सोमवार, 25 जनवरी 2010

ग़ज़ल 008 आ भी जा कि इस दिल की शाम

ग़ज़ल 008

आ भी जा कि इस दिल की शाम होने वाली है
दिन तो ढल गया ज्यों त्यों, रात अब सवाली है !

इक निगाह के बदले जान बेच डाली है
इश्क़ करने वालों की हर अदा निराली है !

हर्फ़-ए-आरज़ू लब पर आए भी तो क्या आए
नाबकार यह दुनिया किसकी सुनने वाली है ?

कोई क्या करे तकिया दूसरों की दुनिया पर
हमने ख़ुद ही इक दुनिया ख़्वाब में बसा ली है !

आब आब आईना ख़्वाब ख़्वाब उम्मीदें
रू-ए-ज़िन्दगानी का नक़्श भी ख़याली है !

फ़िक्र-ओ-फ़न की दुनिया पर वक़्त कैसा आया है
फ़न है बे-सुतून यारो ! फ़िक्र ला-उबाली है !

कोई क्या करे शिकवा वक़्त की खुदाई का
बज़्म-ए-मय हुई वीराँ और जाम खाली है

इश्क़ में बता ’सरवर’! क्या मिला तुझे आखिर
तूने ये मुसीबत क्यूँ अपने सर लगा ली है ?

-सरवर-
रू-ए-ज़िन्दगानी =ज़िन्दगी का चेहरा
नाबकार =नालाईक़
बेसुतून =बिना स्तम्भ के/बिना खम्बा के
ला-उबाली =मस्त

3 टिप्‍पणियां:

  1. इश्क़ में बता ’सरवर’! क्या मिला तुझे आखिर
    तूने ये मुसीबत क्यूँ अपने सर लगा ली है..

    कमाल के शेर हैं सब ........ खूबसूरत.......

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  2. Waah aannad ji aap bahut nek kaam kar rahe hai
    sarwar sahab ke gazlon ko hindi mein padhwaaane ke liye shukriya

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  3. आ० श्रद्धा जी/नासवा जी
    हौसला अफ़्ज़ाई के लिए आप लोगों का शुक्रिया
    मम्नून हूँ
    मुख़्लिस
    आनन्द.पाठक

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