एक ग़ज़ल : शौक़ है उनको मुस्कराने का--
शौक़ है उन को मुस्कराने का
नीम-जानों को आजमाने का
तेरी आँखों से बर्क़ कहती है
दर्स दे बिजलियाँ गिराने का
हर जगह अब है जुस्तजू मेरी
सिलसिला है मुझे मिटाने का
इससे बेहतर है क़त्ल ही कर दे
फ़ायदा क्या मुझे सताने का
जब क़दम कू-ए-यार में बहके
लुत्फ़ आया फ़रेब खाने का
फ़स्ल-ए-गुल हुस्न की नुमायश है
है यह मौसम बहार आने का
हुस्न फितरत से है जफ़ा परवर
इश्क़ तो नाम है निभाने का
हर सदा पर गुमां ये होता है
जैसे मुज़्दा हो तेरे आने का
ज़ेब जो तुमको है किए जाओ
हश्र देखेंगे दिल लगाने का
हाय! क्या क्या वो दिल में रखता है
जिसके दिल में है ग़म ज़माने का
--- पी०के० स्वामी
नीमजान =- कच्चे ह्रदय वाला
दर्स =- सबक
कू-ए-यार =- माशूक की गली
फ़स्ल-ए-गुल =-बहार का मौसम
मुज़्दा =- खुश खबरी
हश्र =- परिणाम
बहुत ख़ूब आनंद जी...मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल है। बाकी एक एक कर पढ़ेंगे।
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