शनिवार, 24 मार्च 2018

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 47 [ बह्र-ए-बसीत]

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 47 [ बह्र-ए-बसीत]

Discliamer clause -वही जो क़िस्त 1 में है 

--पिछली क़िस्त में हम बह्र-ए-तवील की चर्चा कर चुके हैं। अब बह्र-ए-बसीत की चर्चा करेंगे
यह भी एक अरबी बह्र है
इस बह्र का बुनियादी रुक्न " मुस तफ़ इलुन + फ़ाइलुन" है यानी [ 2212+212]-दो रुक्न के मेल से बनता है अत: मुरक़्क़ब बह्र है
इस बह्र की कुछ प्रचलित आहंग की चर्चा कर लेते हैं

[1] बसीत मुसम्मन सालिम
 मुसतफ़ इलुन ---फ़ाइलुन---मुसतफ़ इलुन---फ़ाइलुन
2212----------212---------2212---------212-
उदाहरण-
सफ़ी अमरोहवी का एक शे’र है

नाहक़ बला में पड़ा क्यों दिल तुझे क्या हुआ
काकुल की है यार में क्या तुझ को सौदा हुआ

तक्तीअ के के देख लेते
2   2    1 2   / 2 1 2 //  2  2   1 2  / 2 1 2
नाहक़ बला/  में पड़ा/  क्यों दिल तुझे /क्या हुआ
 2    2  1   2  /  2 1 2/  2    2    1    2  / 2 1 2
काकुल की है /यार में / क्या तुझ को सौ/ दा हुआ

यह बह्र -ए-शिकस्ता भी है
इस बह्र में अरूज़/ज़र्ब मे ’फ़ाइलुन’ [212] की जगह ’फ़ाइलान’ [2121] लाया जा सकता है

[ ऐसी मुरक़्क़ब बहर जो दो अर्कान A-B  से मिलकर बनती है उन की
मुसम्मन शकल होती है      A-B--A--B और
मुसद्दस शकल  होती है      A--B--A
अत: इस बह्र की मुसद्दस शकल भी मुमकिन है
यानी मुसतफ़ इलुन---फ़ाइलुन--मुसतफ़ इलुन [ 2212---212---2212

[2] बसीत मुसद्दस सालिम
मुसतफ़ इलुन----फ़ाइलुन----मुसतफ़ इलुन
  2212-------------212--------2212
यहाँ भी ,अरूज़/ज़र्ब में - मुस तफ़ इलुन की जगह -मुसतफ़इलान [22121] लाया जा सकता है
उदाहरण :कमाल  अहमद सिद्दिक़ी साहब के हवाले से

जब तक रहे साथ ग़म आया न पास
जब हम रहे दूर तो मुज़्तर  रहे 

[मुज़्तर = परेशान ,बेचैन]
अब तक़्तीअ क्र के देख लेते हैं
  2   2    1  2/ 2 1  2   / 2  2  1 2 [1]
जब तक रहे/ साथ ग़म /आया न पास
2      2    1 2/ 2 1  2  / 2 2    1 2
जब हम रहे / दूर तो / मुज़ तर  रहे

अरूज़ के मुक़ाम पर 22121 यानी मुस तफ़ इलान लाया गया है जो लाया जा सकता है
एक बात और
आप जानते है ’मुस तफ़ इलुन ’ [2212] बह्र-ए-रजज़ का बुनियादी रुक्न है और फ़ाइलुन [212] मुज़ाहिफ़ है -मरफ़ूअ’ है मुस तफ़ इलुन का । और यह मुज़ाहिफ़ सदर /इब्तिदा/ हस्व मे लाया जा सकता है -जो ज़ेर-ए-बहस रुक्न में आ भी गया है
तो क्या यह बसीत के बजाय ’रजज़’ की बहर है ?
जी हाँ ,यह बहर -रजज़ में भी आ सकती है } आहंग तो आहंग है---बसीत की आहंग हो या रजज़ की--क्या फ़र्क़ पड़ता है --शे’र या ग़ज़ल कहने में।

