उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 46 [ बह्र-ए-तवील ]
मुन्फ़र्द बह्रें या सालिम बह्रें = इन 7-बह्रों पर क़िस्त 1-से लेकर क़िस्त 44 तक चर्चा कर चुके हैं
आप चाहें तो एक बार देख सकते हैं
1 मुतक़ारिब =फ़ऊलुन =122
2 मुतदारिक = फ़ाइलुन =212
3 हज़ज = मफ़ाईलुन =1 2 2 2
4 रजज़ =मुस तफ़ इलुन =2 2 1 2
5 रमल =फ़ाइलातुन = 2 1 2 2
6 वाफ़िर = मफ़ा इ ल तुन = 12 1 1 2
7 कामिल = मु त फ़ालुन = 1 1 212
अब मुरक़्क़ब बह्रों पर एक एक कर के चर्चा करेंगे
------------------------------------------------
1 तवील =फ़ऊलुन+ मफ़ाईलुन
2 बसीत = मुस तफ़ इलुन+ फ़ाइलुन
3 मदीद =फ़ाइलातुन+फ़ाइलुन
4 मुन्सरिह = मुस तफ़ इलुन+ मफ़ऊलातु
5 मुज़ारे =मफ़ाईलुन +फ़ाअ’लातुन
6 मुक़्तज़िब = मफ़ऊलातु+ मुस तफ़ इलुन
7 मुजतस = मुस तफ़अ’ लुन+ फ़ाइलातुन+फ़ाइलातुन
8 सरीअ’ = मुस तफ़ इलुन+मफ़ऊलातु
9 जदीद =फ़ाइलातुन+फ़ाइलातुन+ मुस तफ़अ’ लुन
10 क़रीब = मफ़ाईलुन+मफ़ाईलुन+फ़ाअ’लातुन
11 ख़फ़ीफ़ = फ़ाइलातुन+ मुस तफ़अ’ लुन+ फ़ाइलातुन
12 मुशाकिल = फ़ाअ’लातुन+मफ़ाईलुन +मफ़ाईलुन
------------------------
अब हम बह्र-ए-तवील की चर्चा करेंगे
बह्र-ए-तवील का बुनियादी रुक्न है --" फ़ऊळुन+मफ़ाईलुन ’= 122+ 1222
बह्र-ए-तवील के 3-4 बह्र ही उर्दू शायरी में राइज हैं
[क] बह्र-ए-तवील सालिम मुसम्मन
फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन-----फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन
122--------1222---------122-------1222
उदाहरण -अब्दुल अज़ीज़ ’ख़ालिद’ साहब का एक शे’र है
मुझे इल्म है जानाँ इन इस्रार पर्चीं का
कि यह एक पर्दा है तेरे इश्क़ रंगीं का
अब तक़्तीअ क्र के भी देख लेते हैं
फ़ऊलुन / मफ़ाईलुन/ फ़ऊलुन / मफ़ाईलुन
122-----/1222----/ 122-----/ 1 2 2 2
मुझे इल् / म है जानाँ / इ निस रा/ र पर चीं का [ अलिफ़ का वस्ल हो गया ]
फ़ऊलुन / मफ़ा ईलुन / फ़ऊलुन / म फ़ा ईलुन
122-----/1222------/ 1 2 2 / 12 2 2
कि यह ए/ क पर दा है / ति रे इश् /क रंगीं का
[ख] तवील मुसम्मन सालिम मक़्बूज़ सालिम मक़्बूज़
फ़ऊलुन--मफ़ाइलुन---फ़ऊलुन--मफ़ाइलुन
122--------1212------122------1212
आप जानते हैं कि ’मफ़ाईलुन’ 1222 [हज़ज] का मक़्बूज़ मुज़ाहिफ़ शकल ’मफ़ा इलुन [1212] होता है
उदाहरण नसीम लखनवी का एक शे’र है
मुहब्बत रक़ीब से , अदावत नसीम से
किसी पर इनायतें .किसी पर ये शिद्दतें
तक़्तीअ कर के देख लेते हैं
1 2 2 / 1 2 1 2 / 122 / 1212
मुहब्बत /रक़ीब से / , अदावत /नसीम से
1 2 2 / 1 2 1 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
किसी पर / इनायतें ./ किसी पर / ये शिद् द ते
[ग] तवील मुसम्मन सालिम मक़्बूज़ सालिम मक़्बूज़ मुसब्बीग़
आप जानते है है कि मफ़ाईलुन [1222] का [क़ब्ज़+ तस्बीग़] ला ज़िहाफ़ लगाने से मक़्बूज़ मुसब्बीग़ मुज़ाहिफ़ ’ मफ़ाइलान ’ 12121 हासिल होता है
तो रुक्नी शकल होगी
फ़ऊलुन----मफ़ाइलुन-----फ़ऊलुन--- मफ़ाइलान
122----------1212--------122--------12121
यह आहंग ग़ैर मानूस भी है और ग़ैर मामूली भी है
[घ] तवील मुसम्मन मक़्बूज़ अल आखिर
फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन---फ़ऊलुन---मफ़ाइलुन
122----------1222-------122-----1212
उदाहरण :- डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब के हवाले से
करें शम्मअ’ एक रोशन चलो इल्म की नई
उठो क़ौम की ख़ातिर करें हम भी कुछ न कुछ
तक़्तीअ कर के देख लेते हैं
1 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
