ग़ज़ल ०३
दर्द-ए-बेकसी कब तक रंज-ए-आशिक़ी कब तक
रास मुझ को आयेगी ऐसी ज़िन्दगी कब तक !
सोज़-ए-दिल छिपाएगा अश्क की कमी कब तक
खुश्क लब दिखाएंगे आरज़ी खुशी कब तक !
तिश्नगी मुक़द्दर में साथ तो नहीं आयी
चश्म-ए-मस्त बतला तू ऐसी बेरुखी कब तक !
ज़ब्त छूटा जाता है सब्र क्यों नहीं आता
देखिये दिखाती है रंग बेकसी कब तक !
दिल में हैं मकीं लेकिन सामने नहीं आते
रखेगा भला आखिर सब्र आदमी कब तक !
दर पे आँख अटकी है उखड़ी उखड़ी सांसे हैं
नातवां सहे आखिर तेरी ये कमी कब तक !
मेहरबान वो हों तो लुत्फ़-ए-इश्क सादिक है
बंदगी में कटेगा ’स्वामी’ ज़िन्दगी कब तक !!
- पी0 के0 स्वामी-
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