[3] बसीत मुसम्मन मख़बून
हम जानते है कि मुसतफ़इलुन [2212] का म्ख़्बून मुज़ाहिफ़ मफ़ाइलुन [1212] होता है जब कि फ़ाइलुन[212] का मख़्बून मुज़ाहिफ़ ’फ़अलुन’ [112] होता है
तो बसीत मुसम्मन मख़्बून का वज़न हो जायेगा
मफ़ाइलुन-------फ़अलुन---//--मफ़ाइलुन-----फ़अलुन
1212-----------112-------//----1212-------112-
उदाहरण

दिखा  दे शक ल ज़रा सनम बराए ख़ुदा
ये है सवाल मेरा गिला रहे न  ज़रा

तक़्तीअ भी देख लेते हैं
1   2   1   2    / 1 1 2 /  1 2 1 2 / 1 1 2
दिखा  दे शक /ल ज़रा /सनम बरा/ ए ख़ुदा
1   2  1 2  / 1 1 2/ 1 2 1 2  / 1  1 2
ये  है सवा/ ल मेरा / गिला रहे  / न  ज़रा

यह बह्र भी बह्र-ए-शिकस्ता है
इस बहर में भी अरूज़/ज़र्ब में  फ़अलुन [112] की जगह ’फ़इलान [1121] [-ऐन मुतहर्रिक] या फ़अ लान [2 2 1] [-ऐन बसकून]  भी कर सकते है

[4] बसीत मुसम्मन मुतव्वी सालिम मुतव्वी सालिम
 मुस तफ़ इलुन [2212] का तय्यी ज़िहाफ़ से  मुफ़ त इ लुन [2112] हो जाता है जिस की मुज़ाहिफ़ शकल को  ’मुतव्वी’ कहते है  और जिसमें [-ते- और -ऐन -मुतहर्रिक है ] यानी 2 1 12]
तो इस बहर के अर्कान हो जायेंगे
मुफ़ त इ लुन----फ़ाइलुन---//--मुफ़ त इ लुन-----फ़ाइलुन
2 1 1 2----------2 1 2----//---2  1  1  2--------212

अरूज़ और ज़र्ब में फ़ाइलुन [212] की जगह ’फ़ाइलान [ 2121] [यानी मज़ाल] भी लाया जा सकता है
उदाहरण
डा0 आरिह हसन ख़ान साहब के हवाले से

ये तो मेरे भाई हैं ,कैसे इन्हें छोड़ दूँ
अहल-ए-वतन फूँक दें,घर को ख़ुशी से मेरा

अब तक़्तीअ भी कर के देख लेते हैं
2 1  1 2   /2  1 2 //  2 1 1 2 / 2 1 2
मुफ़ त इलुन/ फ़ाइलुन// मु त इलुन/ फ़ाइलुन
ये तो मिरे /भाइ हैं //,कै से इने /छोड़ दूँ

मुफ़ त इलुन/ फ़ाइलुन// मु त इलुन/ फ़ाइलुन
2  1       1  2   /  2 1 2 // 2 1  1    2   / 2 1 2
अहल-ए-वतन /फूँक दें,//घर को ख़ुशी/ से मिरे
यहाँ ध्यान दें  अह ले व तन= मुफ़ त [-ले-मुतहर्रिक] व तन [ इलुन]  हैं  यानी मुफ़ त इ लुन [2112] है
बाक़ी इसी तरह आप और हर्फ़ भी  समझ सकते हैं

यह भी बह्र-ए-शिकस्ता है
इस बह्र की मुसद्दस शकल भी हो सकती है
[5]  बसीत मुसद्दस मुतव्वी सालिम मुतव्वी
    अर्कान बहुत सीधा है 
मुफ़ त इ लुन----फ़ाइलुन-----मुफ़ त इ लुन
2 1 1 2----------2 1 2-------2  1  1  2
उदाहरण
देख के तुझ को परी एक ज़री
हो गई मुझ को वहीं  बेख़बरी

