शनिवार, 6 मार्च 2010

ग़ज़ल 014 : डूबता है दिल कलेजा --

 ग़ज़ल 014  : डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है......

डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है
हाय! यह कैसी क़ियामत याद तेरी ढाए है !

इश्क़ की यह ख़ुद फ़रेबी!अल-अमान-ओ-अल हफ़ीज़ !
जान कर वरना भला खु़द कौन धोखा खाए है

आँख नम है ,दिल फ़सुर्दा है ,जिगर आशुफ़्ता खू
लाख समझाओ वा लेकिन चैन किसको आए है ?

क्या तमन्ना ,कौन से हसरत ,कहाँ की आरज़ू ?
रंग-ए-हस्ती देख कर दिल है कि डूबा जाए है !

ऐतिबार-ए-दोस्ती का ज़िक्र कोई क्या करे ?
ऐतिबार-ए-दुश्मनी भी अब तो उठता जाए है !

इस दिल-ए-बे-मेह्र की यह कज अदायी देखिए
आप ही शिकवा करे है ,आप ही पछताए है !

बेकसी तो देखिये मेरी राह-ए-उम्मीद में
दिल को समझाता हूँ मैं और दिल मुझे समझाए है !

क्या शिकायत हो ज़माने से भला ’सरवर’ कि अब?
मैं जहाँ हूँ मुझसे साया भी मिरा कतराए है !

-सरवर-
कज अदायी = बेरुख़ी
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5 टिप्‍पणियां:

  1. ये ग़ज़लें, एकाएक लगा कि उस्‍ताद ज़ौक साहब से रूबरू हूँ। ऐसी ग़ज़लें बहुत कम पढ़ने को मिलती हैं जिनका हर ईक शेर बार-बार पढ़ने को दिल कहे।
    जो ग़ज़ल कहने का सलीका सीखना चाहते हैं उन्‍हें सरवर साहब को जरूर सुनना और पढ़ना चाहिये।

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  2. इस दिल-ए-बे-मेह्र की यह कज अदायी देखिए
    आप ही शिकवा करे है ,आप ही पछताए है !

    बेकसी तो देखिये मेरी राह-ए-उम्मीद में
    दिल को समझाता हूँ मैं और दिल मुझे समझाए है !

    क्या शिकायत हो ज़माने से भला ’सरवर’ कि अब?
    मैं जहाँ हूँ मुझसे साया भी मिरा कतराए है !

    क्या कहूँ इन शेरोन ने लाजवाब कर दिया

    आते आते ही तो आयेगा हमें सब्र हुज़ूर
    खेल ऐसा तो नही दिल का लगाना साहिब !

    अब इसके लिए क्या कहूँ जी दिल खुश हो गया

    सरवर साहब को पढवाने के लिए शुक्रिया

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  3. दोनों गज़लें बहुत उम्दा..आपका आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.

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  4. आदरणीय तिलक राज जी/भारतीय नागरिक जी/केसरी जी/समीर जी
    "सरवर" साहब की ग़ज़ल पसन्द आई बहुत बहुत धन्यवाद
    सादर
    आनन्द.पाठक

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