उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 77 [ बड़ी बह्र ]
[नोट : इस लेख के साथ क़िस्त 62 भी देखें ]
पिछली क़िस्त 62 में "छोटी बह्र " पर एक चर्चा की थी।
आज हम ’बड़ी बह्र या लम्बी बह्र ’ पर बात करेंगे कि क्या कोई बड़ी या लम्बी बह्र पर होती है ? क्या अरूज़ में ऐसी कोई मख़्सूस ] ख़ास निर्धारित की गई है ।या छोटी बह्र की तरह यह भी एक Perception मात्र है ?
अभी तक किसी शायर को यह लिखते हुए नहीं देखा -
"-- बड़ी बह्र में एक ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है---" । शायद आप ने देखा हो ।
अच्छा, जब किसी ने यह लिखा ही नहीं -तो बहस किस बात की !
मगर इस पर विचार करने में हर्ज भी क्या है । विचार तो किया जा सकता है ।
अच्छा, अब मूल विषय पर आते हैं--लम्बी बह्र क्या है या क्या हो सकती है ।
बज़ाहिर [ स्पष्टत: ] लम्बी बहर वह बहर हो सकती है जिसमें मापनी [ अर्कान ] की संख्या और मात्रा भार [वज़न ]ज़्यादा से ज़्यादा हो ।
सामान्यतया लोग मुसम्मन [ यानी शे;र में मापनी की संख्या 8 वाली] बहर में शायरी करते है और सुविधाजनक भी है । अगर इनको मुज़ाइफ़ [ दो गुना ] कर दे तो बह्र का नाम होगा --मुसम्मन मुज़ाइफ़-- और अर्कान की संख्या होगी 16 यानी 8 x 2 होगी जो क्लासिकल अरूज़ के लिहाज़
से सबसे ज़्यादा अर्कान वाली बह्र होगी। ऐसी बह्र को 16-रुक्नी बह्र भी कहते हैं।
[ नोट - मुसम्मन और मुज़ाइफ़ की चर्चा पहले कर चुका हूँ।
मुज़ाहिफ़ और मुज़ाइफ़ से आप confuse न हों ।तलफ़्फ़ुज़ लगभग एक जैसा है ।
मुज़ाहिफ़ रुक्न --सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ लगाने से हासिल होता है।
और "मुज़ाइफ़"--माने किसी चीज़ को "दो गुना’ करना होता है । ख़ैर।
अब कुछ 16- रुक्नी बह्र में अज़ीम शो’अरा की ग़ज़ल के 2-4 शे’र देख लेते है फ़िर उनमें इस्तेमाल हुई " मात्रा भार [वज़न ] की संख्या" पर विचार करेंगे।
पूरी ग़ज़ल ’रेख्ता’ साइट पर मिल जायेगी।
इस बह्र को आप पहचानते होंगे
21--121--121--122 // 21-121-121-12
जी बिलकुल सही पकड़ा।
जी हाँ । यह ’मीर’ की बह्र है --जिसके एक शे’र में 16-रुक्न इस्तेमाल होते हैं यानी मिसरा में -8
हमारे बहुत से मित्र 21--121--121--122 को ही मीर का बह्र कह देते है या समझ लेते हैं
या फिर 21--121--121---12 को ही मीर का बह्र कह देते है ।
Individually ये दोनॊ अलग अलग बह्र हैं और इनके अलग अलग नाम भी हैं ।।लेकिन जब यह
combined हो कर एक साथ आती हैं तो -मीर की बह्र -कहलाती हैं ।
[ मीर की बह्र --पर एक विस्तृत आलेख मेरे ब्लाग ’ उर्दू बह्र पर एक बातचीत " -किस्त 59 पर उपलब्ध है } इच्छुक पाठकों
की सुविधा के लिए और विशेष जानकारी के लिए लिन्क रहा हूँ
https://aroozobahr.blogspot.com/2020/06/60.html
उर्दू बह्र पर एक बातचीत -किस्त 59
इन तमाम बह्र और अर्कान [ मापनी ] के नाम भी हैं ।मैं इन सब के नाम जानबूझ कर नहीं लिख रहा हूँ।कारण?
