शुक्रवार, 2 मार्च 2018

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 44 [ बह्र-ए-वाफ़िर की मुज़ाहिफ़ बह्रें]

उर्दू  बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 44 [ बह्र-ए-वाफ़िर की मुज़ाहिफ़ बह्रें]

Disclaimer Clause--वही जो क़िस्त 1 में हैं---

पिछली क़िस्त में वाफ़िर कि सालिम बह्रों पर चर्चा कर चुका हूँ । अब हम इसकी मुज़ाहिफ़ बह्रों पे चर्चा करेंगे।
जब ज़िहाफ़ात की चर्चा कर रहा था तो कहा था कि उर्दू शायरी में इन ज़िहाफ़ात की संख्या लगभग 48-50 के आस-पास है जिसमे से 11-जिहाफ़ तो मात्र बहर-ए-कामिल और बह्र-ए-वाफ़िर पर लगते हैं
इन ज़िहाफ़ात के नामों को जानने की ज़रूरत नहीं है कारण कि लोग बह्र-ए-वाफ़िर में कम ही शे’र कहते है तो फिर ज़िहाफ़ात के नाम जानने की ज़रूरत ही कहां ? ख़ैर  आप Academic Discussion के लिए जानना चाह्ते हैं तो जान लें-कमाल अहमद सिद्दिक़ी साहब ने इनके नाम भी लिख दिए हैं
1-अस्ब ---2- अज़ब---3-अक़्ल----4-नक़्स----5-क़तफ़---6-क़सम---7-हज्म---8-अ’क़्स---9-इज़्मार---10-वक़्स---11-ख़ज़ल   

आप जानते हैं कि हर ज़िहाफ़ एक निश्चित नियम के तहत ही सालिम रुक्न पर अमल करता हैं। कभी ये ज़िहाफ़ अकेले ही सालिम रुक्न पर अमल करते है ,कभी कभी दो-दो से अधिक  ज़िहाफ़ [मुरक़्कब] एक साथ मिल कर  सालिम रुक्न पर अमल करते है
हम यहाँ उन प्र्चलित ज़िहाफ़ की ही चर्चा करेंगे जो वाफ़िर की बुनियादी रुक्न " मफ़ा इ ल तुन ’ [12 11 2] पर लगते है [मालूम है न कि यहाँ -ऐन- और लाम- मुतहर्रिक है ]

मफ़ा इ ल तुन [ 12 1 1 2] +अस्ब = मअ’सूब  =मफ़ाईलुन [ 12 2 2 ] 
मफ़ा इ ल तुन [ 12 1 1 2] +क़तफ़ = मक़्तूफ़  = फ़ऊलुन  [ 1 2 2  ]
मफ़ा इ ल तुन [ 12 1 1 2] +अक़्ल =मअ’क़ूल = मफ़ा इलुन [ 12 12]
मफ़ा इ ल तुन [ 12 1 1 2] +नक़्स =मन्क़ूस = मफ़ाईलु     [ 12 2 1 ]
मफ़ा इ ल तुन [ 12 1 1 2] + अज़ब =अज़ब = मुफ़ त इलुन [ 2 1 12 ] 
मफ़ा इ ल तुन [1 2 1 1 2] + क़सम =अक़सम        = मफ़ ऊ लुन  [2 2 2]
क़सम -एक मुरक़्कब ज़िहाफ़ है जो दो ज़िहाफ़ से मिल कर बना है यानी  अस्ब+अज़ब से 
इसी प्रकार और भी ज़िहाफ़ का अमल हो सकता है जो यहां पर नहीं दिया जा रहा है मगर आप चाहें तो मश्क़ कर के और भी मुज़ाहिफ़ शकल बरामद कर सकते है ।

