शनिवार, 25 नवंबर 2017

उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 35 [ बहर-ए-हज़ज की बह्रें -एक जगह]

उर्दू बहर पर एक बातचीत : क़िस्त 35 [ बहर-ए-हज़ज की बह्रें -एक जगह]

Discliamer clause -वही जो क़िस्त 1 में है 

क़िस्त 30 से लेकर क़िस्त 34 तक ,बहर-ए-हज़ज की सालिम और मुज़ाहिफ़ बहरों की चर्चा कर चुके हैं। साथ ही रुबाई की उन बुनियादी बह्रों की भी चर्चा कर चुका हूँ जिस से रुबाई के वज़न बरामद होते हैं । यानी यह चर्चा विस्तार से होने के कारण काफी लम्बी हो गई।अत: उन तमाम बह्र और वज़न को एक जगह लिख रहा हूँ जिससे पाठकों को पढ़ने में सुविधा हो। विशेष जानकारी और उदाहरण सम्बन्धित क़िस्त या अरूज़ की किताब में देखा जा सकता है

[1] हज़ज सालिम मुरब्ब:
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्
1222---------1222
[2] हज़ज सालिम मुसद्दस
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्---मुफ़ाईलुन्
1222---------1222------1222
[3] हज़ज सालिम मुसम्मन
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्---मुफ़ाईलुन् -----मुफ़ाईलुन्
1222---------1222------1222   --------1222
[4] हज़ज सालिम मुसम्मन मुसब्बीग़
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्---मुफ़ाईलुन् -----मुफ़ाईलान्
1222---------1222------1222   --------12221
[5] हज़ज मुसद्दस सालिम महज़ूफ़ अल आख़िर
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्---फ़ऊलुन्
1222---------1222-------122
[नोट- शे’र में अरूज़ के मुक़ाम पर महज़ूफ़ [122] की जगह ’फ़ऊलान [1221] लाने की इजाज़त है
[6] हज़ज मुसद्दस सालिम मक़सूर अल आख़िर
मुफ़ाईलुन्-----मुफ़ाईलुन्---फ़ऊलान्
1222---------1222-------1221
[नोट- शे’र में अरूज़ के मुक़ाम पर महज़ूफ़ [122] की जगह ’फ़ऊलान [1221] लाने की इजाज़त है ।
बहर 5 और बहर 6 को ध्यान से देखें अल आखिर रुक्न या तो महज़ूफ़ है या मक़्सूर है और  दोनो रुक्न शे’र के अरूज़ और जर्ब के मुक़ाम पर आपस मैं बदले जा सकते है
मगर बहर का नाम ’जर्ब के मुक़ाम पर’ जो ज़िहाफ़ लगा होगा[यानी मिसरा सानी का अल आखिर मुक़ाम] से तय होगा। अगर आप ने जर्ब पे मक़्सूर लाया है तो बहर के नाम में
मक़्सूर अल आख़िर जोड़ा जायेगा। और पूरी ग़ज़ल में यह क़ैद बरक़रार रहेगी । भले ही आप मिसरा उला में महज़ूफ़ रखें या मक़्सूर रखें। यही बात महज़ूफ़ [यानी रुक्न [5] के लिए भी लागू होगी
[7] हज़ज मक़्बूज़ मुसम्मन
मफ़ा इलुन्---मफ़ा इलुन्----मफ़ा इलुन्----मफ़ा इलुन्
1212----------1212--------1212--------1212
[8] हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़ सालिम
मफ़ा इलुन्---मफ़ा ईलुन्-----मफ़ा इलुन्-----मफ़ाईलुन्
12 12     -------1222-------1212-------1222--
[9] हज़ज अस्तर सालिम मुरब्ब: मुज़ाइफ़ 
फ़ा इलुन्----मुफ़ा ईलुन् ----फ़ा इलुन्----मुफ़ाईलुन्
212--------1222---------212----------1222
[10]     हज़ज अस्तर सालिम मुसब्बीग़ मुरब्ब: मुज़ाहिफ़
फ़ाइलुन्-----मुफ़ाईलान्----फ़ाइलुन्-------मुफ़ाईलान्
212-------12221---------212---------12221
[बहर [9] और [10] को ध्यान से देखें तो स्पष्ट है  रुक्न [10] में दूसरे और चौथे मुकाम पर ’मुफ़ा ईलुन [1222] की जगह  मुफ़ाईलान [12221] लाया जा सकता है जिसकी इजाज़त है जिसे ’तस्बीग़’ कहते हैं]
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[11] हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम
मफ़ऊलु------मुफ़ाईलुन्--//---मफ़ ऊलु-----मुफ़ाईलुन्
221-----------1222------//--221----------1222
[12] हज़ज मुरब्ब: अख़रब सालिम
मफ़ऊलु-------मुफ़ाई्लुन्--
221------------1222
[13] हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम मुसब्बीग़
मफ़ऊलु---------मुफ़ाईलान्
221-------------12221
[14]  हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक़्फ़ूफ़ सालिम
मफ़ऊलु---मुफ़ाईलु-----मुफ़ाईलु------मुफ़ाईलुन्
221--------1221--------1221--------1222
[15] हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ सालिम मुसब्बीग़
मफ़ऊलु----मुफ़ाईलु----मुफ़ाईलु-----मुफ़ाईलान्
221--------1221--------1221--------12221
[16] हज़ज मुसम्मन मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़अल अख़िर
मुफ़ाईलु-------मुफ़ाईलु-----मुफ़ाईलु-----मुफ़ाइल्
1221----------1221--------1221-----122
[17] हज़ज मुसम्मन मक्फ़ूफ़  मक़्सूर अल अख़िर
मुफ़ाईलु-------मुफ़ाईलु-----मुफ़ाईलु-----फ़ऊलान्
1221----------1221--------1221-----1221
[बहर [16] और [17] को ध्यान से देखें
[ मुफ़ाइल 122=फ़ऊलुन्---महज़ूफ़ है]
[ फ़ऊलान् 1221---मक़्सूर है[ अरूज़ और जर्ब में इन दोनों का ख़ल्त जायज है
[18] हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्बूज़ मकफ़ूफ़ मजबूब 
मफ़ऊलु ---मफ़ाइलुन्-----मफ़ाईलु----फ़ अल्
A------------B
221-------1212---------1221------12- 
यह रुबाई की बुनियादी बहर है और इस पर ’तख़्नीक़’ के अमल से  रुबाई के 12-औज़ान [वज़न का ब0ब0] बरामद किए जा सकते है
और रुक्न A और  B पर तख़्नीक़ के अमल से नीचे [12] की वज़न बरामद की जा सकती है
{19] हज़ज मुसम्मन अख़रम अस्तर मकफ़ूफ़ मजबूब
मफ़ऊलुन्-----फ़ाइलुन्-----मुफ़ाईलु--फ़ अल्
222------ ---212--------1221-----12   
[यह भी रुबाई की मूल बहर  है इस से भी ’तख़्नीक़ ’ के अमल से  रुबाई के 12 वज़न बरामद किए जा सकते है]
अत: रुबाई के कुल 24-वज़न बरामद किए जा सकते है । इस की चर्चा किसी अलग मुक़ाम पर करेंगे

