ग़ज़ल :005
दिल को यूँ बहला रखा है
दर्द का नाम दवा रखा है !
आओ प्यार की बातें कर लें
इन बातों में क्या रखा है !
झिलमिल-झिलमिल करती आँखें
जैसे एक दिया रखा है !
अक़्ल ने अपनी मजबूरी का
थक कर नाम ख़ुदा रखा है !
मेरी सूरत देखते क्या हो ?
सामने आईना रखा है !
राहे-वफ़ा के हर काँटे पर
दर्द का इक क़तरा रखा है
अब आए तो क्या आए हो ?
आह ! यहाँ अब क्या रखा है !
अपने दिल में ढूँढो पहले
तुमने खु़द को छुपा रखा है
अब भी कुछ है बाक़ी प्यारे?
कौन सा ज़ुल्म उठा रखा है !
’सरवर’ कुछ तो मुँह से बोलो
यह क्या रोग लगा रखा है ?
-सरवर-
क्या बात है..इतनी बेहतरीन ग़ज़ल बाँटने के लिये शुक्रिया..पहले क्यों नही पढ़ा इसे मैने..
जवाब देंहटाएंखासतौर पर यह शेर
अक़्ल ने अपनी मजबूरी का
थक कर नाम ख़ुदा रखा है !
bahut khoob! sarwar ji ke andaz mirza Daagh saab jaisa hai. bahut khoob!!
जवाब देंहटाएंkya saadgii hai...
अब आए तो क्या आए हो ?
आह ! यहाँ अब क्या रखा है !
wahwa!! ..shukria