अब तक़तीअ भी देख लेते है
2 1  1  2 --/   2 1 2  / 2 1 1 2
देख के तुझ/  को परी /एक ज़री
2   1 1  2   / 2 1 2  /  2 1 1 2
हो गई मुझ /को वहीं /  बेख़बरी


अगर ध्यान से देखें तो बह्र-ए-रजज़ का बुनियादी रुक्न ’मुस तफ़ इलुन’[2212] है  और इसका मुतव्वी मुज़ाहिफ़ शकल मुफ़ त इ लुन [ 2 1 1 2 ] होता है [जिसमें  -ते-और -एन- मुतहर्रिक है] और फ़ाइलुन [212] मरफ़ूअ’ है मुस तफ़ इलुन का
तो हम कह सकते है कि यह कोई रजज़ की बहर है जिसमे दो ज़िहाफ़ -तयी का और रफ़अ’ का ज़िहाफ़ लगा हुआ है तो इस का नाम --"बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मुतव्वी मरफ़ूअ’ मुतव्वी " भी हो सकता है । जी हाँ बिल्कुल सही। बिलकुल हो सकता है
मगर क्लासिकल अरूज़ में इसे बह्र-ए-बसीत’ के अन्तर्गत ही लिया गया है । आप चाहे तो बह्र-ए-रजज़ के अन्तर्गत भी ले सकते है। क्या फ़र्क़ पड़ता है आहंग तो आहंग है ।आप यहाँ कहें या वहाँ कहें

[6]बसीत मुसद्दस मख़्बून सालिम मख़्लूअ’

हम जानते है कि मुस तफ़ इलुन [2212] पर ’ख़लअ’ का ज़िहाफ़ लगाया जाय तो बरामद होगा  मुज़ाहिफ़ ’फ़ऊलुन [122] जो मख़्लूअ’ कहलाता है
और अर्कान होंगे
मफ़ाइलुन----फ़ाइलुन---फ़ ऊलुन
1212----212----------122
उदाहरण:- इसका भी एक उदाहरण कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब के हवाले से देखते हैं

नज़ारा हो लाख ख़ूबसूरत
नज़र नहीं है तो कुछ नहीं है

[क्या कमाल का खुश आहंग शे’र है]

तक़्तीअ कर के देख लेते है
1 2  1   2  / 2 1  2  / 1 2 2
नज़ा र: हो / लाख ख़ू/ ब सूर त
1 2   1 2  / 2  1   2     / 122
नज़र नहीं/  है तो कुछ/ नहीं है

न ज़र = मफ़ा
न ही= इलुन
चूँकि मुरक्क़ब बह्रें दो या तीन ’सालिम’ बहरों के मेल से बनती है अत: ये सालिम बहरें[ कुछ शर्तों के साथ ] अपनी अपनी ज़िहाफ़ ले सकती है अत: कई आहंग बरामद किए जा सकते है--यह आप के मेहनत और ज़ौक़-ओ-शौक़ पर निर्भर करेगा
यहाँ उन तमाम मुमकिनात बहूर की चर्चा नहीं कर रहे हैं -मुनासिब भी नही मगर आप मश्क़ जारी रख सकते हैं
बह्र-ए-बसीत का बयान ख़त्म हुआ
अगली क़िस्त में हम  बह्र-ए-मदीद की चर्चा करेंगे
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....

एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात  और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान  कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब  सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब  , अजीज  दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब  का  और कुछ दीगर दोस्तों का तह-ए-दिल  से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से  कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर की इतनी  बिसात कहाँ  इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में  मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस  आलिम साहिबान  के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--

न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना  हूँ

www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-










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