सोमवार, 7 अप्रैल 2014

क़िस्त 001 : माहिए - डा0 आरिफ़ हसन खान के

दोस्तो !
पिछले पोस्ट में मैने वादा किया था कि डा0 आरिफ़ हसन खान साहब की किताब "ख़्वाबों की किरचें [माहिया संग्रह] से कुछ माहिया आप सब के ज़ेर-ए-नज़र पेश करूँगा
डा0 आरिफ़ हसन खान साहब के बारे में मुख़्तसर तआर्रुफ़ इसी  मंच पर लगा चुका हूं और माहिया निगारी के बारे में भी लिख चुका हूँ

तो लीजिए पेश है डा0 साहब के कुछ माहिए

1
ऎ काश न ये टूटें
दिल में चुभती हैं
इन ख़्वाबों की किरचें
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2
मिट्टी के खिलौने थे
पल में टूट गए
क्या ख़्वाब सलोने थे
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3
अब नींद नहीं आती
जब से गया साजन
याद उसकी है तड़पाती
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4
सब सपने टूट गए
थे जो कभी अपने
वो साजन रूठ गए
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5
मेरा हमदम रूठ गया 
एक आईना था 
दिल छन से टूट गया
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[...क्रमश:  ...}


प्रस्तोता
आनन्द.पाठक
09413395592


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