद न आये
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

जब याद/   तिरी दिल कू / सताए
अए माह/  जबीं  नींद     / न आये

[1]B  बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फ़ूफ़ मक़्सूर
मफ़ऊलु----मफ़ाईलु-----फ़ऊलान्
221--------1221-------1221
उदाहरण
जाने से तेरे दिल हुआ वीरान
जैसे हो कोई उजड़ा हुआ शहर

इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

जाने से /    तिरे दिल हु / आ वीरान
जैसे हू / कुई उजड़ा    / हुआ शहर   [ शह्  र =21]

शायरी में ’महज़ूफ़’ और मक़सूर का ख़ल्त जायज है

[2]A  बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक़्बूज़ महज़ूफ़ 
मफ़ऊलु-----मफ़ाइलुन्----फ़ऊलुन् 
221---------1212-------122
उदाहरण--
यह इश्क़ अजीब एक बला है
बख़्शा न बड़े बडों को इस ने

इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

ये इश्क़ /  अजीब इक / बला है
बख़्शा न / बड़े बडों    /कू इस ने

[2]B बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक़्बूज़ मक़्सूर 
मफ़ऊलु-----मफ़ाइलुन्----फ़ऊलान्
221---------1212-------1221
उदाहरण
था नाज़ बहुत कि दिल न देंगे
देखा जो उसे तो उड़ गए होश

इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

था नाज़ /   बहुत कि दिल / न देंगे     [ न देंगे  =122= महज़ूफ़ है]
देखा जू/  उसे तो उड़  /   गए होश   [ गए होश = 1221= मक़सूर]
’महज़ूफ़’ और मक़सूर का ख़ल्त जायज है

[3]A   बहर-ए-ह्ज़ज मुसद्दसअख़रब मक़्बूज़ मुख़्निक़ महज़ूफ़
मफ़ ऊलन्------फ़ाइलुन्----फ़ऊलुन्
222----------212----------122
अगर आप ऊपर के रुक्न [2]A-पर ’तख़्नीक’ का अमल करें [यानी " मफ़ऊलु---मफ़ाइलुन "-3 मुतहर्रिक [ लाम---मीम --फ़े] एक साथ आ गए ] तो आप को बहर [3]A बरामद हो जायेगा और इसका नाम भी वही होगा बस ’मुख़्नीक़’ और जोड़ देंगे
उदाहरण--
आँखे  भींगी तड़प उठा दिल
जब जब तेरा ख़याल   आया
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

आँखे  भीं / गी तड़प /उठा दिल
जब जब ते/ रा ख़या  /ल   आया

[3]B   बहर-ए-ह्ज़ज मुसद्दस अख़रब मक़्बूज़ मुख़्निक़ मक़्सूर
मफ़ ऊलुन्------फ़ाइलुन्----फ़ऊलान्
222----------212----------1221
उदाहरण
कर लें जितनी जफ़ायें चाहे
चाहत से हम न आयेंगे  बाज़

  इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

कर लें जित/ नी जफ़ा/ ये चाहे           [ य चाहे = 122= महज़ूफ़]
चाहत से    / हम न आ/ यगे  बाज़      [ यगे बाज़= 1221= मक़सूर]
महज़ूफ़’ और मक़सूर का ख़ल्त जायज है

[4]A  बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फ़ूफ़ मजबूब 
मफ़ऊलु-------मफ़ाईलु----फ़ अल्
221-----------1221-------12
उदाहरण
प्यारी है ज़बां  सब से मेरी
चर्चा है ज़माने में  यही
  इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

प्यारी है/  ज़बां  सब से/  मेरी
चर्चा है / ज़माने में      / यही


[4]B  बहर-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फ़ूफ़ अहतम
मफ़ऊलु-------मफ़ाईलु----फ़ऊल्
221-----------1221------- 121
उदाहरण
बेमिस्ल हमारा है  ये देश
जन्नत से भी प्यारा है ये देश

  इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

बेमिस्ल   /हमारा है   / ये देश
जन्नत से / भी प्यारा है /ये देश
[नोट - इस बहर [4] में ’तख़्नीक़’ के अमल से और भी कई वज़न बरामद किए जा सकते है जो आपस में मुतबादिल होंगे जो जायज़ है।

[5] बहर-ए-हज़ज मुरब्ब: अख़रब
मफ़ऊलु----मफ़ाईलुन्
221--------1222
उदाहरण
हैं लाख हसीं जग में
तुम सा न कोई लेकिन
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