एक बात ध्यान रखें -वाफ़िर का बुनियादी रुक्न ’म फ़ा इ ल तुन ’ [12 1 1 2] है जिसमें 3- मुतहर्रिक [ ऎन---लाम --तुन ] एक साथ आ रहे है  तो तस्कीन-ए-औसत की अमल से इसे मफ़ा-इल्-तुन् [ 12 2 2 ] न् बना दीजियेगा और कहिएगा कि यह तो मुज़ाहिफ़ महसूब है । नहीं ।ग़लत होगा। पहली बात तो यह कि अहल-ए-अरब तस्कीन-ए-औसत की अमल से नावाक़िफ़ थे [ये तो अहल-ए-फ़ारसी की देन है] अत: उन्होने एक ज़िहाफ़ का तसव्वुर किया इसके लिए और वो था ’अस्ब’ ज़िहाफ़।
दूसरी बात -तस्कीन-ए-औसत का अमल कभी भी ’सालिम’ रुक्न पर नहीं लगता -जब भी लगेगा तो मुज़ाहिफ़ शकल पर ही लगेगा ।
अब वाफ़िर की मुज़ाहिफ़ बह्रों की चर्चा करते है

[1-क] बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्ब: सालिम मअ’सूब 
    मफ़ा इ ल तुन-----मफ़ाईलुन 
    1 2    1 1  2------1 2 2 2 
उदाहरण = आप चाहें तो इस वज़न पर एक शे’र कह सकते हैं। चलिए कमाल अहमद सिद्दिक़ी साहब के हवाले से दे देते है

न पीते शराब क्या कर ते 
ये ख़ाना खराब क्या करते

तक़्तीअ’ कर के देखते हैं
1  2  1 1 2  / 1 2    2  2
न पीते शरा/ ब क्या कर ते
1   2   1  1 2  / 1 2   2    2
ये ख़ा न: ख रा/ ब क्या कर ते

[1-ख] बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्ब: मअ’सूब सालिम  -कुछ नहीं , बस ऊपर [1-क] के दोनों रुक्न की पोजीशन आपस में बदल दें
मफ़ाईलुन----मफ़ाइलतुन
1222--------12 1 1 2
उदाहरण आप बताएं तो अच्छा । आसान है

 जो मेरी बा त मान गए
सभी इसरार जान  गए

चलिए तक़्तीअ भी कर के देख लेते हैं
1   2  2 2  / 1 2 1 1 2
जो मेरी बा/त मान गए
1  2  2   2 / 1 2 1 1 2
सभी इसरा/र जान  गए
नोट - इसे आप  1 2 2 2 के गिर्दान से मत देखियेगा यानी ज़्यादा भरोसा मत रखियेगा  --सही तभी होगा जब इसे ’रुक्न’ के अनुसार चेक करेंगे जैसे --- मफ़ाईलुन या मफ़ा इ ल तुन यानी कहां सबब है कहाँ वतद है और वो सही है भी कि नहीं।
समझने के लिए और प्रैक्टिस के लिए आप ऐसे अश’आर कहते रहे --शे’रियत या तग़ज़्ज़ुल पर मत जाइएगा अभी तो वज़न और बह्र ही का पास [ख़याल] रखियेगा

नीचे सिर्फ़ कुछ और मक़्बूल बह्र का नाम लिख रहा हूँ अगरचे इस में तब’अ आज़माई तो कम ही हुई है --आप शौक़-ओ-ज़ौक़ के लिए चाहें तो कर सकते है

2 - बह्र-ए-वाफ़िर मुसद्दस सालिम मअ’सूब सालिम
 मफ़ा इ ल तुन  -मफ़ाईलुन---मफ़ाइलतुन 
12 1 1 2   ----1 2 2 2 -------1 2 1 1 2