करें शम्/म इक रोशन /चलो इल् /म की नई
1 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
उठो क़ौ / म की ख़ातिर / करें हम / भी कुछ न कुछ
आप जानते हैं कि ’मफ़ाईलुन 1222[हज़ज] का महज़ूफ़ - फ़ऊलुन [1 2 2] होता है ।इस बात का जिक्र हज़ज के ज़िहाफ़ात के वक़्त किया था और यह भी कहा था कि यह हज़ज में सिर्फ़ ’अरूज़’ और ज़र्ब’ के मक़ाम पे आता है । मगर बह्र-ए-तवील में यह ’सदर और इब्तिदा के मुक़ाम पर आता है ।तवील-की बुनियादी रुक्न की संरचना ही ऐसी है । हस्व के मुक़ाम या अरूज़ और ज़र्ब के मुक़ाम पर मुफ़ाईलुन -1222 आता है तो इस पर कब्ज़ या तस्बीग़ का या कोइ और ज़िहाफ़ लग सकता है और कई नये आहंग बनाए जा सकते हैं ।
एक बात और
यदि तवील के बुनियादी रुक्न " फ़ऊलुन + मफ़ाईलुन "[ 122 +1222} को आपस में बदल दिया जाय-यानी मफ़ाईलुन+ फ़ऊलुन [ 1222+122] कर दिया जाय तो ?
कुछ लोगों ने इस का नाम ’बह्र-ए-अरीज़’ कहा है ।यह बह्र उर्दू शायरी में प्रचलित नहीं है
चलते चलते---
इस बह्र को ’तवील’ [ लम्बी बह्र] क्यों कहते हैं -इस बात का कोई सन्तोषजनक जवाब कहीं लिखा नहीं मिला। अगर आप को मालूम है तो ज़रूर बताइएगा।
अस्तु
अगले क़िस्त में बह्र-ए-बसीत पर चर्चा करेंगे
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब , अजीज दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब का और कुछ दीगर दोस्तों का तह-ए-दिल से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर की इतनी बिसात कहाँ इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस आलिम साहिबान के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--
न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना हूँ
www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-
मुन्फ़र्द बह्रें या सालिम बह्रें = इन 7-बह्रों पर क़िस्त 1-से लेकर क़िस्त 44 तक चर्चा कर चुके हैं
आप चाहें तो एक बार देख सकते हैं
1 मुतक़ारिब =फ़ऊलुन =122
2 मुतदारिक = फ़ाइलुन =212
3 हज़ज = मफ़ाईलुन =1 2 2 2
4 रजज़ =मुस तफ़ इलुन =2 2 1 2
5 रमल =फ़ाइलातुन = 2 1 2 2
6 वाफ़िर = मफ़ा इ ल तुन = 12 1 1 2
7 कामिल = मु त फ़ालुन = 1 1 212
अब मुरक़्क़ब बह्रों पर एक एक कर के चर्चा करेंगे
------------------------------------------------
1 तवील =फ़ऊलुन+ मफ़ाईलुन
2 बसीत = मुस तफ़ इलुन+ फ़ाइलुन
3 मदीद =फ़ाइलातुन+फ़ाइलुन
4 मुन्सरिह = मुस तफ़ इलुन+ मफ़ऊलातु
5 मुज़ारे =मफ़ाईलुन +फ़ाअ’लातुन
6 मुक़्तज़िब = मफ़ऊलातु+ मुस तफ़ इलुन
7 मुजतस = मुस तफ़अ’ लुन+ फ़ाइलातुन+फ़ाइलातुन
8 सरीअ’ = मुस तफ़ इलुन+मफ़ऊलातु
9 जदीद =फ़ाइलातुन+फ़ाइलातुन+ मुस तफ़अ’ लुन
10 क़रीब = मफ़ाईलुन+मफ़ाईलुन+फ़ाअ’लातुन
11 ख़फ़ीफ़ = फ़ाइलातुन+ मुस तफ़अ’ लुन+ फ़ाइलातुन
12 मुशाकिल = फ़ाअ’लातुन+मफ़ाईलुन +मफ़ाईलुन
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अब हम बह्र-ए-तवील की चर्चा करेंगे
बह्र-ए-तवील का बुनियादी रुक्न है --" फ़ऊळुन+मफ़ाईलुन ’= 122+ 1222
बह्र-ए-तवील के 3-4 बह्र ही उर्दू शायरी में राइज हैं
[क] बह्र-ए-तवील सालिम मुसम्मन
फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन-----फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन
122--------1222---------122-------1222
उदाहरण -अब्दुल अज़ीज़ ’ख़ालिद’ साहब का एक शे’र है
मुझे इल्म है जानाँ इन इस्रार पर्चीं का
कि यह एक पर्दा है तेरे इश्क़ रंगीं का
अब तक़्तीअ क्र के भी देख लेते हैं
फ़ऊलुन / मफ़ाईलुन/ फ़ऊलुन / मफ़ाईलुन
122-----/1222----/ 122-----/ 1 2 2 2
