रविवार, 18 अक्तूबर 2020

विविध 010 : दर्द-ए-बेकसी कब तक --[पी0 के0 स्वामी ]

 ग़ज़ल ०३


दर्द-ए-बेकसी कब तक रंज-ए-आशिक़ी कब तक
रास मुझ को आयेगी ऐसी ज़िन्दगी कब तक ! 

सोज़-ए-दिल छिपाएगा अश्क की कमी कब तक 
खुश्क लब दिखाएंगे आरज़ी खुशी कब तक ! 

तिश्नगी मुक़द्दर में साथ तो नहीं आयी 
चश्म-ए-मस्त बतला तू ऐसी बेरुखी कब तक ! 

ज़ब्त छूटा जाता है सब्र क्यों नहीं आता 
देखिये दिखाती है रंग बेकसी कब तक ! 

दिल में हैं मकीं लेकिन सामने नहीं आते 
रखेगा भला आखिर सब्र आदमी कब तक ! 

दर पे आँख अटकी है उखड़ी उखड़ी सांसे हैं 
नातवां सहे आखिर तेरी ये कमी कब तक ! 

मेहरबान वो हों तो लुत्फ़-ए-इश्क सादिक है 
बंदगी में कटेगा ’स्वामी’ ज़िन्दगी कब तक !! 

- पी0 के0 स्वामी-

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