3- बह्र-ए-वाफ़िर मुसद्दस सालिम मअ’सूब मक़्तूफ़ ;_ आप जानते हैं कि ’मफ़ा इ ल तुन’ [12 11 2] का मक़्तूफ़ -’फ़ऊलुन’ [1 2 2] होता है अत:
     मफ़ा इ ल तुन ----मफ़ाईलुन---फ़ऊलुन
      1 2 1 1   2-------1 2 2 2 ------1 2 2
4- बह्र-ए-वाफ़िर मुसद्दस सालिम मअ’क़ूल मक़्तूफ़  ; आप जानते है कि ’मफ़ा इ ल तुन’ [12 112] का  ’मअ’कूल’ -मफ़ा इलुन [12 12] होता है
मफ़ा इ ल तुन----मफ़ाइलुन----फ़ऊलुन
1 2   1 1  2-------1 2 1 2-----1 2 2
5- बह्र-ए-वाफ़िर मुसद्दस सालिम मन्क़ूस मक़्तूफ़ :आप जानते है कि ’मफ़ाइलतुन’ [12 1 1 2] का मन्क़ूस-मफ़ाईलु  [1 2 2 1] -[यानी लाम मुतहर्रिक है यहाँ ] होता है
मफ़ा इ ल तुन -----मफ़ाईलु-------फ़ऊलुन
1 2  1  1  2--------1 2 2 1 ------1 2 2 
6-  बह्र-ए-वाफ़िर मुसद्दस मक़्तूफ़
मफ़ा इ ल तुन --मफ़ा इ ल तुन---फ़ऊलुन
1 2  1 1    2-----1 2 1 1 2---- 1 2 2 
7- बह्र-ए-वाफ़िर मुसम्मन सालिम  मअ’सूब सालिम मअ’सूब 
मफ़ा इ ल तुन-----मफ़ाईलुन----मफ़ा इ ल तुन---मफ़ाईलुन
1  2  1 1   2--------1 2 2 2-----1 2 1 1 2-----1 2 2 2
हमने कुछ बह्र-ए-वाफ़िर की चर्चा कर दी मगर ज़िहाफ़ के combination & permutation [ समुच्चय और विमुच्चय]  से और भी मुज़ाहिफ़ वज़न /बहर बरामद किए जा सकते है या बनाए जा सकते है यह आप के ज़ौक़-शौक़ पर निर्भर करेगा --मैदान खुला है

उदाहरण इसलिए नहीं दिया कि जब वाफ़िर के सालिम बह्र में ही शायरों न कम अश’आर कहें हैं तो फिर मुज़ाहिफ़ बह्रों में शायरी की बात कौन करे
हाँ समझाने के लिए अरूज़ की किताबों में कुछ लेखकों ने खुद्साख्ता अश’आर दिये गए हैं --वैसा तो  आप भी कह सकते है इन औज़ान में ] बस एक कोशिश करें । और हां अगर आप ऐसे अश’आर कहें तो मुझे  ईमेल ज़रूर कीजियेगा ,इन्शाअल्लाह , कभी  इन मज़ामीन को किताब की शकल  दे सकूँ तो आप के इन अश’आर को मय आप के नाम से उदाहरण स्वरूप दे सकूँ 

ग़ज़ल कहने के लिए बह्र की कमी नही है --तमाम बह्र हैं आप के सामने --सालिम बह्रें भी हैं --मुज़ाहिफ़ बह्रे भी हैं---मुरक़्क़ब बह्रें भी है ---तस्कीन और तख़्नीक़ से बरामद होने वाली बह्रें भी है  --खुला मैदान है सामने --बस आप की एक कोशिश की ज़रूरत है--

खुदा ख़ुदा कर के - 7-सालिम बह्रों और उनकी मुज़ाहिफ़ बह्रों के बयान ख़त्म हुआ

अब अगले अक़सात  में  उर्दू की [12] मुरक़्क़ब की चर्चा करुँगा

--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी  हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को  दुरुस्त कर सकूं ।मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।

अभी बह्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....

एक बात बड़े ही अदब से एतराफ़ [स्वीकार] करता हूँ कि इन तमाम अक़्सात ,तज़्क़िरात  और तहरीर के लिए अपने आलिम अरूज़ी साहिबान  कमाल अहमद सिद्द्क़ी साहब , डा0 शम्सुर्र्हमान फ़ारुक़ी साहब ,आलिम जनाब  सरवर आलम राज़ ’सरवर ’ साहब  , अजीज  दोस्त डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब  का  और कुछ दीगर दोस्तों का तह-ए-दिल  से मम्नून-ओ-मश्कूर हूँ जिनकी किताबों से  कुछ पढ़ सका ,समझ सका और लिख सका ।वगरना इस हक़ीर की इतनी  बिसात कहाँ  इतनी औक़ात कहां । इन तज़्क़िरात में  मेरा कुछ भी अपना नहीं है बस  आलिम साहिबान  के अरूज़ पर किए गए कामों का फ़क़त हिन्दी तर्जुमा समझिए बस ........
एक बात और--

न आलिम ,न मुल्ला ,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्ब्त ,अदब आशना  हूँ

www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-












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