कारण कि मेरे बहुत से साथी बह्र को उनके नाम से से नही बल्कि Numerical अलामत [ चिह्नों [ जैसे 1222--1222 आदि से जानते और पहचानते है
नाम लिखने से उन लोगों को लेख समझना और दुरूह हो जाएगा।
मीर ने इस बह्र में कई ग़ज़लें कहीं है .जिसमें --एक मशहूर ग़ज़ल यह भी है
मूल बह्र 21--121--121--122 // 21-121-121-12 = 16/14 = 30 मात्रा भार वज़न एक मिसरा में।
पत्ता पता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के जिया को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है
-मीर तक़ी मीर-
नीचे वाली गज़ल मीर का है पर मीर की बहर नहीं है -
नीचे [121-22 ] को ग्रुपिंग कर के दिखा रहा हूँ कि समझने में सुविधा हो । वास्तव में ये दो अलग-अलग मुज़ाहिफ़ रुक्न है जो सालिम रुक्न पर ज़िहाफ़ के अमल से बरामद होते हैं
मूल बह्र 121-22 / 121--22/ 121-22/ 121-22/= 32 मात्रा भार वज़न एक मिसरा मे। मिसरा में 8-रुक्न
करो तवक्कुल कि आशिक़ी में न यूँ करोगे तो क्या करोगे
अलम जो यह है दर्द मन्दॊं कहाँ तलक तुम दवा करोगे
ग़म-ए-मुहब्बत से ’मीर’ साहब बतंग हूँ मैं फ़क़ीर हो तुम
जो वक़्त होगा कभी मुसाइद तो मेरे हक़ मे दुआ करोगे
-मीर तक़ी मीर-
16-रुक्नी बह्र में कुछ अन्य शायरो की ग़ज़ल से 2-4 शे’र लिख रहा हूँ
[ख]
मूल बह्र 22-112/22-112//22-112/22-112 = 32 मात्रा भार एक मिसरा में ।यानी मिसरा में 8-रुक्न
मयख़ाना-ए-हस्ती में अकसर हम अपना ठिकाना भूल गए
या होश में जाना भूल गए या होश में आना भूल गए
मालूम नहीं आइने में चुपके से हँसा था कौन "अदम"?
हम जाम उठाना भूल गए ,वो साज़ बजाना भूल गए
अब्दुल हमीद ’अदम’-
[ग]
मूल बह्र 121--22/121-22//121-22/ 121-22 = 32 मात्रा भार एक मिसरा में
लतीफ़ पर्दों से नुमायां मकीं के जल्वे मकां से पहले
मुहब्बत आइना हो चुकी थी वजूद-ए-बज़्म-ए-जहाँ से पहले
अज़ल से शायद लिखे हुए थे ’शकील’ किस्मत में जौर-ए-पैहम
खुली जो आँखें इस अंजुमन में नज़र मिली आस्मां से पहले
शकील बदायूनी
22--112/ 22-112 //22-112/ 22-112
हंगामा-ए-ग़म से तंग आकर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
मशहूर थी अपनी ज़िन्दा-दिली दानिस्ता शरारत कर बैठे
अल्लाह तो सब की सुनता है ,जुर्रत है ”शकील’अपनी-अपनी
’हाली’ ने ज़बाँ से उफ़ भी न की ,’इक़बाल’ शिकायत कर बैठे
शकील बदायूनी
इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि 16- रुक्नी मक़्बूल [ लोकप्रिय ] बह्र में एक मिसरा में ज़्यादातर वजन =32 का आता है।
जब कि मीर की बहर में =30 मात्रा ही आ रही है यानी -2- कम } इसे अरूज़ की भाषा में -सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [ 2] बोलते है।
बाक़ी सभी बह्रे मुज़ाइफ़ बह्रें हैं --मीर की बह्र मुज़ाइफ़ बह्र नहीं है ।
मुजाइफ़ बह्र के लिए ज़रूरी है कि इसको दो बराबर -बराबर भाग में बाँटा जा सकें जब कि मीर की बह्र 16//14 unequal हैi|
ख़ैर।
अब इन मुज़ाइफ़ बह्रों की कल्पना कीजिए
जो 16-रुक्नी तो है मगर मात्रा भार [वज़न ] अलग है
122--122--122-122 // 122--122--122-122 = 40 मात्रा भार एक मिसरा में [ नाम आप जानते होंगे}
------
212---212---212---212-// 212--212--212--212 = 40 मात्रा भार वज़न बह्र का भी नाम आप जानते होंगे।
"मुतदारिक सालिम मुसम्मन मुज़ाइफ़ " इस बह्र में भी एक ग़ज़ल के चन्द अश’आर देख लीजिए--
212--212--212--212-// 212--212--212-212=
दिल दुखाए कभी ,जाँ जलाए कभी, हर तरह आज़माए तो मैं क्या करूँ ?
मैं उसे याद करता रहूँ हर घड़ी , वो मुझे भूल जाए तो मैं क्या करूँ ?