मुझे इल् / म है जानाँ / इ निस रा/ र पर चीं का [ अलिफ़ का वस्ल हो गया ]
फ़ऊलुन / मफ़ा ईलुन / फ़ऊलुन / म फ़ा ईलुन
122-----/1222------/ 1 2 2 / 12 2 2
कि यह ए/ क पर दा है / ति रे इश् /क रंगीं का
[ख] तवील मुसम्मन सालिम मक़्बूज़ सालिम मक़्बूज़
फ़ऊलुन--मफ़ाइलुन---फ़ऊलुन--मफ़ाइलुन
122--------1212------122------1212
आप जानते हैं कि ’मफ़ाईलुन’ 1222 [हज़ज] का मक़्बूज़ मुज़ाहिफ़ शकल ’मफ़ा इलुन [1212] होता है
उदाहरण नसीम लखनवी का एक शे’र है
मुहब्बत रक़ीब से , अदावत नसीम से
किसी पर इनायतें .किसी पर ये शिद्दतें
तक़्तीअ कर के देख लेते हैं
1 2 2 / 1 2 1 2 / 122 / 1212
मुहब्बत /रक़ीब से / , अदावत /नसीम से
1 2 2 / 1 2 1 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
किसी पर / इनायतें ./ किसी पर / ये शिद् द ते
[ग] तवील मुसम्मन सालिम मक़्बूज़ सालिम मक़्बूज़ मुसब्बीग़
आप जानते है है कि मफ़ाईलुन [1222] का [क़ब्ज़+ तस्बीग़] ला ज़िहाफ़ लगाने से मक़्बूज़ मुसब्बीग़ मुज़ाहिफ़ ’ मफ़ाइलान ’ 12121 हासिल होता है
तो रुक्नी शकल होगी
फ़ऊलुन----मफ़ाइलुन-----फ़ऊलुन--- मफ़ाइलान
122----------1212--------122--------12121
यह आहंग ग़ैर मानूस भी है और ग़ैर मामूली भी है
[घ] तवील मुसम्मन मक़्बूज़ अल आखिर
फ़ऊलुन---मफ़ाईलुन---फ़ऊलुन---मफ़ाइलुन
122----------1222-------122-----1212
उदाहरण :- डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब के हवाले से
करें शम्मअ’ एक रोशन चलो इल्म की नई
उठो क़ौम की ख़ातिर करें हम भी कुछ न कुछ
तक़्तीअ कर के देख लेते हैं
1 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
करें शम्/म इक रोशन /चलो इल् /म की नई
1 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2 / 1 2 1 2
उठो क़ौ / म की ख़ातिर / करें हम / भी कुछ न कुछ
आप जानते हैं कि ’मफ़ाईलुन 1222[हज़ज] का महज़ूफ़ - फ़ऊलुन [1 2 2] होता है ।इस बात का जिक्र हज़ज के ज़िहाफ़ात के वक़्त किया था और यह भी कहा था कि यह हज़ज में सिर्फ़ ’अरूज़’ और ज़र्ब’ के मक़ाम पे आता है । मगर बह्र-ए-तवील में यह ’सदर और इब्तिदा के मुक़ाम पर आता है ।तवील-की बुनियादी रुक्न की संरचना ही ऐसी है । हस्व के मुक़ाम या अरूज़ और ज़र्ब के मुक़ाम पर मुफ़ाईलुन -1222 आता है तो इस पर कब्ज़ या तस्बीग़ का या कोइ और ज़िहाफ़ लग सकता है और कई नये आहंग बनाए जा सकते हैं ।
एक बात और
यदि तवील के बुनियादी रुक्न " फ़ऊलुन + मफ़ाईलुन "[ 122 +1222} को आपस में बदल दिया जाय-यानी मफ़ाईलुन+ फ़ऊलुन [ 1222+122] कर दिया जाय तो ?
कुछ लोगों ने इस का नाम ’बह्र-ए-अरीज़’ कहा है ।यह बह्र उर्दू शायरी में प्रचलित नहीं है
चलते चलते---
इस बह्र को ’तवील’ [ लम्बी बह्र] क्यों कहते हैं -इस बात का कोई सन्तोषजनक जवाब कहीं लिखा नहीं मिला। अगर आप को मालूम है तो ज़रूर बताइएगा।
अस्तु
अगले क़िस्त में बह्र-ए-बसीत पर चर्चा करेंगे
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब , अजीज दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब का और कुछ दीगर दोस्तों का तह-ए-दिल से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर की इतनी बिसात कहाँ इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस आलिम साहिबान के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--
न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना हूँ
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-आनन्द.पाठक-
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