[20] ह्ज़ज मुसम्मन अख़रम अहतम
मफ़ऊलु----मफ़ाईलुन---मफ़ऊलु---फ़ऊलु
221--------1222--------221------121
[21] ह्ज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ अलअख़िर
मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन----फ़ऊलुन
1222----      1222---------122
[22] हज़ज मुसद्दस मक्सूर अल आख़िर
मफ़ाईलुन------मफ़ाईलुन-----फ़ऊलान
1222-----------1222-------1221
(23)     हज़ज मुसद्दस अख़रब मक़्बूज़ मक़्बूज़
मफ़ऊलु------मफ़ाइलुन-----मफ़ाइलुन
221-----------1212----------1212
(24) हज़ज मुसद्दस अखरब मक़्बूज़ मक़्बूज़ मुसब्बीग़
मफ़ऊलु--------मफ़ाइलुन------मफ़ाइलान
221-------------1212----------12121
(25) हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु-----मफ़ाईलु-------फ़ऊलुन
221----------1221----------122
(26)  हज़ज मुसद्दस अख़रब मकफ़ूफ़ मक्सूर
मफ़ऊलु-----मफ़ाईलु-------फ़ऊलान
221----------1221---------1221

ख़ुदा ख़ुदा कर के, बहर-ए-ह्ज़ज का बयान पूरा हुआ। मैं यह दावा तो नहीं करता कि मैने हज़ज के सभी वज़न cover कर लिया है .पर हाँ ,बहुत हद तक   cover कर लिया है।

हम यह तो नहीं कह सकते है कि हमने बहर-ए-हज़ज की तमाम मुम्किनात बहर पर चर्चा कर ली पर हाँ बहुत सी बुनियादी और मक़्बूल बहूर पर ज़रूर चर्चा कर लिया है
अभी भी बहुत से मुख़तलिफ़ बहर हैं [जो तख़्नीक के अमल से बरामद हो सकती है]  मुरब्ब: .मुसद्दस---मुसम्मन आदि शकल पर] जिस  पर चर्चा की सकती है पर यह आप के ज़ौक-ओ-शौक़-ए-सुखन पर निर्भर करेगा। हो सकता है कि बहुतो को मज़ीद तज़्क़िरा ग़ैर ज़रूरी लगे । सभी पर एक जगह चर्चा करने से हो सकता है कि  मुबहम  का  बाइस हो जाए। ख़ैर--
अब अगली क़िस्त मे हम बहर-ए-रमल पर चर्चा करेंगे

आप की टिप्पणी का इन्तज़ार रहेगा

--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....

एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात  और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान  कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब  सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब  , अजीज  दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब  का तह-ए-दिल  से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से  कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर इतनी  बिसात कहाँ  इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में  मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस  आलिम साहिबान  के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--

न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना  हूँ

[नोट् :- पिछले अक़सात  [क़िस्तों ]के आलेख [ मज़ामीन ]आप मेरे ब्लाग पर  भी देख सकते हैं 

www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-

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