मैने माना कि कोई ख़राबी नहीं , पर करूँ क्या तबियत ’गुलाबी’ नहीं
मैं शराबी नहीं ! मैं शराबी नहीं ! वो नज़र से पिलाए तो मैं क्या करूँ ?
सरवर आलम राज़ ’सरवर’
यदि यही Logic अन्य सालिम बह्रों पर लगाया जाए ,जैसे -
हज़ज [ 1222 ] ,रमल [2122] ----- कामिल [11212] जैसी बह्रों का ’मुसम्मन मुज़ाइफ़" बनाया जाए तो क्या होगा ?
बनाया जा सकता है ।Theoretically and technically possible है } । अरूज़ में मनाही तो है नही कि इन मुज़ाइफ़ बह्रों में ग़ज़ल
नहीं कही जा सकती । आप कर सकते हैं अगर आप में हुनर है । मुझे यक़ीन है कि आप कर सकते है [ तबअ’ आज़माई के तौर पर ही
सही या फ़नी एतबार से ही सही }
मगर आज तक ऐसी कोई ग़ज़ल मेरी नज़र से गुज़री नही । अगर आप की नज़र से गुज़री हो तो अलग बात है।
1222--1222--1222--1222-// 1222--1222-1222-1222- = 56 मात्रा एक मिसरा में या ऐसे ही और कोई सालिम बह्र
तो क्या यह सबसे लम्बी बह्र हो सकती है ?
हो सकती है । मगर अमलन [ Practically या व्यावहारिक रूप से ] होती नहीं ।कोई शायर इतनी लम्बी बह्र में शायरी करता नहीं।
कारण ? नहीं मालूम
--शायद एक कारण यह हो कि इतनी लम्बी बह्र में शे’र को पढ़ना आसान काम न हो। स
--शायद इतनी लम्बी बह्र में भाव को ,अल्फ़ाज़ [ शब्दों ] को एक साथ बाँध कर [ गुम्फ़ित कर के condensed कर के ] जमाए रखना आसान काम न हो
--शायद मिसरा या शे’र का कसाव ढीला हो जाए तो शे’र हल्का हो जायेगा श्रोताऒ कॊ बाँध न पाए।
कारण जो भी हो । मैने लम्बी बह्र की एक संभावना व्यक्त की है कि यह सबसे लम्बी बह्र हो सकती है ।
एक मज़ेदार बात और ।
क्या आप जानते है कि जदीद शायरी मे [ आधुनिक शायरी ] में एक मिसरा में 5-अर्कान [ यानी एक शे’र में 10-रुक्न ] कुछ लोग शायरी करते है ।जहाँ क्लासिकल अरूज़
[ मुसम्मन तक ] खत्म हो जाता है उसके आगे की शायरी। हालाकि ऐसी ग़ज़ल बहुत प्रचलन में नहीं है मक़्बूलियत हासिल नहीं है ,मान्यता नहीं मिली मगर कुछ लोग करते हैं।
आटे में नमक के बराबर ही सही।आप भी कर सकते हैं ।मनाही नहीं है ।
अगर कल्पना करें कि ऐसे शे’र [ एक मिसरा में 5-रुक्न ] का मुज़ाइफ़ करेंगे तो क्या हासिल होगा : ? यानी एक शेर में 20- अर्कान ।यानी ज़्यादा से ज़्यादा 7x 20 =140 मात्रा भार वज़न [ अगर 7- हर्फ़ी सालिम रुक्न का इस्तेमाल हुआ हो तो ]
बस बस अब रहने दीजिए । छोड़िए अब यह बात, बहुत हो गई । हा हा हा हा ।
ज़्यादातर शायर मुसम्मन और मुसद्दस बहे में शायरी करना पसन्द करते है ?
इसलिए कि अनुभव के आधार पर यही Optimum स्थिति है जिसमे शे’र कसा हुआ रहता है भाव गठे हुए रहते हैं अदायगी बेहतर होती है ।
।आप जिस बह्र मे comfortable feel करें उसी बह्र में शायरी करें। "छोटी बह्र" --"लम्बी बह्र" की बह्स में न उलझे । बात निकली तो बेबात की बात कर ली।
[नोट - इस मंच के गुरुजनॊ से करबद्ध प्रार्थना है कि अगर इस लेख में कुछ तथ्यात्मक दोष दृष्टिगोचर हो तो कृपया ध्यान में अवश्य लाएं जिससे मैं स्वयं को सही कर सकूँ ]
सादर
[नोट : इस लेख के साथ क़िस्त 62 भी देखें ]
-आनन्द पाठक--
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