ग़ज़ल 013
शब-ए-उम्मीद है ,सीने में दिल मचलता है
हमारी शाम-ए-सुख़न का चिराग़ जलता है
न आज का है भरोसा ,न ही ख़बर कल की
ज़माना रोज़ नयी करवटें बदलता है
अजीब चीज़ है दिल का मुआमला यारों !
सम्भालो लाख, मगर ये कहाँ सम्भलता है
न तेरी दोस्ती अच्छी ,न दुश्मनी अच्छी
न जाने कैसे तिरा कारोबार चलता है
सुना है आज वहाँ मेरा नाम आया था
उम्मीद जाग उठी ,दिल में शौक़ पलता है
वही है शाम-ए-जुदाई , वही है दिल मेरा
करूँ तो क्या करूँ ,कब आया वक़्त टलता है !
मिलेगा क्या तुम्हें यूँ मेरा दिल जलाने से
भला सता के ग़रीबों को कोई फलता है ?
इसी का नाम कहीं दर्द-ए-आशिक़ी तो नहीं ?
लगे है यूँ कोई रह रह के दिल मसलता है
न दिल-शिकस्ता हो बज़्म-ए-सुख़न से तू ’सरवर’
नया चिराग़ पुराने दिये से जलता है !
-सरवर
दिल-शिकस्त =दिल का टूटना
मिलेगा क्या तुम्हें यूँ मेरा दिल जलाने से
जवाब देंहटाएंभला सता के ग़रीबों को कोई फलता है ?
इसी का नाम कहीं दर्द-ए-आशिक़ी तो नहीं ?
लगे है यूँ कोई रह रह के दिल मसलता है
न दिल-शिकस्ता हो बज़्म-ए-सुख़न से तू ’सरवर’
नया चिराग़ पुराने दिये से जलता है !
बहुत खूब ... शुक्रिया इस ग़ज़ल के लिए.
आभार इस गज़ल का..बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंआ० अमिताभ जी/समीर लाल जी
जवाब देंहटाएं’सरवर’ साहब के ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द.पाठक
शुक्रिया आनन्द जी,
जवाब देंहटाएंपूरी गज़ल ही जानदार है। मक़्ता खास तौर पर पसन्द आया।
न दिल-शिकस्ता हो बज़्म-ए-सुख़न से तू ’सरवर’
नया चिराग़ पुराने दिये से जलता है !