हैं लाख     /  हसीं जग में
तुम सा न  / कुई लेकिन

[6]A   बहर-ए-हज़ज मुरब्ब: अख़रब महज़ूफ़
मफ़ऊलु-----फ़ऊलुन्
221-----------122-
उदाहरण
खुशरंग कोई गुल
तुम जैसा कहाँ  है
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

खुशरंग / कुई गुल
तुम जैसा/  कहाँ  है
[6]B   बहर-ए-हज़ज मुरब्ब: अख़रब मक़्सूर
मफ़ऊलु------फ़ऊलान्
221-----------1221
उदाहरण
सब ताब पड़े माँद
देखे जो तुझे  चाँद

इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है
सब ताब /पड़े माँद
देखे जो  /तुझे  चाँद

[7]A बहर-ए-हज़ज मुरब्ब: मक़्बूज़ मजबूब 
मफ़ा इलुन्------फ़ अल्-
1212----------12-
उदाहरण
तुम्हारी याद ने
खिलाये गुल नए
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

तुम्हारी या   / द ने
खिलाये गुल / न ए


[7]B बहर-ए-हज़ज मुरब्ब: मक़्बूज़ अहतम
मफ़ा इलुन्------फ़ऊल्
1212---------- 121
उदाहरण
जो मुस्करायें आप
तो जल उठे चिराग़
इशारा मैं कर रहा हूँ ,तक़्तीअ आप कर लें --आसान है

जो मुस्करा  / ये आप
तो जल उठे / चिराग़

रुबाई की बहर : रुबाई की बह्र हज़ज से ही  पैदा होती हैं ,और 24- वज़न बरामद होते हैं ।चूँकि रुबाई उर्दू काव्य विधा की एक अलग स्वतन्त्र  इकाई है अत: इसकी चर्चा यहाँ करना मुनासिब नहीं .कभी अलग से स्वतन्त्र रूप से इस पर बातचीत करेंगे
आप की जानकारी के लिए थोड़ी सी चर्चा यहां कर देते है
रुबाई  की दो मूलभूत बहर है [जो हज़ज से ही निकलती है ]

[1] मफ़ऊलु-----मफ़ाईलु-----मफ़ाईलु-----फ़ अल् /फ़ऊल्
    221----------1221--------1221-------12-/ 121

[2] मफ़ऊलु-----मफ़ा इलुन्------मफ़ाईलु--- फ़ अल्/ फ़ऊल्
     2 2 1----------12 12---------1221------12-/121

इन्हीं दो बुनियादी बहरों पर् -तख़्नीक़- के अमल से 24-वज़न बरामद होते है और ये -24- वज़न आपस में मुतबादिल होते हैं [ यानी आपस में बदले जा सकते हैं ]
यानी रुबाई के चारो लाईनों में अलग अलग वज़न [ but out of these 24-vazan] लाए जा सकते हैं
बात यहीं छोड़े जाता हूँ -जब रुबाई के बह्र की चर्चा करेंगे तो बात यहीं से उठायेंगे
-----------------------------
ख़ुदा ख़ुदा कर , बहर-ए-ह्ज़ज का बयान पूरा हुआ। मैं यह दावा तो नहीं करता कि मैने हज़ज के सभी वज़न cover कर लिया है .पर हाँ ,बहुत हद तक   cover कर लिया है। आप चाहें तो हज़ज की और भी कई मुज़ाहिफ़ बहर बरामद कर सकते है

अगले किस्त में हम बहर-ए-हज़ज की उन तमाम बहूर /औज़ान  को एक साथ एक जगह सम्पादित [मुरत्तब] करेंगे जिनकी चर्चा हम गुजिस्ता अक़सात में कर चुके हैं जिससे  पाठको को एक जगह पढ़ने की सुविधा मिल सके।
अस्तु

आप की टिप्पणी का इन्तज़ार रहेगा

--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....

एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात  और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान  कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब  सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब  , अजीज  दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब  का तह-ए-दिल  से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से  कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर इतनी  बिसात कहाँ  इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में  मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस  आलिम साहिबान  के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--

न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना  हूँ

[नोट् :- पिछले अक़सात  [क़िस्तों ]के आलेख [ मज़ामीन ]आप मेरे ब्लाग पर  भी देख सकते हैं 

www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें